शारदा रिपोर्टर मेरठ। मां-बाप की अनदेखी, लापरवाही और जानकारी की कमी बच्चों को आजीवन दर्द की सजा दे रही है। मेडिकल कॉलेज में चल रहे थैलेसीमिया सेंटर के आंकड़े चौंकाते हैं। जहां छह साल में इलाज करवाने वाले मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है।
डॉक्टर्स का कहना है कि, ये बीमारी की जड़ें घर से ही शुरू हो रही हैं। यह एक अनुवांशिक रक्त विकार है, जो माता या पिता दोनों में से एक से गर्भ में ही बच्चे में ट्रांसफर हो रही है। थैलेसीमिया के प्रति जागरुकता लाने के लिए ही हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे का आयोजन होता है।
मेरठ मेडिकल कॉलेज के आंकड़ों के अनुसार हर साल 8 से 10 गर्भवती महिलाएं थैलेसीमिया की वाहक मिल रही हैं। यानी खतरा गर्भ में ही पल रहा है। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली जांचों में इसकी पुष्टि हो रही है। डॉक्टर्स बताते हैं कि, गर्भावस्था के 8 से 11 सप्ताह में डीएनए जांच करा ली जाए, तो बच्चे में बीमारी की पहचान हो सकती है। थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चों को हर 3-4 हफ्ते में खून चढ़ाना पड़ता है। इलाज जिंदगीभर चलता है। चेहरा बिगड़ जाता है, हड्डियां उभर आती हैं, दांत बाहर आ जाते हैं। थैलेसीमिया बीमारी मां या पिता से बच्चों में आती है। इससे बचने के लिए अगर शादी से पहले ही लडका-लडकी की खून की जांच हो जाए, तो ये बीमारी पूरी तरह रोकी जा सकती है।
डॉक्टर्स बताते हैं कि, लोगों में जागरुकता का अभाव है। यह माता-पिता से बच्चे में पहुँचती है। यह बीमारी तब होती है जब शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन में दोष होता है। अगर माता-पिता दोनों में से कोई एक या दोनों थैलेसीमिया के वाहक होते हैं, तो उनका बच्चा इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है।
ये है थैलेसीमिया: थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन की कमी होती है। इसके कम होने से रक्त की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे शरीर को आॅक्सीजन की कमी होने लगती है। थैलेसीमिया की तीन स्टेज होती हैं। मेजर स्टेज में बच्चे को सप्ताह में एक या दो बार खून चढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है। माइनर में सामान्यत बिना किसी गंभीर लक्षण के मरीज जीवन जी सकता है। हालांकि, वह थैलेसीमिया का वाहक होता है और अपने बच्चों को यह जीन दे सकता है। इंटरमीडिएट स्टेज में मरीज को खून चढ़ाने की जरुरत हो सकती है, लेकिन यह गंभीर नहीं होता है।
थैलेसीमिया एक गंभीर लेकिन उपचार योग्य बीमारी है। इस बीमारी को समझना और इसके प्रति जागरुकता बढ़ाना आवश्यक है, ताकि इससे बचने के उपाय किए जा सकें, पूर्व-वैवाहिक जांच और जीन काउंसलिंग जरुरी है। – डॉ. नवरत्न गुप्ता, नोडल अधिकारी, थैलेसीमिया सेंटर
शादी से पहले मेडिकल कुंडली मिलाना जरूरी है। ऐसा करने से थैलेसीमिया जैसी कई बीमारियों को आने वाली पीढ़ी में ट्रांसफर करने से रोका जा सकता है। – डॉ. अनिल नौसरान
जागरुकता की कमी थैलेसीमिया के विस्तार का सबसे बड़ा कारण है। अगर शादी से पहले थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य कर दी जाए तो इसे जड़ से रोका जा सकता है। – राजन चौधरी, संस्थापक, आई ड्रीम टू ट्रस्ट