रजवाहों और नहर सफाई के लिए 24 अक्तूबर रात से बंद होगी गंगनहर।
शारदा न्यूज, मेरठ। नहर और रजवाहों की सफाई के नाम पर हर साल सिंचाई विभाग में करोड़ों का घपला होता है। सफाई के नाम पर खानापूर्ति कर सरकारी कोष की जमकर बंदरबांट की जाती है। इस बार भी 24 अक्तूबर से गंगनहर को बंद करने की घोषणा हो चुकी है।
सिंचाई विभाग ने गंगनहर से जुड़े रजवाहों और माइनरों की सफाई के लिए शासन को साढ़े तीन करोड़ रुपये का बजट स्वीकृति के लिए भेजा था। जिसमें से दो करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। दशहरे के बाद हर साल ही रजवाहों और नहरों से सिल्ट सफाई की योजना तैयार कर सिंचाई विभाग शासन से धनराशि लेकर मोटा खर्च करता है। लेकिन धरातल पर यह काम आंशिक ही नजर आता है।
जनपद में कई माइनर ऐसे हैं, जहां कई सालों से टेल तक पानी नहीं पहुंचा है। शहर की ही अगर बात करें तो बिजली बंबा बाईपास के साथ बहने वाले माइनर में कभी कभी ही पानी नजर आता है, लेकिन यह टेल तक नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में सफाई को लेकर सवाल खड़े होते हैं।
375 किमी लंबे रजवाहे और 299 किमी लंबे माइनर होने हैं साफ
सिंचाई विभाग के अभिलेखों में रजवाहों और माइनरों की लंबाई जो कई दशक पहले दर्ज थी, आज भी वही चली आ रही है। इसी लंबाई के हिसाब से वह बजट तैयार कर शासन को भेजते हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। कई रजवाहे और माइनरों का तो अब अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। मवाना रोड़ पर गंगानगर के बाहरी क्षेत्र से लगता हुआ कभी एक रजवाहा बहता था, लेकिन आज वह मौके से गायब है। उसकी जगह वहां पर कालोनियों ने ले ली है। लेकिन सिंचाई विभाग अपनी इस जमीन को आज तक वापस तो नहीं ले पाया, लेकिन कागजों में दर्ज ऐसे तमाम रजवाहों और माइनरों की सफाई के नाम बजट तैयार कर शासन से पैसा जरूर वसूल रहा है।
नहर में सफाई के नाम पर होता है खनन
गंगनगर 24 अक्तूबर से बंद हो जाएगी। जिस कारण मेरठ शहर को मिलने वाला गंगाजल आपूर्ति प्रभावित होगा। लेकिन सफाई की अगर बात करें तो इस नहर की सफाई के नाम पर विभाग कुछ नहीं करता, बल्कि आसपास के लोग और रेत खनन माफिया नहर बंद होते ही रेत का खनन कर ले जाते हैं, और देखने वालों को लगता है कि नहर साफ हो गई। जबकि किनारों पर सिल्ट हटाने के नाम पर कुछ खास नहीं होता है।
दोबारा तैयार हो रजवाहों और माइनरों की सूची
आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना का कहना है कि शासन को चाहिए कि अब नये सिरे से प्रदेश के सभी रजवाहों और माइनरों की राजस्व विभाग से पैमाइश कराकर उनकी वास्तविक लंबाई और चौड़ाई दर्ज की जाए। इससे पता चल जाएगा कि पिछल्ले चार दशक के भीतर सिंचाई विभाग की जमीन सहित रजवाहों और माइनरों पर कितने कब्जे हुए हैं।