- सुप्रीम कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण के लिये ज्यादा मुआवजे पर दिया आदेश।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी में कथित तौर पर जमीन अधिग्रहण के लिए ज्यादा मुआवजा दिए जाने के मामले की जांच का दायरा बढ़ाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने एसआईटी को पिछले 15 सालों के नोएडा अथॉरिटी के सीईओ, एस्टेट आॅफिसर और लॉ आॅफिसर की संपत्ति की जांच करने का आदेश दिया है।

एसआईटी की नई जांच रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और एन के सिंह की पीठ ने जांच पूरी करने के लिए इसे दो और महीने का समय देने पर सहमति व्यक्त की। पिछली रिपोर्ट में रकळ ने बताया था कि नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों की मिलीभगत से जमीन मालिकों को 20 मामलों में ज्यादा मुआवजा दिया गया। इन अधिकारियों और उनके परिवार वालों की संपत्ति की जांच की सिफारिश की थी। साथ ही, यह भी बताया गया कि नोएडा अथॉरिटी की जमीन आवंटन नीतियां बिल्डरों के पक्ष में थीं और अधिकार कुछ ही अधिकारियों के हाथों में केंद्रित थे। अथॉरिटी के कामकाज में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी को भी उजागर किया था। नोएडा अथॉरिटी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि मुआवजे का भुगतान अदालतों के फैसलों के आधार पर किया गया था। लेकिन कोर्ट ने कहा कि वे यह जानना चाहते हैं कि क्या नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों और जमीन मालिकों के बीच कोई मिलीभगत थी। सिफारिशों के आधार पर, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से नोएडा अथॉरिटी को एक मेट्रोपॉलिटन काउंसिल से बदलने पर विचार करने को कहा था। इसका मकसद अथॉरिटी को ज्यादा जन-केंद्रित बनाना था, ताकि अधिकार कुछ ही लोगों के हाथों में केंद्रित न रहें।
कई बिल्डरों द्वारा प्रोजेक्ट अधूरे छोड़ने से घर खरीदार परेशान हैं, जिन्होंने पैसे देने के बावजूद अपने घर नहीं पाए। ऐसे में यह शक पैदा हुआ कि क्या नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने बिल्डरों की पृष्ठभूमि और ट्रैक रिकॉर्ड की जांच किए बिना उन्हें प्रोजेक्ट शुरू करने की अनुमति दी।
दूसरी ओर, कुछ किसानों को उनकी जमीन के अधिग्रहण के लिए पर्याप्त मुआवजा नहीं मिला। वहीं, 20 मामलों में ज्यादा मुआवजा दिए जाने की शिकायतें भी सामने आईं। यूपी पुलिस ने ऐसे 12 मामलों में रिपोर्ट दर्ज की है।


