Home Hindi Kahaniya एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-10, पढ़िए…

एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-10, पढ़िए…

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तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी
तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी---

कहानी का पढ़िए अगला सीन-

 

अरुण खरे ( कानपुर )
अरुण खरे ( कानपुर )

सीन (अगला)

 नेवी कालोनी के रेलवे रिजर्वेशन हाल के अन्दर विन्डो नम्बर एक व विन्डो नम्बर दो में दो दो आदमी खड़े हैं। अजय लम्बे कदम बढ़ाता हुआ हाल के अन्दर प्रवेश करता है। और विन्डो नम्बर दो की लाइन में आकर खड़ा हो जाता है। फिर –

अजय : (अपने दोनों हाथ फैलाकर जम्हाई लेते हुए अपने आप से) आज तो बड़े सही समय पर आ गए हैं। भीड़ भी नहीं है। तीसरा नम्बर भी है। पर देखते हैं, टिकट मिल पाता है या नहीं।

 

                   सीन (अगला)

 

 ( रूपा का रिजर्वेशन हाल के अन्दर प्रवेश होता है। अजय की निगाह रूपा पर पड़ते ही-)

अजय : (रूपा की ओर देखकर) आइए आइए रूपा जी, बड़े सही समय पर आईं हैं आप। जल्दी से लाइन में लग जाइए। वैसे आज तो टिकट हंड्रेड पर्सेन्ट मिल ही जाना चाहिए।

 (रूपा मुस्कराते हुए विन्डो नम्बर एक की लाइन में आकर खड़ी हो जाती है।)

रूपा : (मुस्कराकर अजय की ओर देखते हुए) आज आप लगते हो बहुत जल्दी तैयार होकर आ गए।

अजय : अरे नहीं, जितनी जल्दी तैयार होकर आप आईं हैं, बस उतनी ही जल्दी मैं भी तैयार होकर अभी अभी आकर लाइन में खड़ा हुआ हूँ।

रूपा : (हंसते हुए) अच्छा तो मेरे और आपके यहां आने में बस थोड़ा सा ही फासला रहा।

अजय : हां..हां देखिए अभी कितनी शान्ति है थोड़ी ही देर में भीड़ बढ़ते ही धमाचौकडी होने लगेगी।

 

                   सीन (अगला)

 

रिजर्वेशन हाल के अन्दर एक सिन्धी भाई का प्रवेश होता है। सिन्धी भाई विन्डो नम्बर दो की लाइन में आकर खड़े होते हुए –

सिन्धी भाई : (अपने आप से) अरी बाबा आज बड़ी जल्दी मौके से आ गया। लाइन भी कम तो टाइम भी कम लगेगा। (ऊपर वाले को धन्यवाद करते हुए) ओ आज सांई की बड़ी कृपा है जी।

   (धीरे-धीरे करके लोगों का आना जारी है। लोग आ आकर लाइनों में लगते जा रहे हैं। इस तरह धीरे-धीरे लाइनों में आदमियों की संख्या सत्तर अस्सी के लगभग पहुंच जाती है। लाइन में खड़ा होकर कोई फार्म भर रहा है तो कोई विन्डो के पास रखे फार्म लेकर अपनी लाइन में लेकर फार्म भरने के लिए पेन की खोज कर रहा है। फार्म भरने के लिए पेन की तलाश करता एक आदमी विन्डो नम्बर एक की लाइन में लगे एक आदमी की शर्ट में लगा पेन देखकर –

पेन तलाशने वाला आदमी : अरे भाईसाहब, जरा एक मिनट के लिए अपना पेन दीजिए। फार्म भरना है।

पेन वाला आदमी : (पेन से रिफिल निकालकर देते हुए) ये लीजिए, फार्म कहीं भी जाकर भर लीजिए। फार्म भरकर मेरी रिफिल वापस कर दीजिए।

पेन तलाशने वाला आदमी : (रिफिल देख) अरे भाईसाहब ये क्या दे रहे हैं, पूरा पेन दीजिए न।

पेन वाला आदमी : भाईसाहब बुरा मत मानिएगा। मैने लोगों को पेन देकर आज तक सैकड़ों पेन गवाएं हैं। कभी बैंक में तो कभी किसी आफिस में। जिसे देखो वही मेरी जेब में लगे पेन को देखकर मुंह उठाए चला आता है और पेन देखकर बिलकुल आप ही की तरह कहता है –

भाईसाहब थोड़ा पेन दीजिए। पेन देने के बाद पेन वापस मिलते ही मैंने पेन जेब में लगाया नहीं कि दूसरा आकर बोला – भाईसाहब थोड़ा पेन मिलेगा क्या? हमने उनको थोड़े की जगह पूरा पेन निकालकर दिया। उन भाईसाहब ने कागज में कुछ लिख लिया। हमने पूछा – भाईसाहब लिख लिया। भाईसाहब बोले – आप चिन्ता मत कीजिए, अभी थोड़ा और लिखना है। बस अभी लिखकर आपका पेन देता हूँ। थोड़ी देर बाद देखा तो पता नहीं कहाँ गायब हो गए मेरा पूरा पेन लिए वो बड़े मियां। इसीलिये भाईसाहब मैं पूरा पेन किसी को नहीं देता हूं। और फिर क्या मैंने ठेका ले रखा है जरूरतमंदों को पेन बांटते रहने का।

पेन तलाशने वाला आदमी : (रिफिल मांगते हुए) लाइए लाइए रिफिल दीजिए भाईसाहब। मै आपकी बात से पूर्ण सहमत हूं। आप सही करते हैं कि कभी भी किसी को पूरा पेन नहीं पकड़ाते। नहीं तो आप पेन लुटा लुटा कर खरीदते रहेंगे और लूटने वाले पेन लूट लूट कर जोड़ते रहेंगे।

 

                  सीन (अगला)

 

अजय अपनी लाइन के बराबर दूसरी लाइन में खड़ी रूपा की ओर देखकर –

अजय : रूपा जी आज के मशीनरी युग में भी इतनी तेजी से काम होते हुए भी इन्सान परेशान है। कभी इस काम के लिए तो कभी उस काम के लिए इन्सान भटक रहा है। इन्सान समय निकालकर या छुट्टी लेकर दौड़भाग कर रहा है। फिर भी काम अधूरे ही पडे रह जाते हैं। ये सारी खामियां जनसंख्या की बढोत्तरी के चलते, सिस्टम के साथ न चलने का नतीजा है।

रूपा : सही कह रहे हैं आप। अगर सिस्टम के साथ काम किया जाए तो सारी परेशानियों को दूर किया जा सकता है। लोगों को काम के लिए छुट्टी लेने के झंझट को भी समय के साथ दूर किया जा सकता है।

  (विन्डो नम्बर एक की लाइन में रूपा के पीछे खड़ा लड़का अजय की ओर देखकर -)

रूपा के पीछे खड़ा लड़का : भाईसाहब इन्डिया का सारा सिस्टम ही गडबड है। मेरी समझ में नहीं आता कि मेरी नौकरी रहेगी या जाएगी।

अजय : क्यों?

रूपा के पीछे खड़ा लड़का : अरे भाईसाहब तीन दिन से बराबर आफिस से छुट्टी लेकर रिजर्वेशन कराने के लिए आ रहे हैं। समझ में नहीं आता कि आज भी टिकट हो पाएगी या नहीं। भाईसाहब कभी बिजली का बिल जमा करने के लिए तो कभी सिलेंडर के लिए छुट्टी लेता हूं। मेरा बोस भी बड़ी मुश्किल से छुट्टी देने के लिए राजी होता है। क्या करूँ? कहीं छुट्टी के चक्कर में एक दिन मुझे अपनी नौकरी न गंवानी पड़ जाए।

अजय : ये तो आपके बास की समझदारी पर निर्भर करता है। अगर आपके बास आपकी परेशानियों पर गौर करेंगे, तो शायद नौकरी छीनने का गलत कदम कभी नहीं उठाएंगे।

 

                 सीन (अगला)

 

रिजर्वेशन हाल के अन्दर दोनों विन्डो खुलते ही लाइनों में लगे आदमियों का शोर सुनाई पड़ता है –

लोगों का शोर : लाइन में लगे रहो भइया, विन्डो खुल गई… विन्डो खुल गई।

(अजय और रूपा एक दूसरे को देखकर खुश होते हैं। अजय खुश होकर आगे वाले आदमी से कहता है –

अजय : (आगे वाले आदमी पीठ में हाथ रखकर) हां भाई आगे जमकर खड़े रहना। कोई बीच में आकर घुसने न पाए। क्योंकि आज बड़ी मुश्किल से आगे खड़े होने को पाए हैं।

आगे खड़ा आदमी : भइया आप चिंता न करें। आगे लगने की कोई हिम्मत तो करे। साले को खड़े खड़े कबड्डी बना देगें।

अजय : (हंसते हुए) अरे भाई किसी को कबड्डी मत बनाना। पांच दस मिनट की बात है। फिर तो पीछे वाले समझेंगे।

(विन्डो के आगे खड़ा आदमी जैसे ही टिकट लेकर लाइन से बाहर होता है। अजय फौरन आगे खड़े आदमी को विन्डो की ओर इशाराकर-) अरे भाई आगे भी देखो विन्डो खाली है। हाथ बढ़ाकर टिकट कराओ।

 (आगे वाला आदमी फौरन हाथ बढ़ाकर विन्डो पर अपना फार्म देता है।)

अजय : (रूपा की ओर देखकर) लगता है (टिकट बनवा रहे आदमी की ओर इशाराकर) ये जनाब आज टिकट लेने के लिए नहीं कबड्डी खेलने की फिराक में हैं। इधर आदमी लाइन में लगा विन्डो तक पहुंचने के लिए मशक्कत कर रहा है। और ये जनाब हैं कि विन्डो खाली है, मगर जनाब का ध्यान कबड्डी खेलने की तरफ है।

रूपा : (हंसते हुए) लगता है कबड्डी कुश्ती पहलवान है। जहां भी जाते होंगे वहीं अखाड़ा नजर आता होगा।

अजय : (हंसते हुए) हां हां…

(अजय के आगे वाला आदमी विन्डो से टिकट लेकर लाइन से बाहर हो जाता है।)

रूपा : (अजय को देखकर हंसते हुए) अरे जनाब आपका भी ध्यान किधर है (कबड्डी पहलवान की ओर इशाराकर) वो देखिए कबड्डी पहलवान टिकट लेकर निकल चुके हैं, और आप भी क्या किसी से कुश्ती लड़ने की फिराक में हैं। आगे बढिए और टिकट लीजिए।

अजय: (टिकट विन्डो की ओर बढ़कर फार्म देते हुए रूपा की ओर देखकर) मैडम आप भी आगे बढ़कर टिकट लीजिए। आपका भी नम्बर आ गया है।

रूपा : (अजय को देख विन्डो की ओर बढ़कर) जी.. जी।

 

                   सीन (अगला)

 

अजय और रूपा अपनी अपनी विन्डो पर खड़े हुए रिजर्वेशन क्लर्क को कम्प्यूटर पर सीट चेक करते हुए देख रहे हैं।

विन्डो नम्बर दो का रिजर्वेशन क्लर्क : (अजय को फार्म वापस करते हुए) भाईसाहब टिकट फुल हो चुकी है। तत्काल के लिए कल फिर आकर ट्राई कर लीजिए।

अजय : (लाइन से बाहर होते हुए) अब कल फिर आकर क्या ट्राई करेंगे। आज टिकट ट्राई करते हुए तीसरा दिन है। जब किश्मत में ही जाना नहीं लिखा है तो इसके लिए क्या कर सकते हैं।

 (विन्डो नम्बर एक का रिजर्वेशन क्लर्क रूपा की ओर देखकर फार्म वापस करते हुए -)

विन्डो नम्बर एक का रिजर्वेशन क्लर्क : देखिए मैडम तत्काल फुल हो चुका है। आप चाहें तो कल…

रूपा : (बात को बीच में काटते हुए) सॉरी रहने दीजिए। मैं नैनीताल जाने का प्रोग्राम ही आज कैंसिल करती हूँ।

(रूपा लाइन से बाहर निकलकर आती है। अजय इन्तजार करते हुए रूपा को देखकर –

अजय : क्या हुआ टिकट मिला आपको?

रूपा : (अफसोस जाहिर करते हुए) नहीं मिल पाया। अब तो नैनीताल जाने का प्रोग्राम ही कैन्सिल करती हूँ मैं। आपको टिकट मिला।

अजय: नहीं मुझे भी नहीं मिल पाया। टिकट आज भी फुल थी।

रूपा : क्या आपको किसी अर्जेन्ट काम से जाना था

अजय : अर्जेन्ट तो था, क्योंकि मेरे अम्मा बाबू ने मुझे लड़की देखने के लिए बुलाया था। बस लड़की देखने जाना था। मगर अब सोचता हूँ कि वहां न जाकर अम्मा बाबू को यहीं बुला लूं लड़की देखने के लिए अगर आप हां कहें तो।

रूपा : (शरमाते हुए) मैं कहूँ से … आपका मतलब क्या है?

अजय : देखिए रूपा जी मैं तीन दिन से बराबर तत्काल का टिकट करवाने आया और तीनों दिन आपसे मुलाकात हुई। मुझे आप आत्मीय लगीं और मुझे इन तीन दिनों में आपसे अपनत्व सा महसूस होने लगा। रूपा जी किसी लड़की को थोड़ी देर देखकर उसके बारे में कैसे जाना जा सकता है। मैं इन तीन दिनों में आपके बारे में बहुत कुछ जान चुका हूँ। फिर अगर आप कहें तो.. मैं… ।

रूपा : (अजय की बात बीच में काटकर हंसते हुए) मैं भी यही चाहती हूँ, फिर जैसी आपकी मर्जी…।

अजय : (हंसकर) अरे अब आपने हामी भर ही दी है तो इसमें मर्जी की क्या बात है। अब तो हो चुकी शुरूआत है। (रूपा से हाथ मिलाते हुए) चलो कल फिर होती मुलाकात है।

 

 

( इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले सीन में बताएँगे)

 

कहानी का भाग-1

कहानी का भाग-2

कहानी का भाग-3

कहानी का भाग-4

कहानी का भाग-5

कहानी का भाग-6

कहानी का भाग-7

कहानी का भाग-8

कहानी का भाग-9

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