कृषि विज्ञान केंद्रों की 31वीं वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला आयोजित
शारदा रिपोर्टर मोदीपुरम। कृषि विज्ञान केंद्रों की 31वीं वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला में दूसरे दिन किसान उपयोगी नवीनतम तकनीकों की जानकारी कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों को दी गई। विभिन्न विशेषज्ञों ने कार्यशाला में व्याख्यान दिया। व्याख्यान के माध्यम से वर्तमान तकनीकों व नवीनतम तकनीकों के बीच की दूरी कम करने और तकनीकी कमियों को आंकने की कोशिश की गई।
डॉ. पी दास ने धान की सीधी बुवाई के विषय में विस्तार से जानकारी दी। बताया कि सीधी बुवाई तकनीक का प्रयोग करके वायुमंडल पर पड़ने वाले विपरित प्रभाव को रोका जा सकता है। धान की नर्सरी उत्पादन व रोपाई में होने वाले खर्च को बचाकर खेती की लागत को भी कम किया जा सकता है, साथ ही मृदा स्वास्थ्य में भी फसल अवशेषों के प्रबंधन द्वारा सुधार किया जा सकता है। डॉ. जेपी शर्मा ने बताया कि यदि किसान फसल उत्पादन के बाद कृषि उद्यमिता को भी अपनाए तो आने वाले भविष्य में किसान स्वयं आत्मनिर्भर होंगे।
कहा कि किसान द्वारा पैदा किए गए उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त कर सकेंगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्योंकि मुख्य रूप से गन्ने की फसल के लिए जाना जाता है। ऐसे में गन्ने के साथ सहफसली खेती की जानकारी के लिए डॉ. एसके शुक्ला ने अवगत कराया। गन्ने की फसल के साथ सहफसली खेती से लाभ में वृद्धि की जा सकती है, साथ ही किसानों की निरंतर आय हो सकती है। विभिन्न फसलों जैसे कि लहसुन, करेला, गोभी, बैंगन, टमाटर , सरसों आदि को सहफसली खेती के रूप में उगाया जा सकता हैं। डॉ. डीएस पिलानिया ने बताया कि किसानों के पास संरक्षित फसलों की पुरानी संरक्षित प्रजातियों को अनुसंधान को लेकर विभिन्न संस्थानों के साथ बांटने से होने वाले लाभों के विषय में जानकारी दी।
डॉ. रणधीर सिंह ने बताया कि केवीके वैज्ञानिकों व किसानों के मध्य सामंजस्य, सूचनाओं के सटीक और तीव्र आदान प्रदान के लिए सूचना तकनीकी के प्रयोग की महत्ता पर जानकारी दी, साथ ही उन्होंने बताया कि मौसम, रोग, कीट, पोषण प्रबंधन के संबंध में उपयोगी सूचना यदि सही समय पर किसानों के पास पहुंच जाए तो फसल पैदावार में सुनिश्चित वृद्धि प्राप्त की जा सकती हैं।
निदेशक प्रसार डॉ. पीके सिंह, डॉ. एसके लोधी, डॉ. एसके त्रिपाठी, डॉ. हरिओम कटियार आदि मौजूद रहे।