Saturday, October 11, 2025
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वैश्विक चुनौतियों से निपटने को न्यायिक सहयोग आवश्यक

शारदा रिपोर्टर मेरठ। विधि अध्ययन संस्थान, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के समन्वयक एवं एसोसिएट प्रोफेसर डा. विवेक कुमार त्यागी को ब्राजील की सबसे बड़ी फेडरल यूनिवर्सिटी — फ्लूमिनेंस फेडरल यूनिवर्सिटी — द्वारा ब्राजील के 1988 के संविधान की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित थर्ड कोलोक्यूम आॅन द सेलीब्रेशन आॅफ द 1988 ब्राजीलियन कॉन्स्टीट्यूशन एडवांसेस एंड सेटबैक्स आॅफ फंडामेंटल राइट्स इन द वर्ल्ड में मुख्य उद्घाटन वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया।

यह आयोजन प्रोफेसर एना एलिस डी कारली, प्रोफेसर मार्को ओएरियला एल. कैसमोकोस एवं प्रोफेसर मारकस वैगनर डी सीएएक्स के संयोजन में संपन्न हुआ। डाक्टर विवेक कुमार त्यागी ने ब्राजील के संविधान की वर्षगांठ पर ब्राजीलवासियों एवं समस्त विश्व को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने अपने संबोधन में मौलिक अधिकारों की वैश्विक प्रासंगिकता, न्यायिक व्याख्याओं और अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों की भूमिका पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।

कहा कि अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय न्यायालयों — जैसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय मानवाधिकार समिति यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय और अंतर-अमेरिकी मानवाधिकार न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णयों से मौलिक अधिकारों के स्वरूप और सुरक्षा को गहराई से प्रभावित किया है। उन्होंने हैंडसाइड बनाम यूनाइटेड किंगडम (1976), गोन्जालेज एट अल. बनाम मेक्सिको (2009), और दी वॉल केस जैसे उदाहरणों का उल्लेख करते हुए बताया कि इन निर्णयों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लैंगिक समानता और राज्य की उत्तरदायित्व प्रणाली को सुदृढ़ किया।

डाक्टर त्यागी ने यह भी रेखांकित किया कि आज के युग में डिजिटल निजता, जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय सुरक्षा और सूचना की पारदर्शिता जैसे नए आयाम मौलिक अधिकारों के समक्ष चुनौती के रूप में उभर रहे हैं, जिनसे निपटने के लिए वैश्विक न्यायिक सहयोग आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि 1988 का ब्राजीलियन संविधान विश्व के सबसे प्रगतिशील संविधानों में से एक है, जिसने क्लॉजुलास पेट्रियास (अपरिवर्तनीय संवैधानिक धाराओं) के माध्यम से अधिकारों के क्षरण से सुरक्षा सुनिश्चित की है। अंत में उन्होंने कहा कि बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक न्यायालयों का अंतरराष्ट्रीय सहयोग, तुलनात्मक न्यायशास्त्र और मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता ही भविष्य के न्यायिक विकास की दिशा तय करेगी।

 

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