श्री खाटू श्याम प्रकटोत्सव पर मां बगलामुखी मंदिर साकेत में हुआ हवन व भंडारे का आयोजन
शारदा रिपोर्टर
मेरठ। गुरुवार को मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला श्री दक्षिणेश्वरी काली पीठ प्राचीन वन खंडेश्वर महादेव शिव मंदिर कैलाश प्रकाश स्टेडियम चौराहा साकेत मेरठ मंदिर में भगवान श्री खाटू श्याम प्रकटोत्सव पर हवन पूजन व भंडारे में आए श्याम भक्तों ने हाजरी लगाई। मान्यता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण के मांगने पर बालक बर्बरीक ने इसी दिन अपने शीश का दान किया था।
आचार्य प्रदीप गोस्वामी जी बताते है कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान श्री खाटू श्याम प्रकटोत्सव दिवस व गोविन्द द्वादशी के नाम से मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण के मांगने पर बालक बर्बरीक ने इसी दिन अपने शीश का दान किया था।
महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्यराज मूर की पुत्री मौरवी (कामकंटकटा) के अति बलशाली पुत्र बर्बरीक हुए। बर्बरीक को खाटूश्याम, श्याम सरकार, सूर्यावर्चा, शीश के दानी, तीन बाण धारी जैसे नामों से जाना जाता है। एक बार परम तेजस्वी बर्बरीक ने श्री कृष्ण से पूछा-”हे प्रभु! इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग क्या है?” श्री कृष्ण बोले-”हे पुत्र! परोपकार व निर्बल का सहारा बनकर सदैव धर्म का साथ देते रहना ही जीवन का सर्वोत्तम उपयोग है। इसके लिए तुम्हें बल और शक्तियां अर्जित करनी पड़ेंगी। अतः तुम महिसागर क्षेत्र में नवदुर्गा की आराधना कर शक्तियां अर्जित करो।” बर्बरीक ने तीन वर्ष तक कठोर तपस्या कर माँ दुर्गा को प्रसन्न किया। देवी ने बर्बरीक को तीन बाण और कई शक्तियां प्रदान की जिनसे तीनों लोकों को जीता जा सकता था।
उन्होंने बताया कि जब बर्बरीक को महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा हुई। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे, तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर युद्ध भूमि की तरफ प्रस्थान कर गए। भगवान श्री कृष्ण युद्ध जोकि युद्ध का अंत जानते थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर कौरवों को हारता देख बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगे तो पांडवों की हार निश्चित है। इसलिए लीलाधर ने ब्राह्मण का वेष धारण कर चालाकी से बालक बर्बरीक का शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक को आश्चर्य हुआ कि कोई ब्राह्मण उनका शीश क्यों मांगेगा ऐसा सोचकर उन्होंने ब्राह्मण से उनके वास्तविक रूप में दर्शन की इच्छा व्यक्त की। श्री कृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप के दर्शन कराए। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने बर्बरीक की यह बात स्वीकार कर ली और उनका सिर सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया।
शीश काटने के बाद माँ चंडिका देवी ने वीर बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचकर देवत्व प्रदान किया। तब इस नवीन जाग्रत शीश से श्री कृष्ण बोले -”हे वत्स! जब तक पृथ्वी, नक्षत्र और सूर्य-चन्द्रमा हैं, तब तक तुम सब लोगों के लिए पूज्यनीय हो जाओगे। इस तरह उनका शीश युद्ध भूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायज़ा ले सकते थे। श्री कृष्ण ने युद्ध की समाप्ति के बाद बर्बरीक के शीश को पुनः प्रणाम करते हुए कहा -”हे वीर बर्बरीक! आप कलयुग में मेरे नाम से सर्वत्र पूजित होकर अपने भक्तों के अभीष्ट कार्यों
को पूर्ण करोगे ।”
भगवान श्री खाटू श्याम प्रकटोत्सव पर मंदिर में हुए हवन पूजन व भंडारे के अवसर पर आचार्य प्रदीप गोस्वामी, श्रीमती आशा गोस्वामी, कामेश शर्मा, नरेश कुमार, गोपाल भया जी, विपुल सिंघल, हिमांशु वर्मा, धर्मेंद्र कुमार, वैभव सिंघल, आदि मौजूद रहे।