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Thursday, November 13, 2025
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नोएडा के जेपी इंफ्राटेक पर सीबीआई की रेड

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– सबवेंशन स्कीम के तहत पहुंची टीम, साइट आॅफिस में खंगाले लोन संबंधित दस्तावेज

गौतमबुद्धनगर। सीबीआई की टीम ने जेपी इंफ्राटेक से जुड़े प्रोजेक्ट पर रेड की है। ये रेड सबवेंशन स्कीम घोटाले को लेकर की गई है। हाल ही में सीबीआई ने नोएडा, ग्रेटरनोएडा और यमुना प्राधिकरण से जेपी इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के प्रोजेक्ट से संबंधित फाइल मांगी थी। जिसमें बड़ी अनियमितता की बात सामने आ रही है। ऐसे में सेक्टर-128 से सेक्टर-132 तक के सभी प्रोजेक्ट जो जेपी इंफ्राटेक में आते है रेड जारी है। ये प्रोजेक्ट अब सुरक्षा को पूरा करने है।
यहां दस्तावेजों को जब्त किया जा रहा है। साथ ही सेल आॅफिस में मौजूद लोगों से पूछताछ की जा रही है।

26 बिल्डरों की ले चुकी जानकारी

बता दे सीबीआई ने नोएडा प्राधिकरण से 9 बिल्डरों की जानकारी मांगी थी। इसी तरह यमुना और ग्रेटरनोएडा विकास प्राधिकरण से भी जानकारी मांगी थी। इस तरह से कुल 26 बिल्डरों की जानकारी ली गई है। जिनके यहां भी सीबीआई रेड कंडक्ट कर सकती है। हालांकि अभी जेपी इंफ्रा से जुड़े प्रोजेक्ट के दस्तावेज खंगाल रही है।

इन दस्तावेजों के आधार रेड

सीबीआई प्रोजेक्ट से संबंधित स्वीकृत पत्र, ले आउट प्लान, बकाया, रजिस्ट्री , के अलावा इनके को डेवलपर्स की जानकारी के आधार पर रेड कर रही है। जिसमें उन बायर्स का डेटा है जिनको बिल्डर ने सबवेंशन स्कीम के तहत लोन दिलाया और पैसे जमा नहीं किया। बिल्डर बायर्स और बैंक एग्रीमेंट के दस्तावेज भी खंगाले जा रहे है। बताया गया कि लोन के लिए लगाए गए अधिकांश दस्तावेज साठगांठ करके तैयार किए गए।

बिल्डर 2014 में लाए थे सबवेंशन स्कीम

नोएडा, ग्रेटर नोएडा में सब वेंशन स्कीम के तहत लाई गई ग्रुप हाउसिंग योजनाओं की शुरूआत वर्ष 2014 के आसपास हुई थी। योजना में धांधली के लिए कुछ बिल्डरों ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए बैंकों से लोन पास कराए। बैंकों ने बिना मूल्यांकन और निरीक्षण के रकम जारी कर दी। अधिकारियों के अनुसार, बिल्डर और बैंक के बीच अघोषित समझौते के तहत बैंकों ने बिल्डरों को लोन की पूरी राशि दे दी।

शर्तों के तहत फ्लैट का कब्जा मिलने तक बिल्डर को ही ईएमआई का भुगतान करना था, लेकिन कुछ समय बाद बिल्डरों ने ईएमआई देनी बंद कर दी और खरीदारों को फ्लैट भी नहीं दिए। इससे खरीदारों पर ईएमआई का बोझ आ गया और बड़ी संख्या में खरीदार डिफॉल्टर हो गए। कुछ वर्षों बाद इन योजनाओं को लाने वाले अधिकांश बिल्डर दिवालिया हो गए।

 

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