शारदा रिपोर्टर मेरठ। राष्ट्रीय गुर्जर महासभा भारत के कार्यकर्ताओं ने शनिवार को कलक्ट्रेट में प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने सम्राट मिहिर भोज को लेकर दिए जा रहे बयानों पर एतराज जताते हुए कहा कि असामाजिक तत्व ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज, जिन्हें इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी सम्राट के रूप में जाना जाता है, उनके संबंध में हाल के समय में जातीय विद्वेष फैलाने के उद्देश्य से विवाद खड़े किए जा रहे है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इतिहासकारों और अभिलेखों के अनुसार गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जी का संबंध गुर्जर प्रतिहार वंश से रहा है।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट जी के अभिलेखों और समकालीन शिलालेखों में स्पष्ट रूप से ‘गुर्जर” शब्द का उल्लेख मिलता है। इन ऐतिहासिक प्रमाणों के बावजूद आज कुण्ड असामाजिक तत्व ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड कर प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे समाज में अम और जातीय तनाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
कहा कि यह भी उल्लेखनीय है कि, इतिहास में राजपूत शब्द का प्रयोग 11 वीं शताब्दी के बाद प्रारंभ हुआ, जबकि गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जी उससे बहुल पूर्व के शासक थे। क्षत्रिय वर्ग में अनेक जातियों आती है, जिनमें गुर्जर, राजपूत, जाट, यदुवंशी, और अन्य समाहित है। इसलिए किसी एक जाति को पूरे क्षत्रिय इतिहास का प्रतिनिधि मान लेना, अन्य समुदायों के इतिहास और गौरव का अपमान करना है।
उन्होंने कहा कि 1948 में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज डिग्री कॉलेज की स्थापना हो चुकी है। जबकि अक्षरधाम मंदिर में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा स्थापित है और वर्षों पूर्व उनके नाम से मार्गों, संस्थाओं का नामकरण हो चुका है। तब कोई विवाद उत्पन्न नहीं हुआ। लेकिन अब मेरठ में बने गुर्जर सम्राट मिहिर भोज स्मृति द्वार के नामकरण को लेकर कुछ असामाजिक तत्व विवाद उत्पन्न कर रहे हैं।
ज्ञापन के माध्यम से चेतावनी दी गई कि यदि इस प्रकार की गतिविधियों नहीं रोकी गई, तो इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में व्यापक आंदोलन बड़ा हो सकता है, जिसकी शांति और कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए गुर्जर समाज यह मांग करता है कि, गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के नाम के साथ ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित गुर्जर शब्द का सम्मानपूर्वक यथावत उपयोग सुनिश्चित किया जाए।