जातिगत जनगणना: लोकतंत्र की गहराई या सत्ता का समीकरण?

आदेश प्रधान एडवोकेट | भारत जैसे बहुस्तरीय, बहुभाषी और बहुजातीय देश में “जाति” कोई साधारण सामाजिक पहचान नहीं, बल्कि सत्ता, संसाधन और सम्मान की त्रयी का प्रतिनिधित्व करती है। यद्यपि भारतीय संविधान ने समानता का वादा किया था, लेकिन यथार्थ यह है कि आज भी जाति हमारी राजनीति, प्रशासन, न्याय और नीतियों का अदृश्य ढांचा बनी हुई है। ऐसे में जातिगत जनगणना — जो 1931 के बाद ठहर सी गई थी — एक बार फिर केंद्रबिंदु बन गई है।
अब प्रश्न यह है कि क्या जातिगत जनगणना से सामाजिक न्याय की वास्तविक स्थापना हो सकेगी, या यह एक और राजनीतिक चक्रव्यूह होगा, जिसमें वोट और जाति का समीकरण उलझ जाएगा?
जातिगत जनगणना की पृष्ठभूमि: एक इतिहास, जो अधूरा रह गया
भारतीय जनगणना का इतिहास 1872 से शुरू होता है, लेकिन 1931 की जनगणना वह आखिरी मौका था जब सभी जातियों का आंकड़ा सार्वजनिक रूप से दर्ज किया गया। 1951 से लेकर अब तक केवल अनुसूचित जातियों (SC) और जनजातियों (ST) की गणना होती रही है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की संख्या पर कोई अधिकारिक आंकड़ा केंद्र सरकार के पास नहीं है, जबकि देश की नीतियों का एक बड़ा हिस्सा इसी वर्ग के नाम पर तैयार होता रहा है।
मंडल आयोग (1980) ने OBC की संख्या 52% बताई थी, लेकिन यह आंकड़ा एक नमूना सर्वेक्षण पर आधारित था, न कि जनगणना पर। इससे सरकारों को OBC आरक्षण का नैतिक आधार तो मिला, लेकिन संख्यात्मक प्रमाण नहीं।
जनगणना की अनुपस्थिति: असमानता की गूंगी तस्वीर
जातिगत आंकड़ों की अनुपस्थिति ने भारतीय लोकतंत्र में एक बड़ा खालीपन छोड़ दिया है। आप एक ऐसी गाड़ी चला रहे हैं, जिसका नक्शा आपके पास ही नहीं है। केंद्र सरकार, जो तमाम योजनाओं को जाति-आधारित आरक्षण, स्कॉलरशिप, कोटा और प्रतिनिधित्व के नाम पर लागू करती है, उसी के पास यह आंकड़ा नहीं है कि जिस वर्ग के लिए योजना बनी है, वह वाकई कितनी जनसंख्या रखता है?
क्या यह न्याय है या सुविधा से किया गया अंधापन?
राज्य सरकारों की पहल: एक असंतुलित सामंजस्य
जब केंद्र ने कदम पीछे खींचे, तब कुछ राज्य आगे आए:
बिहार
बिहार सरकार ने 2022–23 में जातिगत सर्वेक्षण कर 215 जातियों की सूची प्रकाशित की। रिपोर्ट के अनुसार:
EBC 36%, OBC 27% ,SC/ST,लगभग 20%,
सवर्ण महज 15% यह आंकड़ा राजनीतिक भूचाल बन गया। जातिगत जनसंख्या में EBC और OBC का कुल प्रतिशत 63% बताता है, जबकि उन्हें राज्य में आरक्षण 27% तक सीमित है। यह असमानता “जातीय न्याय” की मांग को उग्र बना रही है।
राजस्थान, ओडिशा और तेलंगाना, राजस्थान ने ‘सामाजिक न्याय अध्ययन’ की बात की, जबकि तेलंगाना ने पहले से ही SECC (2011) के आंकड़ों को नकारा बताया। ओडिशा ने भी OBC सर्वे शुरू किया।
केंद्र सरकार का रुख: उलझा हुआ तर्क
केंद्र सरकार का कहना है कि जातिगत जनगणना “जटिल, भ्रम पैदा करने वाली और असामाजिक प्रभाव” ला सकती है। 2011 की SECC के अनुभवों को आधार बनाकर उन्होंने कहा कि 46 लाख से अधिक जातियों का अनावश्यक डेटा आया। आंकड़े बेमेल और अव्यवस्थित थे। किसी नीति निर्णय का आधार नहीं बन सके।
लेकिन यह तर्क विरोधाभासी है। जब धर्म, भाषा, आर्थिक स्थिति और यहां तक कि टॉयलेट की संख्या तक का डेटा इकठ्ठा किया जा सकता है, तो जाति को छोड़ देना केवल राजनीतिक भय का प्रमाण प्रतीत होता है ।
जाति, राजनीति और वोट: असली मकसद क्या है?
भारतीय लोकतंत्र में जाति केवल सामाजिक ढांचे का हिस्सा नहीं, बल्कि चुनाव की रीढ़ है। हर दल उम्मीदवार तय करते समय जाति-समूह का हिसाब करता है। चुनावों में जातिगत समीकरण, गठबंधन और “बिरादरी सम्मेलन” जैसे शब्द आम हो चुके हैं।
तो फिर जातिगत जनगणना से परहेज़ क्यों?
क्योंकि सटीक आंकड़े आने के बाद
OBC की संख्या 50% से अधिक साबित हो सकती है।
वर्तमान आरक्षण सीमा (50%) पर पुनर्विचार की मांग बढ़ेगी। सवर्ण वोटबैंक पर असर पड़ेगा — जो सत्ता में बैठी ताकतों के लिए अहम है।
सुप्रीम कोर्ट और 50% सीमा की बहस
इंदिरा साहनी केस (1992) में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की थी। यह एक “सावधानी भरी संतुलन रेखा” मानी गई। लेकिन यदि OBC की वास्तविक जनसंख्या 52% या उससे अधिक निकले, तो क्या यह सीमा न्यायपूर्ण रहेगी?
जातिगत जनगणना इस बहस को न केवल पुनर्जीवित करेगी, बल्कि न्यायपालिका, विधायिका और नीति निर्माताओं को नई चुनौती भी देगी।
सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक विभाजन
जातिगत जनगणना की आलोचना करने वालों का कहना है कि इससे जातियों की पहचान और गहराएगी।
“हम-वे” की मानसिकता बढ़ेगी। सामाजिक सौहार्द को क्षति पहुंचेगीलेकिन इन तर्कों में एक भय की राजनीति छुपी है। क्या जातिगत विषमता को इसलिए अनदेखा किया जाए क्योंकि उसका समाधान कठिन है?
सच्चा सामाजिक सौहार्द तभी संभव है जब असमानता को आंकड़ों से पहचाना जाए और उसे नीति द्वारा पाटा जाए।
राजनीतिक लाभ: कौन होगा सबसे बड़ा विजेता?
अब बात करते हैं उस विषय की, जो हर नागरिक के मन में गूंज रहा है — इस जातिगत जनगणना से किस राजनीतिक दल को सबसे अधिक लाभ मिलेगा?
भारतीय जनता पार्टी (BJP)
BJP की राजनीति लंबे समय तक हिंदू एकता और सवर्ण नेतृत्व पर टिकी रही है। हालांकि, 2014 के बाद पार्टी ने पिछड़े वर्गों को साधने के लिए: OBC आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया। कई पिछड़े नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया। जातिगत प्रतीकों को अपनाने की कोशिश की। लेकिन यदि OBC की जनसंख्या 60% के आसपास आती है, तो आरक्षण की मांग तेज होगी — और BJP को सवर्ण असंतोष का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, RSS की दीर्घकालिक जाति-विरोधी विचारधारा से भी यह कदम टकरा सकता है।
कांग्रेस
कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया है और “जितनी आबादी, उतना हक” का नारा दिया है। यह नारा मंडल युग की वापसी का संकेत है, जहाँ कांग्रेस खुद को SC/ST/OBC वर्गों के वास्तविक प्रतिनिधि के रूप में पेश कर सकती है।
Bihar सर्वेक्षण के बाद राहुल गांधी की भाषा और रणनीति स्पष्ट रूप से जातीय न्याय के समर्थन में दिखी है।
क्षेत्रीय दल -असली लाभार्थी
जातिगत जनगणना से सबसे बड़ा फायदा उन दलों को मिलेगा जिनकी राजनीति ही जाति-आधारित प्रतिनिधित्व पर टिकी है:
राजद (बिहार) – मंडल राजनीति के प्रतीक
सपा (उत्तर प्रदेश) – यादव, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व
JDU, DMK, RLD, BJD – सभी OBC हितों को प्राथमिकता देते हैं
ये दल इस जनगणना के आधार पर केंद्र से आरक्षण वृद्धि, प्रतिनिधित्व, सरकारी योजनाओं में बदलाव और सामाजिक अनुपात की मांग करेंगे। संक्षेप में कहें तो, जातिगत जनगणना अगर खुलकर सामने आती है, तो राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र OBC बन जाएगा, और इससे सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों को मिलेगा।
क्या यह लोकतंत्र की गहराई है?
जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि भारतीय गणराज्य के आत्म-निरीक्षण का अवसर है। यह तय करेगा कि हम सचमुच एक समानता आधारित समाज बनाना चाहते हैं या वोट बैंक आधारित गणराज्य। इसलिए अब समय है कि इस विषय पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार हो।आंकड़े राजनीति के हाथों की कठपुतली न बनें। न्याय, समावेश और सम्मान के आधार पर नीतियाँ तैयार हों। जातिगत जनगणना एक अवसर है — यदि इसे साहस और संवेदना से पूरा किया जाए। वरना यह महज सत्ता की जाति-पहेली बनकर रह जाएगी। कांग्रेस और क्षेत्रीय दल सबसे बड़े लाभार्थी बन सकते है।
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