– नाला और कूड़ा सफाई पर कर दिए लाखों रुपए खर्च, फिर भी गंदे हैं नालें
शारदा रिपोर्टर
मेरठ। शहर भले ही साफ न हो, लेकिन निगम के खजाने से प्रति वर्ष 82 करोड़ रुपये जरूर साफ हो रहे हैं। बावजूद शहर में हर तरफ कूड़े के ढेर लगे हैं। नाले और नालियां उफन रही हैं। आलम यह है कि, गंदगी के कारण शहर की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। मेरठ शहर कितना साफ है उसका खुलासा राष्ट्रीय स्तर पर क्वालिटी आफ इंडिया कर ही चुका है। इस सब के लिए नगर निगम की व्यवस्था और अधिकारियों की लापरवाही सामने आ रही है।
शहर के नालों की सफाई व्यवस्था को जांचते हुए महापौर हरिकांत अहलूवालिया को इतना समय बीत गया। लेकिन देश के अन्य शहरों की नजरों में मेरठ का नाम साफ शहरों में दर्ज नहीं करा पाए। कमी भले ही निगम प्रशासन की हो या फिर सफाई कर्मचारियों की। लेकिन जनता के बीच जवाबदेही महापौर की ही बनती है।
हालांकि, शहर की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने को लेकर कई बार स्थानीय पार्षदों द्वारा सदन में भी आवाजें उठाई गई। लेकिन उन्हें भी दबा दिया गया। शहर की सफाई को लेकर पार्षदों ने कई बार सदन में आवाज बुलंद की। सफाई की आवाज उठाना पार्षदों को भारी भी पड़ा। विरोध इतना हुआ कि, शहर में सफाई की मांग निगम की फाइल और टाउन हॉल की चारदीवारी में कैद होकर रह गई।
शहर में नहीं होती दो टाइम सफाई
शासनादेश के मुताबिक शहर में दो टाइम सफाई होनी चाहिए। तहसील मवाना में शासनादेश का पालन हो रहा है। यानी दो टाइम सफाई होती है, लेकिन मेरठ में नहीं। अगर सही मायने में सफाई व्यवस्था को देखा जाए तो एक टाइम होने वाली सफाई में भी औपचारिकता ही पूरी होती है। शहर के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां पर माह में दो दिन भी सफाई कर्मी नहीं पहुंचते हैं। यही कारण है कि सड़कों पर पड़ा कूड़ा सड़ता रहता है। जबकि, नाले बजबजा रहे हैं।
जनसंख्या के अनुपात में सफाईकर्मी भर्ती की मांग
जनसंख्या के साथ साथ शहर का भी विस्तार हो रहा है। हाल में शहर की जनसंख्या 25 लाख मानी जा रही है। जबकि नगर निगम में स्थाई सफाई कर्मचारी 967 और अस्थाई 2215 हैं।सफाई कर्मचारी नेता जनसंख्या के अनुपात में सफाई कर्मचारियों की भर्ती करने की आवाज उठाते रहे हैं। निगम में सफाई से संबंधित मशीनरी तो बढ़ती चली गई, लेकिन सफाई कर्मचारियों की संख्या कम होती जा रही है।