शारदा रिपोर्टर, मोदीपुरम। वैज्ञानिकों के पास ज्ञान और अनुभव दोनों हो, उनका समावेश कर एक वैज्ञानिक होने के नाते प्रयोगों को निरंतर आगे बढाया जाए, जिससे अनुसंधान के कार्यो को गति प्रदान की जा सकें। वैज्ञानिक प्रोटोकॉल के अतिरिक्त स्वयं की प्रेरणा से अधिक से अधिक कार्य करें, जिससे तकनीकी ज्ञान को कम समय में किसानों के खेतों तक पहुंचाया जा सके। कृषि विवि में आयोजित कृषि विज्ञान केंद्र की 31वीं वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने यह बात कहीं।
उत्तर प्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्रों की 31वीं वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन 24 से 26 सितंबर तक किया जा रहा है। कार्यशाला में प्रदेश के 89 कृषि विज्ञान केंद्रों के अध्यक्ष, विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के निदेशक प्रसार भाग ले रहे हैं। मुख्य अतिथियों ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उ
न्होंने कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्रदर्शन इकाईयों व तकनीकी पार्क के सुदृढ़ीकरण पर जोर दिया, जिससे कृषि विज्ञान केंद्र पर आने वाले किसान स्वयं तकनीकों को देखकर समझ सकें। उन्होंने राज्य के 75 जिलों में स्थापित हाईटेक नर्सरी के महत्व पर प्रकाश डाला व विभिन्न महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा नर्सरी उत्पादन कर आर्थिक लाभ कमाने की बात कही। कुलपति डॉ. केके सिंह ने विश्वविद्यालय द्वारा कृषि विज्ञान केंद्रों के सहयोग से आयोजित किए जाने वाले टेली एग्रीकल्चर कार्यक्रम, विभिन्न वाहटसएप ग्रुप के माध्यम से कृषि व मौसम संबंधित जानकारी किसानों तक सटीकता से पहुंचाने की जानकारी दी।
डॉ. राघवेन्द्र सिंह ने बताया कि सन 1974 में स्थापित प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र पुडुचेरी से लेकर 50 वर्षो में स्थापित 731 कृषि विज्ञान केंद्रों की प्रगति व समय के साथ विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति, वर्तमान कृषि के स्वरूप की स्थापना में कृषि विज्ञान केंद्रों पर जानकारी दी। डॉ. पी दास ने कहा कि वर्तमान समय में मौसम आधारित कृषि पद्धति अपनाने की आवश्यकता हैं।
डॉ. केडी कोकाटे ने कहा कि आलू की खेती में उत्तर प्रदेश राज्य ने देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया हैं। इसी प्रकार आम के बागों की उचित देखभाल तथा नई तकनीकों के प्रयोग से आम के निर्यात को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता हैं।
डॉ. जेपी शर्मा ने कहा कि देश की जीडीपी में कृषि उत्पाद का योगदान माना जाता है, परंतु यदि प्रसंस्कृत उत्पादों को इसमें जोड़ दिया जाए तो देश की लगभग 40 प्रतिशत जीडीपी कृषि पर आधारित हैं। ऐसे समय में कृषि विज्ञान केंद्रों को अधिक सतर्कता के साथ नवीनतम तकनीकों को विशेष रूप से खाद्य प्रसंस्करण के विषय में किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता हैं।
कार्यक्रम में दो पुस्तकों का विमोचन किया गया, साथ ही प्रदेश स्तर पर फसल अवशेष प्रबंधन, प्राकृतिक खेती, अनुसूचित जाति उपयोजना, निकरा, आर्या आदि परियोजनाओं में उत्कृष्ट कार्य को लेकर 25 कृषि विज्ञान केंद्रों को सम्मानित किया गया।
इस दौरान निदेशक प्रसार डॉ. पीके सिंह, डॉ. सौम्या पांडेय, डॉ. रामजी सिंह, डॉ. विवेक, डॉ. आरएस सेंगर, डॉ. रविन्द्र कुमार, डॉ. बीआर सिंह, डॉ. पंकज कुमार, डॉ. एसके लोधी, डॉ. एसके त्रिपाठी, डॉ. हरिओम कटियार आदि मौजूद रहे।