विश्व कछुआ दिवस पर विशेष: नदियों में कछुओं के अस्तित्व पर खतरा, नौ प्रजाति संकटग्रस्त

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  •  कछुए न रहे तो बिगड़ जाएगा नदियों में जैव विविधता का संतुलन,
  • 12 प्रजाति के कछुए गंगा में पाए जाते हैं

बिजनौर। आज विश्व कछुआ दिवस मनाया जा रहा है। ऐसे में नदियों का प्राकृतिक सफाई कर्मी और पुराणों में भगवान विष्णु के कच्छप अवतार कहे जाने वाले कछुए आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहे हैं। गंगा में 12 प्रजातियों में से तीन को संकटग्रस्त घोषित किया जा चुका है। वहीं शिकार और इन्हें अपने घर के एक्वेरियम में पालने का शौक ही इनके लिए संकट बना हुआ है।

पूरे विश्व में कछुओं की यूं तो 300 से ज्यादा प्रजाति मिलती हैं, लेकिन भारत में केवल 29 प्रजातियां ही हैं। इनमें भी उत्तर प्रदेश में कुल 15 प्रजाति के कछुए मिलते हैं। गंगा की बात करें तो यहां पर सबसे ज्यादा 12 प्रजाति के कछुए मिलते हैं। लोग जहां अपने शौक के लिए इन्हें एक्वेरियम में पालकर अपनी संतुष्टि तो कर रहे हैं, लेकिन इनके अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहे हैं। असल में तस्कर गंगा और तमाम नदियों से इनके बच्चों को पकड़कर लोगों को पालने के लिए बेच रहे हैं, जिससे नदियों में इनकी संख्या कम होती जा रही है।

वहीं कुछ शिकारी कछुओं को पकड़कर बड़े होटल और चाइना, कोलकत्ता जैसी जगहों पर तस्करी कर रहे हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2023 में फरवरी माह में 30 से ज्यादा कछुओं के साथ बिजनौर वन विभाग की टीम ने तस्करों को पकड़ा था। वहीं इस साल मई माह में ही दोबारा नजीबाबाद क्षेत्र में 32 कछुओं को तस्करी के लिए ले जाते हुए पकड़ा गया।

कछुओं पर टिकी गंगा की जैव विविधता

गंगा की जैव विविधता संतुलन कछुओं पर ही निर्भर है। कछुए को गंगा का प्राकृतिक सफाईकर्मी भी कहा जाता है। कछुआ सवार्हारी होता है, इसलिए यह बीमार मछलियों, गंगा में सड़ने वाले जानवरों के शवों और अन्य दूषित चीजों को खा जाता है। इससे गंगा में गंदगी नहीं होती। डॉल्फिन के रहने के लिए साफ जल चाहिए। जहां कछुओं की संख्या अधिक होती, वहीं पर डॉल्फिन भी देखने को मिल जाती है। बिजनौर गंगा बैराज जीता-जागता उदाहरण है। यहां पर तीन से ज्यादा डॉल्फिन मौजूद हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ संरक्षण में जुटा

अभी तक वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने मिलकर हस्तिनापुर सेंक्चुअरि में चार हैचरी बनाई हैं। यहां पर कछुओं के अंडे संरक्षित किए जाते हैं। इस साल बिजनौर से छह कछुओं के 62 अंडे संरक्षित किए गए। 2013 से अब तक हस्तिनापुर सेंक्चुअरि में पांच हजार कछुओं को इसी तरह संरक्षण देकर दोबारा गंगा में छोड़ा जा चुका है। वन विभाग इसी साल विदुरकुटी में कछुआ पुनर्वास केंद्र बनाने की तैयारी कर रहा है।

दवाई और शूप के लिए शिकार और तस्करी

कछुओं को पहले एक्वेरियम में पालने के लिए नदियों से पकड़ा जाता है। खासतौर पर इनके बच्चों को बेच दिया जाता है। इसके अलावा बड़े कछुओं को अंध विश्वास के चलते मार दिया जाता है। असल में तस्कर कछुओं को पकड़कर इनकी तस्करी दिल्ली में करते हैं। वहां से इनकी तस्करी विदेशों में खासतौर पर चीन के लिए होती है। वहां कछुओं के मांस और शेल से दवाई बनाने का दावा किया जाता है। कुछ जगहों पर इनका शूप भी बनाया जाता है।

जैव विविधता बचानी है तो कछुओं को बचाना होगा : ज्ञान सिंह
एसडीओ वन विभाग ज्ञान सिंह कहते हैं कि लोग अपने एक्वेरियम की शोभा बढ़ाने के चक्कर में अपराध कर रहे हैं। किसी भी भारतीय कछुए को पालना प्रतिबंधित है। पकड़े जाने पर जेल जाना पड़ेगा। इसके अलावा जो तस्करी हो रही है, उसे रोकने के लिए टीम गठित की गई है।

 

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