– ठाकुर और त्यागी बिरादरी जता चुकी है नाराजगी, प्रजापति और सैनियों में हो रहा बंटवारा
– प्रत्याशी चयन में वरिष्ठ नेताओं की मनमानी अब पड़ रही भारी


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। लोकसभा के पहले और दूसरे चरण में होने वाले मतदान से पहले भाजपा कई सीटों पर विरोध और वोटों के बंटवारे के कारण घिरती नजर आ रही है। इनमें सबसे ज्यादा स्थिति खराब मेरठ, मुजफ्फरनगर और कैराना सीट पर है। जहां ग्राउंड रिपोर्ट पूरी तरह भाजपा के खिलाफ दिखाई दे रही है।

मेरठ सीट पर स्थानीय के ऊपर बाहरी प्रत्याशी को वरियता देकर भाजपा नेतृत्व ने क्या बताने का प्रयास किया है? इसका जवाब अब किसी के पास नहीं है। लेकिन अब हाल ये है कि चुनाव धरातल पर नहीं बल्कि हवा में ही तैरता नजर आ रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें कई बिरादरियों का विरोध और वोटों का बंटवारा भाजपा के लिए कोढ़ में खाज जैसा काम कर रहा है।

मेरठ सीट पर पिछले तीन चुनाव से वैश्य बिरादरी का सांसद रहता आया है। वैश्य बिरादरी के करीब दो लाख वोट इस सीट पर हैं। अहम बात ये है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र कहे जाने वाले मेरठ में वैश्य बिरादरी के कई कद्दावर नेता है।

सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटने के पीछे यदि उनकी आयु को बताया जा रहा है, तो वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। क्योंकि अरुण गोविल जहां राजेंद्र अग्रवाल के ही हम उम्र हैं, तो भाजपा में कई और उनकी उम्र के नेता चुनाव मैदान में है। इससे अलग कैंट विधायक अमित अग्रवाल, पूर्व महानगर अध्यक्ष मुकेश सिंघल, वासु आॅटोमोबाइल के मालिक अजय गुप्ता, संजीव गोयल सिक्का, विनीत अग्रवाल शारदा सहित कई अन्य वैश्य नेता भी चुनाव की लाइन में थे।

अब स्थिति ये है कि स्थानीय बड़े नेता तो प्रत्याशी के संपर्क में है। लेकिन ग्राउंड पर काम करने वाले कार्यकर्ता कहीं खामोश से नजर आ रहे हैं। इसके अलावा त्यागी बिरादरी का विरोध और अब बसपा से त्यागी प्रत्याशी का चुनाव में आना भाजपा के लिए बड़ा नुकसान है। इसके साथ ही मुजफ्फरनगर में बसपा प्रत्याशी दारा प्रजापति के कारण भाजपा से मेरठ में भी प्रजापति समाज कटा हुआ नजर आ रहा है। इसके अलावा गुर्जर समाज की वोटों का जहां बंटवारा तय है, तो जयंत के आने के बाद भी जाट वोटों को लेकर भी भाजपा को पूरी तरह निश्चिंत नहीं हो जाना चाहिए। ऐसे में मेरठ सीट पर भाजपा फंसी हुई नजर आ रही है।

मुजफ्फरनगर सीट पर मामला पूरी तरह फंसा हुआ है। यहां पर ठाकुरों को मनाने के लिए आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद ठाकुर चौबीसी के गांव र्राधना में जनसभा कर रहे हैं। लेकिन सूत्रों की मानें तो इसका कोई प्रभाव नाराज ठाकुरों पर पड़ने वाला नहीं है। वहीं इस सीट पर प्रजापति जहां भाजपा से पूरा कटा हुआ है, तो सैनी बिरादरी भी आधी बंटी होने की बात लोग कह रहे हैं। सपा के हरेंद्र मलिक और संजीव बालियान के बीच जाट मतों का बंटवारा तय है ही। इसके अलावा गुर्जर वोटों को लेकर भी मामला बिगड़ा हुआ है। जिस कारण इस बार हैट्रिक की तैयारी में लगे डा. संजीव बालियान मुजफ्फरनगर में बुरी तरह घिर गए हैं।

कैराना सीट का अपना अलग ही मिजाज है। जो लोग इस सीट पर मुस्लिम हिंदू धु्रवीकरण की बात करते हैं, वह यदि यहां की धरती पर जाकर चुनावी समर का हाल देखें तो हालात पूरी तरह बदले हुए नजर आएंगे। कैराना सीट पर भाजपा ने वर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी को मैदान में उतारा है। लेकिन क्षेत्रीय जनता उनसे खुश नहीं है। लोगों का कहना है कि वह पांच साल में इक्का दुक्का बार ही यहां आए हैं। जबकि कैराना लोकसभा सीट में शामली की तीनों विधानसभा आती हैं।

यहां पर मुस्लिमों का धु्रवीकरण तो सपा प्रत्याशी इकराहसन के पक्ष में तय है। ठाकुर और दलित वोट बसपा प्रत्याशी के पक्ष में जाने की बात लोग कह रहे हैं। जाट वोटों का बंटवारा भी यहां निश्चित रूप से भाजपा और सपा के बीच होना तय है। अब जो भाजपा का परंपरागत वोट कैराना सीट पर है, उसमें भी सपा प्रत्याशी की सेंधमारी बहुत तेज है। जबकि गुर्जर मतदाता भी यहां मनीष चौहान को प्रत्याशी न बनाए जाने से आहत है और भाजपा के लिए बंटवारे की पटकथा लिख सकता है। जिसके चलते कैराना सीट पर भाजपा पूरी तरह फंसी हुई है।

रालोद के साथ का मुस्लिमों में नहीं मिलेगा फायदा

भाजपा ने रालोद से गठबंधन किया है। ऐसे में जो जाट रालोद के साथ थे, उनमें भी अब बंटवारा हो चुका है। भाजपा प्रत्याशी की सीट पर रालोद समर्थित जाट भाजपा को वोट करेगा, इसका दावा नहीं किया जा सकता है। वहीं रालोद के पक्ष में विधानसभा चुनाव में वोट करने वाले मुस्लिम इस बार पूरी तरह कट चुके हैं। रालोद के मुस्लिम विधायक भी अपने यहां भाजपा के पक्ष में वोट करा पाएंगे, यह दावा करना मुश्किल है।

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