– नशे की हालत में कर रहे थे झगड़ा, टोकने पर चौकी में घुसकर पीटा, वर्दी फाड़ी।
लखनऊ। पुलिस विभाग के बड़े अफसर के बेटे ने अपने साथियों के साथ सिपाही को चौकी में घुसकर पीटा। इसके बाद भी बड़े अफसर के बेटे का एफआईआर में नाम नहीं। मामले में तीन दोस्तों को आरोपी बनाया गया है। लखनऊ में रईसजादों ने एक सिपाही को चौकी में बंद कर बुरी तरह पीटा। उसकी वर्दी फाड़ दी और चौकी में रखे सामान को उठाकर फेंक दिया। वजह सिर्फ इतनी थी कि सिपाही ने इनोवा सवार चार युवकों को आपस में झगड़ने से रोका था। इसी बात पर युवक भड़क गए। सिपाही को घसीटते हुए चौकी में ले जाकर बेरहमी से पीटा।
घटना की सूचना मिलने पर हजरतगंज थाने से पुलिस बल मौके पर पहुंचा। पुलिस ने तीन हमलावरों को पकड़ लिया, जबकि एक युवक गाड़ी लेकर फरार हो गया। यह घटना 29 मई की देर रात की है। अगले दिन, यानी 30 मई को हजरतगंज थाने में चुपचाप एफआईआर दर्ज कर ली गई। लेकिन मामले को आठ दिन तक दबा कर रखा गया। मामला तब सामने आया, जब पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी को पत्र लिखकर इसकी शिकायत की। चर्चा है कि जो युवक इनोवा लेकर फरार हुआ था, वह एक सीनियर आईपीएस अफसर का बेटा है।
कठिन से कठिन मामलों का 48 घंटे में खुलासा करने वाली लखनऊ पुलिस 13 दिन बाद भी उसकी पहचान नहीं कर पाई है। ऐसे में पुलिस कार्रवाई पर अब सवाल उठने लगे हैं। इस मामले में डीसीपी मध्य आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है- तीनों आरोपियों को निजी मुचलके पर थाने से जमानत दे दी गई थी। चौथे आरोपी की पहचान की जा रही है।
सिपाही अर्जुन यादव ने एफआईआर में कहा कि 29 मई की रात मैं पालीगंज-6 पर मौजूद था। मैं गश्त करते हुए पुलिस चौकी स्टेडियम के पास पहुंचा। वहां एक सफेद रंग की इनोवा गाड़ी खड़ी थी, जिसमें चार लोग सवार थे। चारों किसी बात को लेकर आपस में झगड़ रहे थे।
मैंने उन्हें शांत कराने की कोशिश की, तो वे भड़क गए और मुझे ही गालियां देने लगे। अचानक चारों मुझ पर हमलावर हो गए। मुझे कुत्ता कहा। फिर जबरन मुझे स्टेडियम चौकी पर ले जाने लगे और बोले- आओ, इसे इसकी चौकी में ही पीटते हैं।’ इसके बाद चारों ने मिलकर मुझे बहुत मारा-पीटा और मेरी वर्दी फाड़ दी।
पुलिस चौकी के अंदर रखी सरकारी संपत्ति को इधर-उधर फेंक दिया। इसके बाद मुझे जान से मारने की धमकी देते हुए फिर पीटा। शोर-शराबा सुनकर थाने से पुलिस चौकी पर पहुंची और मेरा बचाव किया। इसी बीच उनमें से एक व्यक्ति सफेद रंग की चार पहिया गाड़ी लेकर भाग गया। आरोपियों की बोलचाल और हरकतों से लग रहा था कि वे सभी नशे में थे। तीन आरोपियों से नाम-पता पूछा गया। उन्होंने अपने नाम जयप्रकाश सिंह, अभिषेक चौधरी और सुमित कुमार बताए। चौथे व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं बताया।
सिपाही की तहरीर पर तीन आरोपियों के खिलाफ शांति भंग, सरकारी कार्य में बाधा, मारपीट, धमकी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। लेकिन आईपीएस अफसर के बेटे को लेकर पुलिस की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। वहीं चश्मदीदों का कहना है कि पुलिस ने तीन हमलावरों को थाने लाकर कानूनी कार्रवाई की, लेकिन जो युवक कथित तौर पर आईपीएस अफसर का बेटा था, उससे न पूछताछ हुई, न उसका नाम लिखा गया, न ही गिरफ्तारी की गई। उसे मौके से ही सम्मानपूर्वक छोड़ दिया गया। एफआईआर में उसका नाम अज्ञात लिखा गया, जबकि मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी जानते थे कि वह कौन है और किसका बेटा है।
पुलिस महकमे के भीतर इस घटना को लेकर चर्चा तेज है। सीनियर अफसरों ने आॅफ द रिकॉर्ड कहा है कि यदि आरोप सही हैं, तो यह बेहद शर्मनाक है। एक सामान्य व्यक्ति द्वारा सिपाही की पिटाई और सरकारी संपत्ति की तोड़फोड़ पर उसे तत्काल जेल भेजा जाता, लेकिन यहां एक आईपीएस बेटे को खुला छोड़ दिया गया।
आठ दिन पहले पूर्व आईपीएस ने डीजीपी को लिखा था पत्र
आठ दिन पहले पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने यूपी के डीजीपी को इस मामले को लेकर एक पत्र लिखा था। उन्होंने इस प्रकरण को गंभीर और भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने वाला करार दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें जिस एडीजी अधिकारी का नाम बताया गया है, वह इस समय डीजीपी कार्यालय में तैनात हैं। इसलिए इस मामले की जांच किसी निष्पक्ष वरिष्ठ अधिकारी से कराई जानी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोनों पक्षों के बीच फैली भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके।