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Monday, November 24, 2025
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तकनीक बनाम सोच : शिक्षा के भविष्य पर संकट

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  • तकनीक बनाम सोच : शिक्षा के भविष्य पर संकट
डॉ. अंकित गर्ग, प्रोफेसर
(एपेक्स संस्थान प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, मोहाली, पंजाब।)

डॉ. अंकित गर्ग, प्रोफेसर | एक मशीन को कभी यह फर्क महसूस नहीं होता कि किसी शब्द से किसी का मन दुखा या नहीं, किसी कार्य से समाज पर क्या प्रभाव पड़ा। लेकिन इंसान वही है जो सोचता है, महसूस करता है, और दूसरों की भावनाओं को समझता है। जब हम शिक्षा से यह भावनात्मक जुड़ाव, नैतिक विमर्श, और तर्क की ताकत हटा देंगे, तब बचेंगे सिर्फ चलती-फिरती स्क्रिप्ट्स, न कि सोचने वाले इंसान।

 

 

विकास की दौड़ या विचारों की हार : हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ तकनीक हर पल नए कीर्तिमान बना रही है। स्मार्टफोन, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आॅटोमेशन – यह सब हमारी जिदगी को पहले से कहीं अधिक तेज, सरल और जुड़ा हुआ बना चुके हैं। परंतु इस चमकती सतह के पीछे एक स्याह सच्चाई छिपी है: हम इंसान तकनीकी रूप से तो आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन मानसिक, नैतिक और रचनात्मक स्तर पर धीरे-धीरे पिछड़ते जा रहे हैं।

कभी विचारों से भरे कक्षाएं होती थीं, आज उनमें केवल प्रेजेंटेशन हैं। पहले बच्चों को अपनी कल्पना से कहानियाँ गढ़नी होती थीं, आज अक उनके लिए कविताएँ और निबंध लिख रहा है। यह सच है कि तकनीक ने हमें जवाब देना सिखा दिया है, परंतु प्रश्न पूछने की क्षमता छीन ली है। क्या हम एक ऐसी दिशा में बढ़ रहे हैं जहाँ हमारी सोच की स्वतंत्रता, संवेदनशीलता, और नवाचार की भावना मशीनों के हवाले हो जाएगी?

तकनीक : सुविधा या सोच का संकट : तकनीक का उद्देश्य हमेशा रहा है मनुष्य के श्रम को आसान बनाना । परंतु जब तकनीक मनुष्य की सोचने की क्षमता को ही निष्क्रिय करने लगे, तो यह सुविधा नहीं, संकट बन जाती है। आज कोई छात्र कठिन प्रश्न का सामना नहीं करता। वह गूगल करता है, कोपाई करता है, और अगले टास्क पर बढ़ जाता है। वह प्रक्रिया में नहीं उतरता सिर्फ परिणाम चाहता है। धीरे-धीरे, यह प्रक्रिया उसे तथ्यों का उपभोक्ता बना देती है, न कि ज्ञान का खोजी ।
एक बच्चा जब बार-बार चैट जीपीटी या अन्य अक टूल्स से जवाब लेता है, तो वह अपना विश्लेषण करने का अभ्यास, तर्क गढ़ने की क्षमता, और स्वतंत्र चिंतन खो देता है। यह चिंताजनक इसलिए है क्योंकि आज हम जिस पीढ़ी को शिक्षा दे रहे हैं, वही कल के नेता, डॉक्टर, वैज्ञानिक और शिक्षक होंगे। यदि वे सोचने की बजाय सिर्फ पूछने और कॉपी करने के आदी हो जाएंगे, तो क्या हम एक निर्भर समाज की नींव नहीं रख रहे?

इंसान बनाम मशीन – क्या हम इंसान रह भी पाएंगे : एआई केवल डाटा से सीखता है, वह अनुभव नहीं करता। वह निष्कर्ष निकाल सकता है, पर उसमें संवेदनशीलता और संदर्भ की समझ नहीं होती। वह निर्णय तो ले सकता है, लेकिन नैतिक जिम्मेदारी नहीं निभा सकता। शिक्षा केवल परीक्षा पास कराने की प्रणाली नहीं है, वह एक व्यक्तित्व गढ़ने की प्रक्रिया है।

एक चेतावनी: सोच खो रही है, आत्मा सो रही है अब का बच्चा कहानी में अंत तक टिकता नहीं, क्योंकि उसका ध्यान स्क्रॉलह्व करने में है। वह सवालों की गहराई में नहीं जाता, क्योंकि उसका अभ्यास स्कैनिंग का है। तत्काल उत्तर पाने की आदत ने धैर्य, जिज्ञासा और विश्लेषण, इन तीनों को खत्म कर दिया है।

स्कूलों की कक्षा अब संवाद की नहीं, नोट्स ट्रांसफर की जगह बन गई है। शिक्षकों का काम विचार निर्माण नहीं, है। हम ऐसे छात्रों को बढ़ावा दे रहे हैं जो न तो असहमति को समझ पाते हैं, न ही स्वयं का पक्ष रखते हैं। वे एकतरफा सूचना के वाहक बन गए हैं। यह संकट आने वाले वर्षों में एक ऐसे समाज को जन्म देगा जहाँ लोग सोचेंगे नहीं, केवल रिएक्ट करेंगे। और यही वह बिंदु है जहाँ लोकतंत्र, संस्कृति और विवेक का क्षय शुरू होता है।

समाधान की दिशा – अब भी समय है चेतने का : समस्या स्पष्ट है, और समाधान भी उतना ही स्पष्ट। सोच को फिर से शिक्षा का केंद्र बनाना होगा। कक्षाओं में केवल उत्तर न दिए जाएँ, बल्कि प्रश्नों को खुला छोड़ा जाए ताकि बच्चे सोचें, बहस करें और खुद उत्तर ढूंढ़ें। एआई टूल्स का उपयोग जरूर करें, लेकिन केवल सहायक के रूप में। हर बच्चे को यह समझना चाहिए कि मशीन मदद कर सकती है, विचार नहीं दे सकती। शिक्षक को सिर्फ ज्ञान का स्त्रोत नहीं, बल्कि जिज्ञासा जगाने वाला मार्गदर्शक बनना होगा। बच्चों को गलतियाँ करने दो, क्योंकि वहीं से उनका विचार जन्म लेता है। अगर हम यह कदम अभी नहीं उठाएंगे, तो भविष्य में हमारे पास ऐसे छात्र होंगे जो 100 में 100 अंक लाते हैं। लेकिन एक स्वतंत्र विचार तक नहीं रख पाते ।

निष्कर्ष – सोच को जिदा रखना ही सच्ची शिक्षा है आज की शिक्षा व्यवस्था को तकनीक के यंत्रों से नहीं, बल्कि मानवता के मूल तत्वों से पुन: जोड़ने की आवश्यकता है। सोचिए, अगर एक बच्चा केवल ह्लअक से उत्तर लेनेह्व का आदी हो जाए, तो वह कभी स्वयं कुछ रच पाएगा क्या? कभी गलती से कुछ नया खोज पाएगा क्या?

शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकार बनाना नहीं है, बल्कि जिम्मेदार, समझदार और विवेकशील नागरिक तैयार करना है। इसलिए, खुद से, समाज से और अपनी शिक्षा प्रणाली से हमें ये सवाल पूछना ही होगा कि क्या हम शिक्षा दे रहे हैं, या सिर्फ कंटेंट खपा रहे हैं? क्या हम सोचने वाले नागरिक बना रहे हैं, या बस निर्देश मानने वाले उपभोक्ता? क्या हम इंसान गढ़ रहे हैं, या डेटा-फीडर? जवाब आपके पास है। और जब तक हम सोचते रहेंगे

नोट: संपादकीय पेज पर प्रकाशित किसी भी लेख से संपादक का सहमत होना आवश्यक नही है ये लेखक के अपने विचार है।

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