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एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-3, पढ़िए आगे क्या हुआ

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तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी
तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी---

कहानी का पढ़िए अगला सीन-

अरुण खरे ( कानपुर )

सीन (अगला)

   विन्डो नम्बर एक व विन्डो नम्बर दो की लाइन में लगे लोग चुपचाप खड़े हैं। तभी किसी की जोरदार खर्राटे लेने की आवाज़ सुनाई देती है। अजय और उसकी बगल वाली लाइन का एक लड़का आपस में बातें करते हैं।

अजय: (बगल वाली लाइन में लगे एक लड़के की ओर देखकर हंसते हुए) ये लो भइया लगता है कोनऊ सोने लगा।

बगल वाली लाइन का लड़का : (अगल बगल देखते हुए अजय से कहता है) अरे कोनऊ नहीं भइया, आपके आगे जो महाशय खड़े हैं। वही खर्राटा मार रहे हैं।

अजय के पीछे वाला लड़का : (आगे बढ़कर अजय से) भइया कागज की बत्ती बनाकर कान में डाल देव इनके। फिर देखो कमाल खर्राटा एक दम बन्द।

बगल वाली लाइन का लड़का : नहीं यार सोने दो उसको, बेचारे की नींद पूरी हो जाएगी।

अजय: यार गर्मी के मारे मुझे तो पसीना आ रहा है। और ये महाशय पता नहीं कैसे खड़े खड़े सो रहे हैं (अपने पेन्ट की जेब में हाथ डालते हुए) लगता है जल्दबाजी में मेरा रुमाल कमरे में ही रह गया।

बगल वाली लाइन का लड़का : रूमाल काहे को ढूंढ रहे हो भाया।

अजय: अरे भइया रूमाल होता तो अपने चेहरे का पसीना पोंछ लेते।

बगल वाली लाइन का लड़का : (अजय की ओर बढ़कर अजय के आगे खड़े हुए आदमी के कुर्ते का पिछला हिस्सा उठाते हुए) अरे भइया रूमाल की का जरूरत है। (कुर्ते का पिछला हिस्सा पकड़कर अजय को दिखाते हुए) ये जो है पसीना पोछने के लिए ही तो है। ये तो भइया पब्लिक के लिए ही अपने हाथ मुंह पोछने के लिए टेलर ने पिछवाड़े का पर्दा बनाया है। (अजय की ओर मुखातिब होकर) भइया यकीन न हो तो अपने मुंह का पसीना पोंछकर देख लो। अगले को मालूम भी नहीं पड़ेगा और आपका पसीना पुछ जाएगा। (अगल बगल वाली लाइनों में खड़े लोग हंसते हैं) पसीना पोंछो भइया.. पोंछो ।आपके बहुत पसीना आ रहा है। और आपके पास रूमाल भी नहीं है। अरे इस कुर्ते के पिछवाड़े वाले पर्दे को ही रूमाल समझकर पसीना पोंछ लो भइया।

    (अजय बगल वाली लाइन के लड़के की बात मानकर अपने आगे खड़े आदमी के कुर्ते के पिछले हिस्से को हाथ से उठाकर खूब अच्छी तरह से अपने मुंह का पसीना पोछता है। आगे खड़ा कुर्ते वाला आदमी खर्राटे भरता रहता है। बगल वाली लाइन में खड़ी रूपा अपने मुंह में हाथ लगाकर खूब जोर जोर से हंसती है। रूपा को हंसते हुए देखकर अजय रूपा से कहता है।

अजय : (रूपा की ओर देखकर) अरे बस भी करिए मैडम, इतना हंस रही हैं। कहीं खर्राटेबाज जान गया तो मुझे लेने के देने पड़ जाएगें।

      (रूपा अपनी हंसी छोड़कर चुप हो जाती है और अचानक फिर अजय की ओर देखकर हंसी का फव्वारा छोड़ देती है।)

                   सीन(अगला)

हाथ में स्टूल लिए एक आदमी रिजर्वेशन हाल के अन्दर दाखिल होकर कभी आठ नम्बर विन्डो की लाइन पर तो कभी पांच नम्बर विन्डो की लाइन पर चक्कर लगाते हुए अपने लड़के को ढूंढता फिरता है। पांच नम्बर विन्डो की लाइन में खड़ा एक व्यक्ति स्टूल लिए हुए आदमी की ओर देखकर –

पांच नम्बर विन्डो की लाइन का एक व्यक्ति : अरे दादा लगता है पूरे इन्तजाम के साथ आए हो रिजर्वेशन कराने। (इधर-उधर नजरें दौड़ाते हुए) चारपाई नहीं दिखाई पड़ रही है। थोड़ा आराम भी कर लेना।

चार नम्बर विन्डो पर खड़ा दूसरा व्यक्ति : अरे भइया पीछे से चारपाई भी आ रही होगी।

स्टूल वाला आदमी : यार तुम सबको मजाक सूझ रहा है और हम दो दिन से रोज लाइन में लगकर परेशान हो रहे हैं। खड़े खड़े थक जाते हैं। इसलिए आज सोचा लाइन में स्टूल रखकर बैठे बैठे आगे बढ़ते रहेगें। जिससे थकान भी नहीं आएगी और काम भी हो जाएगा।

चार नम्बर विन्डो पर खड़ा दूसरा व्यक्ति : (स्टूल वाले आदमी की ओर देखते हुए) तो फिर लाइन में क्यों नहीं लगते हो। इधर उधर स्टूल लिए क्यों घूम रहे हो।

स्टूल वाला आदमी : यार कोई स्टूल लिए ऐसे ही थोड़े टहल रहा हूं। मैं तो अपने लड़के को ढूंढ रहा हूं, जो सवेरे सवेरे लाइन में आकर लग गया होगा।

पांचवी विन्डो की लाइन में खड़ा एक दूसरा व्यक्ति : लड़का कहीं लाइन में लगा होगा लगा रहने दो। टिकट आपका करवा लेगा। आप बेकार परेशान होकर यहां आए हैं।

स्टूल वाला व्यक्ति : भइया परेशान तो होना ही पड़ेगा। चाय नाश्ता करके आए हैं। अब लड़के की जगह खड़े होकर उसे घर भेज देंगे। चाय नाश्ता करके वह भी स्कूल पढ़ने निकल जाएगा (आगे बढ़ते हुए) अच्छा भइया नमस्ते। ज्यादा दिमाग न खाओ लड़के को भी ढूंढने दो।

                    सीन(अगला)

दो नम्बर विन्डो पर खड़ी रूपा अजय की ओर देखकर हंसते हुए –

रूपा : (हंसते हुए) क्या बात है, बड़ा मजा आ रहा है इस रिजर्वेशन हाल के अन्दर। एक से बढ़कर एक नमूने देखने को मिल रहे हैं यहां पर। बिल्कुल फ्री का मनोरंजन हो रहा है। (एक नम्बर विन्डो की लाइन में आगे की ओर खड़े सिर पर मेंहदी लगाए एक व्यक्ति की ओर इशारा कर) वो देखो एक और नमूना देखने को मिल रहा है। (अजय लाइन से झांककर देखता है और हंसता है)

रूपा : (हंसते हुए) लगता है जनाब घर से सिर पर मेंहदी लगाकर आए हैं और टिकट करवाने की जल्दी में टाइम न होने के कारण “एज इट इज “की पोजीशन में आकर लाइन में लग गए हैं। इनको अगर टिकट मिल जाएगा तो इनकी बल्ले बल्ले हो जाएगी। और अगर न मिला तो मायूस होकर गुस्से में घर जाकर मेंहदी छुड़ाने में आलस कर जाएगें और रात में मेंहदी लगाए ही सो जाएगें।

अजय : (रूपा को देखकर) वाह क्या कहतीं हैं आप। आपका भी कोई जबाब नहीं। हम तो समझे थे कि आप आदमियों के बीच में खड़े होकर बोर हो जाएगीं। मगर आप हैं कि पूरा आनन्द ले रही हैं। वैसे आप क्या करती हैं? कहाँ रहती हैं? क्या नाम है आपका और कहां जाना है आपको ?

(अजय के इतने सारे सवालों पर रुपा हंसती है और अजय की ओर देखकर कहती है –

रूपा : (हंसकर) अरे एक साथ इतने सारे सवाल करेंगे आप, तो मैं भूल ही जाऊंगी, कि आपने क्या क्या सवाल किए।

अजय : मैंने तो परिचय लेने का रूप सवालों में ढाल दिया है। जिस तरह से भी चाहें आप जबाब दे सकतीं हैं।  (तभी एक अधेड़ व्यक्ति अपने हाथ में रिजर्वेशन टिकट लिए अजय के पास आकर अजय को बीच में टोकते हुए –

अधेड़ व्यक्ति : (अजय की ओर टिकट करते हुए) भाईसाहब, कानपुर की ली थी बना दी नागपुर की। आपको चाहिए?

अजय : (झुंझलाहट के साथ) अरे हटो यार, बात करने दो। हमें नहीं चाहिए।

अधेड़ व्यक्ति : तो फिर भाईसाहब यही बता दो नागपुर से कानपुर बस कितने घन्टे लेती है?

अजय : अरे यार सिर न खाओ। हमको नहीं मालूम।

अधेड़ व्यक्ति : (रूपा की ओर देखकर टिकट दिखाते हुए) बहिन जी कानपुर की ली थी बना दी नागपुर की। आपको चाहिए?

रूपा : (हंसते हुए अधेड़ व्यक्ति के सामने से अपना चेहरा फेरते हुए) नहीं चाहिए।

अजय : (अधेड़ व्यक्ति को डांटते हुए) जाओ यार तुम तो पीछे पड़ गए

   (अधेड़ व्यक्ति टिकट लिए हुए वहां से चला जाता है। अजय और रूपा एक दूसरे को देखकर हंसते हैं।)

अजय : (रूपा से) हां तो हम लोग क्या बात कर रहे थे?

रुपा : बात क्या कर रहे थे..मेरे बारे में पूंछ रहे थे आप?

अजय : अच्छा अच्छा तो आप अपने बारे में कुछ प्रकाश डालेंगी?

रुपा : क्यों नहीं, वैसे मेरा नाम रूपा है। मै ओशीवारा में रहती हूँ। और साप्ताहिक पत्रिका ब्लास्ट की जर्नलिस्ट हूँ। मुझे जर्नलिज्म के सिलसिले में नैनीताल जाना है। उसी के लिए टिकट करवाने आई हूँ।

अजय : मेरा अनुमान यकीन में बदल गया। मुझे काफी देर से आपका चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था। आपने अपने आपको जर्नलिस्ट बताया तो मुझे याद आ गया कि मै आपसे कई महीने पहले मिस्टर नौनिहाल सिंह जी के यहाँ मिल चुका हूं। जब आप उनका इन्टरव्यू ले रहीं थीं।

रूपा : हां हां मुझे भी आपका चेहरा कुछ कुछ याद आ गया है।

 

 

( इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले सीन में बताएँगे )

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