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Friday, November 14, 2025
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मेरठ लोकसभा सीट पर सपा खेल सकती है दलित कार्ड

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  • पूर्व विधायक योगेश वर्मा के नाम को लेकर तेजी से हो रही चर्चा।
  • मेरठ के दलितों में योगेश वर्मा का है खासा असर।
  • 2017 के नगर निगम चुनाव में भी भाजपा को दे चुके हैं झटका।

अनुज मित्तल, समाचार संपादक |

मेरठ। दीवाली बीतने के साथ ही अब लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज होना शुरू हो जाएंगी। फिलहाल तो सभी दल अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करते हुए मजबूत प्रत्याशी के चयन में जुटे हुए हैं। सपा के इस सीट पर इस बार मुस्लिम के बजाए दलित या हिंदु कार्ड खेलने की बात कही जा रही है।

मेरठ लोकसभा सीट पर लगातार तीन बार से भाजपा का कब्जा बना हुआ है। मेरठ लोकसभा सीट की अगर बात करें तो पहले इसके अंतर्गत मेरठ कैंट, मेरठ शहर, किठौर, खरखौदा और हस्तिनापुर विधानसभा सीट आती थी। तब इस सीट पर कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की। इस सीट पर सबसे ज्यादा चार बार सांसद बनने का रिकार्ड जनरल शाहनवाज के नाम है। जबकि लगातार तीन बार जीत का रिकार्ड भाजपा के ठाकुर अमरपाल सिंह के नाम रहा।

इस सीट पर एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महाराज सिंह भारती वर्ष 1967 में सांसद चुने गए। इसके बाद 1977 जनता पार्टी से कैलाश प्रकाश, 1989 में जनता दल से हरीश पाल और 2004 में बसपा से शाहिद अखलाक सांसद चुने गए। कुल मिलाकर पुराने परिसीमन के तहत मेरठ लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में सपा को एक बार भी जीत हासिल नहीं हुई।

   नये परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में पहला चुनाव हुआ। इस परिसीमन में खरखौदा सीट को समाप्त करते हुए मेरठ दक्षिण के नाम से नई विधानसभा गठित की गई। इसके साथ ही मेरठ लोकसभा सीट से हस्तिनापुर को हटाते हुए हापुड़ विधानसभा को जोड़ दिया गया। इस नये परिसीमन के बाद हुए पहले ही चुनाव में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद से वह लगातार तीन बार से सांसद निर्वाचित होते आ रहे हैं।

बसपा इस सीट पर रही है मजबूत

भाजपा के बाद मेरठ लोकसभा सीट पर यदि सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में कोई पार्टी रही है, तो वह बसपा है। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां बसपा दूसरे नंबर पर रही, तो वर्ष 2019 में सपा, रालोद और बसपा गठबंधन के तहत यह सीट बसपा के खाते में गई और बसपा के हाजी याकूब कुरैशी मात्र करीब चार हजार वोटों से चुनाव हारे।

इस पर सपा खेल सकती है हिंदू या दलित कार्ड

पार्टी सूत्रों की मानें तो सपा मेरठ लोकसभा सीट का गणित समझ चुकी है। इस सीट पर मुस्लिम वोटों का धु्रवीकरण निश्चित रूप से सपा के पक्ष में होगा। लेकिन दलित वोट बसपा और दूसरी पार्टियों में बंटेगा। हालांकि इसमें बड़ी संख्या बसपा के पक्ष में होगी। यदि सपा मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारती है तो सिर्फ मुसलमानों की वोटों के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसलिए सपा इस सीट पर दलित कार्ड या गुर्जर कार्ड खेल सकती है। क्योंकि मेरठ लोकसभा सीट की किठौर और दक्षिण सीट पर गुर्जर वोट निर्णायक हैं। वहीं दलितों की संख्या भी साढ़े तीन लाख से ज्यादा है। सपा की तरफ से योगेश वर्मा की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है। इसका बड़ा कारण ये है कि उनका दलितों में व्यक्तिगत रूप से काफी असर है। इसी के आधार पर उन्होंने 2017 के निकाय चुनाव में भाजपा को हराते हुए अपनी पत्नी सुनीता वर्मा को महापौर निर्वाचित कराया था।

बिजनौर सीट पर उतार सकते हैं गुर्जर प्रत्याशी

बिजनौर सीट पर मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है और उसके बाद गुर्जर बिरादरी आती है। ऐसे में सपा इस सीट पर गुर्जर प्रत्याशी को मैदान में उताकर रालोद के सहारे जाट मतों को साधते हुए जाट, गुर्जर, मुस्लिम और योगेश वर्मा तथा चंद्रशेखर आजाद के जरिए दलित वोटों को साधते हुए जीत के समीकरण बना रही है।

बागपत और मुजफ्फरनगर रालोद के खाते में

सपा और रालोद सूत्रों के अनुसार मुजफ्फरनगर और बागपत सीट गठबंधन की तरफ से रालोद के खाते में जाने की पूरी उम्मीद है। ऐसे में यहां से रालोद का जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारना लगभग तय माना जा रहा है। बागपत से चौ. जयंत सिंह का चुनाव लड़ना लगभग तय है, हालांकि चर्चा उनके मुजफ्फरनगर से भी चुनाव लड़ने की है। बागपत से जयंत अपनी पत्नी चारू को मैदान में उतार सकते हैं।

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