Home Hindi Kahaniya एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-9, पढ़िए…

एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-9, पढ़िए…

0
तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी
तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी---

कहानी का पढ़िए अगला सीन-

अरुण खरे ( कानपुर )
अरुण खरे ( कानपुर )

सीन (अगला)

 अधेड़ व्यक्ति हाथ में टिकट लिए साउथ इन्डियन के पास पहुंचता है।

 

अधेड़ व्यक्ति : (साउथ इन्डियन को टिकट दिखाते हुए) भाईसाहब कानपुर की बनवाई थी। बना दी नागपुर की। चाहिए आपको।

 

साउथ इन्डियन : आई ओ तुम कैईसा आदमी। अम इदर चैन्नई का टिकिट लेने को खड़ा और तुम नागपुर का टिकिट दिखाता। नई बाबा अमको नागपुर नई जाने का। अमको सीदा चैन्नई जाने का। तुम किसी और से जाके पूछो जी।

 

अधेड़ व्यक्ति : अच्छा भाईसाहब, नागपुर से कानपुर जाने की बस का समय ही बता दो।

 

साउथ इन्डियन : तुम यार कैईसा आदमी मेरे को परेशान काए को करता जी। अम साउथ का रहने वाला जी। तुम नागपुर और कानपुर पूछता। बाबा मेरे को पता नई जी।

 

   (अधेड़ व्यक्ति हाथ में टिकट लिए आगे बढ़ जाता है।)

 

 

                  सीन (अगला)

दोनों विन्डो की लाइनों में करीब सत्तर अस्सी आदमी खड़े हैं। कोई आपस में बातें कर रहा है तो कोई अगल बगल झांक रहा है। सुबह के आठ बज चुके हैं। दोनों विन्डो एक साथ खुलती हैं विन्डो खुलते ही लाइनों में लगे लोगों का शोर सुनाई पड़ता है – खुल गई..खुल गई विन्डो। साथ ही लाइनों में लगे लोगों के बीच की दूरी कम होने लगती है। लोग एक-दूसरे से सटकर खड़े होने लगते हैं। टिकट बंटना चालू होते ही धक्का मुक्की चालू हो जाती है। धक्का मुक्की होते ही लाइन टेढ़ी हो जाती है तो कभी सीधी। धक्का मुक्की में फंसी रूपा लाइन से बाहर निकलकर –

 

रूपा : हे भगवान कैसे जाहिल लोग लाइन में लगकर धक्का मुक्की कर रहे हैं। क्या इन जाहिलों को पता नहीं कि लाइन में लेडीज भी लगी है। पुलिस का यहां अता पता नहीं है। सो रहे होगें कहीं या कमाई वाली जगह मुस्तैद होगें। रेलवे पुलिस जो ठहरी।

 

 (रूपा को लाइन से निकला देख अन्य लेडीज जो धक्का मुक्की के बीच फंसी हैं। लाइनों से निकलकर बाहर आ जाती हैं।)

 

अजय : (रूपा को देखकर) अरे रूपा जी आप सब लेडीज मिलकर एक अलग से लाइन बना लीजिए।

 

रूपा : (अजय की ओर देखकर) जी मै भी यही सोच रही हूँ। (सारी लेडीज की ओर देखकर) आइए हम सब लोग एक अलग से लाइन बनाकर टिकट लेने के लिए लगते हैं।

 

सारी लेडीज : (एक साथ) हां हां हम लोग अलग से लाइन बनाकर खड़े होते हैं।

 

 

                 सीन (अगला)

रूपा की अगुवानी में दोनों लाइनों के बीच लेडीज की लाइन अलग से बन जाती है। लाइन में आगे खड़े लोग लेडीजों से लड़ते हुए कहते हैं –

 

आगे खड़े कई लोग : (एक साथ) अरे आप लोगों ने ये अलग से लाइन क्यों बना ली। हटाइए ये लाइन, नहीं तो अच्छा नहीं होगा।

 

  (अलग से बनी लेडीज लाइन में पांचवें नम्बर पर खड़ी रूपा आगे खड़े लोगों को समझाते हुए -)

 

रूपा : देखिए आप लोग नाराज मत होइए। हम सब पहले से ही लाइनों में लगे हुए थे। लेकिन धक्कामुक्की के चलते हम लोगों को अलग से लाइन बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। आप लोग परेशान मत होइए। आप लोगों को बिलकुल दिक्कत नहीं होगी। लेडीज लाइन से एक एक लेडी एक नम्बर व दो नम्बर विन्डो से तीन तीन आदमियों के बाद टिकट लेगी। (लोगों की ओर देखते हुए) एनी प्रॉब्लम?

 

आगे खड़े लोग : नो प्रॉब्लम। मैडम आप लोग खड़ी रहिए।

 

 

                 सीन (अगला)

 विन्डो नम्बर एक में आगे लगा आदमी टिकट लेकर बाहर निकलता है। अगला आदमी विन्डो पर फार्म पकड़ाता है।

 

अगला आदमी : (फार्म पकड़ाते हुए) भाईसाहब कन्फर्म टिकट चाहिए। थोड़ी बहुत आगे पीछे की डेट देख लीजिए चलेगी।

 

रिजर्वेशन क्लर्क : (कम्प्यूटर पर चेक करते हुए) भइया पन्द्रह तारीख की मिल जाएगी बना दें क्या?

 

अगला आदमी : (खुश होकर) हां भाईसाहब चल जाएगी। बना दीजिए फौरन।

 

रिजर्वेशन क्लर्क : सत्रह सौ अस्सी रूपए दीजिए।

 

अगला आदमी : (रूपए निकालकर देते हुए) ये लीजिए।

 

 (रिजर्वेशन क्लर्क रूपए गिनकर टिकट निकालकर देता है।)

 

                 सीन (अगला)   

 विन्डो नम्बर एक की लाइन में खड़ा मोटा आदमी अपने आगे खड़े आदमी के कन्धों को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए खड़ा है।

 

आगे खड़ा आदमी : (मोटे आदमी से) अरे सेठ थोड़ा संभलकर खड़े रहिए।

 

मोटा आदमी : अरे तुम चिंता काहे को करता है। हम संभलकर खड़ा है।

 

  (लाइन के पीछे की ओर खड़ा एक आदमी मोटे आदमी को अगल बगल मटकते हुए देख -)

 

पीछे की तरफ़ खड़ा आदमी : (मोटे आदमी से) अरे ओ मोटे, लाइन में गन्ना की तरा सीधा खड़ा रह। आगे का नहीं दिखता।

 

  (मोटा आदमी पीछे घूमकर पीछे खड़े आदमी की ओर देख-)

 

मोटा आदमी : (आगबबूला होते हुए) अरे ओ मोटा होगा तेरा बाप और मोटा होगा तू। तुझे मैं मोटा दिखाई पड़ रहा हूँ तवेले।

 

  (मोटे आदमी की बात सुन लाइन में लगे सभी लोग हंसते हैं।)

 

                   सीन (अगला)         

विन्डो पर पहुंचकर रूपा फार्म निकालकर रिजर्वेशन क्लर्क को देते हुए –

 

रूपा : भाईसाहब तत्काल पर देख लीजिए। तत्काल पर न हो तो छह सात दिन के अन्दर की भी सीट चेक कर लीजिए।

 

 (रिजर्वेशन क्लर्क फार्म लेकर कम्प्यूटर पर चेक करता है। चेक करके रूपा को फार्म वापस करते हुए -)

 

रिजर्वेशन क्लर्क : ये लीजिए बहिन जी तत्काल फुल है। रिजर्वेशन एक महीने बाद भी वेटिंग पर है।

 

रूपा : (लाइन से बाहर होकर मन में) क्या बताऊँ किश्मत ही सही नहीं है। (आगे बढ़कर अजय को देखते हुए) क्या बताऊँ, आज भी नहीं मिल पाया टिकट। कल फिर आकर आखिरी बार ट्राई करते हैं।

 

अजय : हमको भी देखिए मिलता है कि नहीं। अगर नहीं मिलता है तो कल फिर आखिरी बार आकर ट्राई करेंगे।

 

 

                  सीन (अगला)

 विन्डो से अपने आगे वाले आदमी के लाइन से निकलते ही अजय फार्म रिजर्वेशन क्लर्क को पकडाता है। रिजर्वेशन क्लर्क कम्प्यूटर पर फार्म चेक कर अजय को फार्म वापस करते हुए –

 

रिजर्वेशन क्लर्क : सॉरी भाईसाहब तत्काल फुल हो चुका है।

 

अजय : (लाइन से निकलकर बाहर आते हुए अपने आप से) क्या बताऊँ, आज भी टिकट नहीं मिल पाया। चलो कल फिर आकर ट्राई करते हैं आखिरी बार।

 

                  सीन (अगला)

अजय अपने कमरे में प्रवेश करता है। विजय उसको देखते ही फौरन मेज पर रखा पानी से भरा गिलास पकड़ाते हुए –

 

विजय : लीजिए जनाब पानी पीजिए और ठन्डे हो जाइए। फिर बताइए आज का समाचार।

 

 (अजय चारपाई पर बैठकर पानी का गिलास मुंह पर लगा कुछ सोचने लगता है। फिर पानी पीकर गिलास चारपाई के नीचे रखते हुए –

 

अजय : यार विजय मैं तो टिकट के चक्कर से तंग आ गया हूँ। अगर मुझे कल फिर टिकट नहीं मिलती है तो फिर लड़की देखने जाने का प्रोग्राम खत्म करते हैं।

 

विजय : अच्छा तो जनाब आज फिर बैरंग लौट आए।

 

अजय : और क्या वहीं बना रहता। यार तत्काल का चक्कर मेरी समझ में नहीं आया। जब देखो विन्डो तक पहुंचते तत्काल फुल हो जाता है। हमको तो यार तत्काल का मतलब टिकट का अकाल समझ में आता है। जिसको पाने के लिए आदमी हो जाता है बेहाल।

 

विजय : (हंसते हुए) बिलकुल सही फरमाया।

 

 

                 सीन (अगला)

 रूपा घर पहुंचकर सोफा पर बैठते है और बगल में बैठे अपने पापा की ओर देखकर –

 

रूपा: पापा आज के समय जमाना कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है। लेकिन सरकार जमाने के साथ न चलकर वही पुराना ढर्रा अपनाएं हुए है। पहले कागज के जमाने में इन्सान फुर्तीला हुआ करता था। अब कम्प्यूटर के जमाने में आदमी आलसी और निकम्मा हो गया है। आदमी लाइन पर लगा है तो कभी कम्प्यूटर में गड़बड़ी तो कभी सर्वर डाउन। टिकट के लिए पापा घन्टों लाइन में लगे रहो पर लाइन आगे बढ़ती ही नहीं। थोड़ी थोड़ी देर में सुनने में आता है कि सर्वर डाउन।

 

रूपा के पिता : रूपा बेटी तेरी बात बिलकुल सही है। सरकार को चाहिए कि हर शहर प्रदूषण मुक्त हो। सर्वर डाउन की मुख्य समस्या यही है और लोगों को लाइनों में लगाकर परेशान करने से अच्छा तरीका है टोकन व्यवस्था। आदमी का नम्बर आते ही आदमी विन्डो पर पहुंचकर अपना काम आसानी से करवाए।

 

रूपा : पापा बिलकुल सही कहा ऐसा ही होना चाहिए।

 

 

( इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले सीन में बताएँगे)

 

कहानी का भाग-1

कहानी का भाग-2

कहानी का भाग-3

कहानी का भाग-4

कहानी का भाग-5

कहानी का भाग-6

कहानी का भाग-7

कहानी का भाग-8

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here