कहानी का पढ़िए अगला सीन-
सीन (अगला)
कमरे के अन्दर विजय कुर्सी पर बैठा हुआ मैगजीन देख रहा है। अजय अपने माथे का पसीना पोछते हुए कमरे के अन्दर दाखिल होता है। मैगजीन देखने में मस्त विजय आहट पाकर अजय की ओर देखते हुए –
विजय : आ गए जनाब।
अजय : (कमरे में पड़ी चारपाई पर बैठते हुए) हां आ गया थक हार कर।
विजय : (मुस्कराते हुए) आज तो टिकट लेने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी होगी।
अजय : करनी तो पड़ी, पर टिकट मिली कहां।
विजय : क्यों…?
अजय : यार विन्डो तक पहुंचते पहुंचते सीटें फुल हो चुकी थीं।
विजय : अब क्या होगा?
अजय : होगा क्या, मालूम पड़ा है कि यहीं मलाड की नेवी कालोनी में रेलवे का रिजर्वेशन सेन्टर है। यहां भीड़ कम होती है। कल जाकर यहीं पर टिकट के लिए ट्राई करते हैं।
विजय : ट्राई कर ले बेटा, तेरी तो मौज हो जाएगी।
अजय : क्या मौज हो जाएगी। एक दिन शादी सबकी होती है, तो मेरी भी हो जाएगी। फिर अभी तो लड़की ही देखना है। तू क्या कुंवारा ही रहेगा। बेटा तेरे मन में भी लड्डू फूट रहे होगें। तेरा भी जब वक्त आएगा, तेरी भी मौज हो जाएगी।
विजय : सत्य कहता है तू अजय। हर चीज वक्त के साथ बंधी है। अच्छा और बुरा यही तो वक्त के दो साथी हैं।
अजय : खैर छोड़ो इन सब बातों को। यार आज खड़े खड़े बहुत थक गया हूं। वैसे तो आज बहुत बोर हो जाता। लेकिन रिजर्वेशन हाल के अन्दर का माहौल बहुत ही मनोरंजन पूर्ण था। इसलिए बोरियत नहीं हुई।
विजय : नमूने देखने को मिल गए क्या?
अजय : (हंसते हुए) हां यार एक से एक नमूने देखने को मिले।
सीन (अगला)
मोटा आदमी : (अपने घर के अन्दर प्रवेश करते हुए) क्या बताऊँ, जमाना बड़ा तकलीफ देह हो गया है। जहां देखो, वहीं आदमी लाइन लगाए खड़ा है। आदमी पैसे देने को तैयार खड़ा है फिर भी काम नहीं होता। ये सरकारी तन्त्र की कितनी बड़ी खूबी है। (कमरे में पड़े सोफा पर बैठते हुए) और एक मै हूँ। दुकान में बैठे बैठे मक्खियाँ मारा करता हूँ। फिर भी जल्दी कोई पास नहीं फटकता।
मोटे आदमी की बीबी सेठाइन : (कमरे के अन्दर प्रवेश करते ही) आ गए आप?
मोटा आदमी : हां आ गया।
मोटे आदमी की बीबी सेठाइन : (दूसरे सोफा पर बैठते हुए) रिजर्वेशन मिल गया क्या?
मोटा आदमी : यही तो रोना है। सरकार लोगों की डिमांड को पूरा नहीं कर पा रही है। चाहे जिस चीज को ले लो। यात्रा करने वालों की संख्या अधिक और ट्रेनें कम। गैस सिलेंडरों की हमेशा शार्टेज। लाइट के लिए हमेशा रोना। और न जाने क्या क्या। सरकार कुछ भी करने के लिए असमर्थ है, और हमेशा रहेगी। देखो न तीन कुन्टल का वजन लिए घन्टों लाइन में खड़ा खड़ा थक गया। फिर भी रिजर्वेशन नहीं मिल पाया। यही अगर प्राइवेट में होता तो एक फोन करने पर दस बार आदमी घर आकर आदमी टिकट बनवाकर देता।
मौटे आदमी की बीबी सेठाइन : अब क्या करेंगे? दिल्ली जाना भी बहुत जरूरी है।
मोटा आदमी : हां दिल्ली जाना तो जरूरी है। तभी तो तत्काल का टिकट करवा रहा हूं।
मोटे आदमी की बीबी सेठाइन : तो फिर कल फिर जाना पड़ेगा टिकट के लिए।
मोटा आदमी : दिल्ली अगर जाना है तो जरूर जाना पड़ेगा टिकट करवाने।
सीन (अगला)
रूपा के पिता ड्राइंगरूम में सोफ़े पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैं रूपा ड्राइंगरूम में प्रवेश कर अपने पिता के बगल में सोफ़े पर बैठते हुए –
रूपा : पा पा… ।
रूपा के पिता : (अखबार अपने चेहरे से हटा रूपा की ओर देखते हुए) अरे तू कब आई बेटी?
रूपा : अभी अभी आकर बैठी हूं पापा।
रूपा के पिता : टिकट तो हो गया होगा।
रूपा : कहां हो पाया पापा। घन्टों लाइन में लगी रही फिर भी।
रूपा के पिता : बेटा गर्मी बहुत पड़ रही है। तुम आफिस में कहकर बाहर जाने का प्रोग्राम केन्सिल करवा लो। ये ज्यादा ठीक रहेगा।
रूपा : नहीं पापा प्रोग्राम केन्सिल नहीं करवाऊंगी। क्योंकि प्रोग्राम नैनीताल जाने का है। जो मुझे घूमने फिरने का आनन्द तो दिलाएगा ही, साथ ही ऊंचे ऊंचे पहाड़ और गहरी गहरी घाटियां भी तो देखने को मिलेंगी।
रूपा के पिता : (अखबार अपने चेहरे के सामने करते हुए) अच्छा… जैसी तेरी मर्जी।
सीन (अगला)
साउथ इन्डियन अपने घर में बीबी बच्चों के सामने बैठा हुआ बड़बड़ा रहा है –
साउथ इन्डियन : (बड़बड़ाते हुए) टिकिट न भायो भाया, समुद्र मन्थन से निकलो अमृत भायो। जिसको पाने को आदमी जी जान से लागो। वो मोटा राक्षस म्हारे पीछो खड़ा होके म्हारी पीठ में अपनी तोंद से धक्का मारिके म्हारो कचूमर निकाल दियो। फिर भी म्हाने चूं न करयो। (अपनी पीठ में हाथ लगाकर) आई ओ अम्मा, म्हारी पीठ मा ये कैइसा दर्द होवे है।
साउथ इन्डियन की पत्नी : (साउथ इन्डियन के पास आकर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए) अइयो बहुत दर्द होवे का?
साउथ इन्डियन : ओ तुम क्या जानो म्हारे दर्द को।
साउथ इन्डियन की पत्नी : (साउथ इन्डियन की पीठ पर हाथ मारते हुए) आइयो तुम मोटा राक्षस के सामने बिल्ली बनके कुछ नई बोलते, और मेरे को शेर बनके दहाड़ मारते।
( इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले सीन में बताएँगे)