– पहले चरण के मतदान के रूझान अंतिम चरण तक मतदान को करेंगे प्रभावित – भाजपा के लिए इस बार पहले चरण में आसान नहीं दिख रही राह – दो वर्तमान सांसदों की प्रतिष्ठा के साथ ही चार सीटें लगी हैं दांव पर
अनुज मित्तल (समाचार संपादक)
मेरठ। कल यानि शुक्रवार को प्रथम चरण का मतदान होगा। पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में पहले चरण का मतदान पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही शुरू होता है, और यहां से बनने वाला माहौल पूर्वी उत्तर प्रदेश या कहें कि अंतिम चरण के मतदान तक प्रभावी होता है। ऐसे में एक बार फिर से पश्चिम की चार सीट मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर और नगीना में कल मतदान होगा। यहां पर भाजपा की प्रतिष्ठा पूरी तरह दांव पर लगी हुई है।
इन चारों सीटों की अगर बात करें तो गठबंधन के तहत बिजनौर सीट रालोद के खाते में है। भाजपा मुजफ्फरनगर, कैराना और नगीना सीट पर चुनाव लड़ रही है। मुजफ्फरनगर और कैराना सीट पर वर्तमान सांसद चुनाव मैदान में होने से इस सीट को बचाना भाजपा के लिए अहम है, तो बड़ी चुनौती भी है।
मुजफ्फरनगर सीट पर डा. संजीव बालियान लगातार दो बार से सांसद रहते आ रहे हैं और मोदी सरकार के मंत्री मंडल में भी उन्हें शामिल किया गया है। इस बार लगातार तीसरी जीत के लिए वह और उनकी पार्टी रात दिन जुटी हुई है, लेकिन इस बार की राह बहुत कांटों भरी नजर आ रही है। इसका कारण विपक्षी दलों से उतारे गए प्रत्याशियों के साथ ही जातीय राजनीति के तहत भाजपा और संजीव बालियान को लेकर पैदा हुई नाराजगी है।
मुजफ्फरनगर सीट पर 2019 के चुनाव में डा. संजीव बालियान चरथावल, बुढ़ाना और मुजफ्फरनगर विधानसभा से हारे थे, लेकिन खतौली में उन्होंने हार के अंतर को जहां काफी कम किया, तो सरधना विधानसभा में उन्हें निर्णायक बढ़त मिली और वह जीत गए। लेकिन इस बार यही सरधना विधानसभा उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनी हुई है। यहां पर ठाकुर बिरादरी की नाराजगी दूर नहीं हुई है और उन्होंने गठबंधन से सपा प्रत्याशी हरेंद्र मलिक के पक्ष में मतदान करने का ऐलान कर दिया है।
इसके अलावा दूसरी मुसीबत बसपा प्रत्याशी दारा सिंह प्रजापति भाजपा के लिए बने हुए हैं। दारा सिंह प्रजापति को उनका सजातीय वोट एक तरफ मिलने की बात कही जा रही है। जो पूर्व में भाजपा का ठोस वोट बैंक था। इसके अलावा त्यागी बिरादरी की नाराजगी ने भी मामला और ज्यादा बिगाड़ दिया है। इस वोट बैंक के खिसकने से भाजपा की हालत और ज्यादा कमजोर यहां नजर आ रही है। ऐसे में इस सीट को बचाना भाजपा के लिए इस बार बहुत बड़ी चुनौती नजर आ रहा है।
कैराना सीट पर भी मामला अलग नहीं है। यहां पर वर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी के व्यवहार को लेकर लोगों में रोष है। उनका कहना है कि वह क्षेत्र में बहुत कम आए और यदि आए भी तो लोगों से संवाद ही नहीं कर सके। इसके अलावा यहां पर भी ठाकुर बिरादरी जहां नाराज है तो बसपा ने यहां से ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। जाट वोटों का यहां बंटवारा तय है, तो हिंदू गुर्जर बिरादरी में भी बंटवारे की बात सामने आ रही है। ऐसे में यह सीट भी कहीं न कहीं इस बार फंस रही है।
नगीना लोकसभा सीट भाजपा के लिए इस बार आसान दिख रही है। इसका बड़ा कारण यहां से भाजपा, बसपा और सपा के बीच आजाद समाज पार्टी से चंद्रशेखर आजाद का चुनाव मैदान में उतरना है। ऐसे में दलित वोटों के साथ ही मुस्लिम वोट भी बंटेंगे। लेकिन भाजपा का परंपरागत वोट यहां अभी तक भाजपा के पाले में नजर आने और रालोद का साथ मिलने से भाजपा यहां फिलहाल मजबूत दिख रही है।
बिजनौर सीट हालांकि रालोद के खाते में है। लेकिन गठबंधन में होने से भाजपा ने यहां भी ताकत झोंक रखी है। पिछले चुनाव में यह सीट बसपा के पास थी। बसपा के वर्तमान सांसद मलूक नागर हाल ही में बसपा छोड़कर रालोद में आ गए हैं, तो गुर्जर वोटों में मजबूती और ज्यादा हो गई है। रालोद से प्रत्याशी होने के कारण यहां जाट वोट भी मिलेगा। जबकि भाजपा का परंपरागत अति पिछड़ा और सवर्ण वोट यहां कहीं भी कटता नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में रालोद प्रत्याशी यहां पर सुकून की हालत में नजर आ रहे हैं।