- प्रशासन ने महोत्सव का शानदार आयोजन किया।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। दस अप्रैल 2006 को विक्टोरिया पार्क ने भीषण अग्निकांड हुआ था। कंज्यूमर मेला देखने आए 64 लोग काल के गाल में समा गए थे और सैंकड़ों लोग झुलस गए थे। इस अग्निकांड के खौफ ने 18 साल आठ महीने तक प्रशासन को बड़ा आयोजन करने का साहस नहीं दिया लेकिन वर्तमान प्रशासन ने पांच दिन के मेरठ महोत्सव का सफलतापूर्वक आयोजन कर दिखा दिया कि मजबूत इच्छा शक्ति हो तो मेरठ के लोगों को नायाब तोहफा मिल सकता है।
भामाशाह पार्क की धरा पर ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और सुपर सिंगर शंकर महादेवन को हजारों लोगों ने खुली आंखों से देखा। किसी ने सोचा भी नहीं होगा पांच दिन लोगों को देश भर की सेलिब्रिटीज से रूबरू होना पड़ेगा। ऐसा ही हुआ भी। कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे, डीएम दीपक मीणा, एसएसपी डॉक्टर विपिन टाडा,एमडीए वीसी अभिषेक, नगर आयुक्त संजय गंगवार और सीडीओ नूपुर गोयल की टीम ने सार्थक कर दिया। इस भव्य आयोजन में मेरठ के स्कूल, बिल्डर, क्लब, ज्वेलर्स और सामाजिक संगठनों ने खुल कर भागीदारी दिखाई।
मेरठ विकास प्राधिकरण ने भी सजावट में कोई कसर नहीं छोड़ी। पांच दिन तक पूरा शहर सिविल लाइन क्षेत्र में सिमट कर रह गया था। मेरठ महोत्सव में कुमार विश्वास ने अपनी लोकप्रियता को पूरी तरह भुनाया। उनकी कविताओं और व्यंग के चर्चे खूब रहे। सुपर एक्ट्रेस और सांसद हेमा मालिनी ने गंगा अवतरण को बेले के जरिए पेश कर जहां वाहवाही लूटी वही आयोजकों बिल्डरों पर कटाक्ष भी किया कि पेड़ों को काट कर पर्यावरण को नष्ट तो मत कीजिए। हेमा मालिनी ने कई अप्रत्यक्ष इशारे भी किए बिगड़ती हुई सामाजिक व्यवस्था पर। फिर भी हेमा मालिनी का बढ़ती हुई उम्र के बावजूद नृत्य प्रतिभा देखते ही बनती थी।
नीति मोहन की सुंदरता और गायन की अदभुत शैली ने युवाओं को जरूर रोमांचित किया। सूफी गायकी को पसंद करने वाले लोगों को हर्षदीप कौर ने निराश नहीं किया। हरिओम पंवार के कवि सम्मेलन में कोई नयापन नहीं दिखा। कवियों ने सिर्फ टाइम पास किया। मशहूर शायर नवाज देवबंदी को सिर्फ पांच मिनट मिले और संचालक ने जब उनको टोका तो उन्होंने नाराजगी भी जाहिर की। सिंगर शंकर महादेवन को सुनने के लिए भामाशाह पार्क ओवर क्राउडेड हो गया। लोगों को खड़े होने तक की जगह नहीं मिली।
इस महोत्सव के शानदार आयोजन में टिकटों की कीमतों ने लोगों को जरूर निराश किया। 1800 और 850 के टिकट आम लोगों की पहुंच से दूर रहे। वहीं मेला देखने के लिए लगाया गया शुल्क भी मध्यम वर्ग के लोगों को नहीं खींच पाया। स्कूल और कॉलेज के बच्चों को जरूर काफी कुछ सीखने को मिला लेकिन वो भी कीमत देकर। इन सबके बावजूद मेरठ प्रशासन ने शहर को ऐसा तोहफा दिया जो आने वाले अधिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा और बेहतर करने के लिए चुनौती भी खड़ी करेगा। सुस्त और नीरस पड़े शहर को इस महोत्सव ने जरूर संजीवनी दी है। जब लोगों ने ये कहा कि अब विक्टोरिया पार्क से डर का भूत निकल चुका है।