एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का अंतिम भाग, पढ़िए…

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कहानी का पढ़िए अगला सीन-

 

अरुण खरे ( कानपुर )
अरुण खरे ( कानपुर )

सीन (अगला)

 

अधेड़ व्यक्ति रिजर्वेशन हाल के अन्दर प्रवेश करता है और टिकट हाथ में लिए हुए अजय और रूपा के पास आकर टिकट दिखाते हुए कहता है –

 

अधेड़ व्यक्ति : (टिकट दिखाते हुए) कानपुर की ली थी। नागपुर की बना दी। आपको चाहिए।

 

  (अजय और रूपा एक दूसरे को देखकर हंसते हैं फिर रूपा हंसते हुए अजय से कहती है –

 

 रूपा : अरे बेचारे का टिकट लो नहीं, तो कम से कम देख तो लो। बेचारा कई दिनों से नागपुर का टिकट लिए घूम रहा है।

 

अजय : ( अधेड़ व्यक्ति के हाथ से टिकट लेकर देखते हुए खिलखिलाकर हंसते हुए) अरे रूपा जी लगता है, इन महाशय ने जबसे टिकट बनवाया है। तबसे पागल हो चुके हैं। मालूम है ये टिकट कबका बना हुआ है। (टिकट की डेट पढ़ते हुए) चौबीस अप्रैल दो हजार छह का टिकट बना हुआ है।

 

रूपा : (हंसते हुए) बाप रे लगता है आज पहली बार हम लोगों ने ही इस टिकट पर गौर फरमाया है।

 

(अधेड़ व्यक्ति इधर-उधर देखते हुए अपना चेहरा छिपाता है। अजय अधेड़ की ओर देखकर रूपा से कहता है –

 

अजय : अरे तभी तो, देखो बेचारा कैसे शरमाया है।

 

(अजय और रूपा शरमाए हुए अधेड़ व्यक्ति को देखकर खूब हंसते हैं। साथ ही तमाशबीन आदमीं भी हंसी में अजय और रूपा का साथ देते हैं।

 

         —–समाप्त—–

( एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी को पढ़ने वाले सभी पाठकों का धन्यवाद। )

 

कहानी का भाग-1

कहानी का भाग-2

कहानी का भाग-3

कहानी का भाग-4

कहानी का भाग-5

कहानी का भाग-6

कहानी का भाग-7

कहानी का भाग-8

कहानी का भाग-9

कहानी का भाग-10

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