अरुण खरे (कानपुर)
साठ वर्षीय सिद्धेश्वर अवस्थी बिठूर गांव में अपने घर के आंगन में चारपाई पर लेटे हुए कुछ सोच विचार में मग्न हैं। पास ही चारपाई पर बैठी हुईं सिद्धेश्वर अवस्थी जी की पचपन वर्षीय पत्नी (जिनको पन्डिताइन के नाम से जाना जाता है) रामायण पढ़ रहीं हैं। आंगन के एक किनारे मिट्टी का घडा बाल्टी व कलश रखे है। अवस्थी जी के बड़े लड़के जिनको बड़े के नाम से जानते हैं। बड़े चार बच्चों के पिता हैं। इनके चारों लड़कों के नाम क्रमश: वीरू धीरू संजय और अजय हैं। इन चारों बच्चों की उम्र में एक एक साल का अन्तर है। इन चारों बच्चों का घर के अंदर शोर सुनाई दे रहा है।
पन्डिताइन :- (रामायण पढ़ते हुए) दींन दयाल विरद सम्भारी, हरहु नाथ मम संकट भारी। (इसी बीच चारों बच्चे शोर मचाते हुए एक के पीछे एक दौड़ लगाते हुए आंगन में आकर आंगन में रखे हुए घड़े बाल्टी और कलश के ऊपर भड़भडाकर एक दूसरे के ऊपर गिरते हैं। बर्तनों में रखा पानी फैल जाता है और घडा फूट जाता है। पन्डिताइन का ध्यान रामायण से हटकर बच्चों की तरफ जाता है। अवस्थी जी चारपाई में बैठे हुए एकाएक चौंककर उठते हैं-
अवस्थी जी :- (बच्चों को डांटते हुए) क्या हुआ बन्दरों, अबे एक एक को बहुत मार मारूँगा। सारा घर सिर पर उठा रखा है।
पन्डिताइन :- (अवस्थी जी की ओर देखकर) क्या करें बड़े के बाबू, मेरी समझ में नहीं आता है कि इन सारिन का हम, का इलाज करें। दिन भर कोई पढ़ाई लिखाई नहीं, बस उछलकूद मचाएं रहते हैं। कहीं ये नुकसान करते हैं, कहीं वो नुकसान करते हैं।
(चारों बच्चे सकपकाए से एक किनारे खड़े रहते हैं। अवस्थी जी हाथ उठाए बच्चों की तरफ बढ़ते हैं-)
अवस्थी जी :- (हडकाते हुए) क्यों तुम सब अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे।
वीरू और धीरू :- (एक साथ रोते हुए) दादा हम दोनन को संजय और अजय ने गिरा दव।
अवस्थी जी :- (हाथ नीचे करते हुए) धत शैतानों, न पढ़ने में, न लिखने में, बस दिनभर उछलकूद (फिर हाथ उठाकर हडकाते हुए) चलो सब अपने कमरे में और बैठकर पढाई करो।
पन्डिताइन अपने घर के आंगन में बैठे हुए सूप से गेंहूं पछोर रहीं हैं। अवस्थी जी का छोटा लड़का जिसको प्यार से छोटे कहते हैं। पन्डिताइन यानी अपनी मां के बगल में जमीन पर बैठा हुआ ढोलक की तरह अपने दोनों हाथों से जमीन पर थपकी मार रहा है। इसी बीच घर के दरवाजे की कुन्डी खटकती है। पन्डिताइन कुन्डी की आवाज सुनकर
पन्डिताइन :- (छोटे को हाथ से झकझोरते हुए) अरे छोटे सुन, देख कोई बाहर कुन्डी खटखटा रहा है
छोटे :- (अपने हाथों को रोकते हुए) अरे अम्मा सुन लिया है। (उठते हुए) जा रहे हैं। (दरवाजे की ओर बढ़ते हुए) कौन है भइया?
छोटे घर का दरवाजा खोलता है। दरवाजे के सामने दो अपरिचित आदमी खड़े हैं। दोनों आदमी छोटे को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं। साथ ही छोटे भी हाथ जोड़कर दोनों आदमियों का अभिवादन करता है। फिर दोनों आदमियों में से एक आदमी
पहला एक आदमी :- सिदधेश्वर अवस्थी जी का यही घर है न।
छोटे :- जी यही है, पर आप लोगों को हमने पहचाना नहीं।
पहला एक आदमी :- (मुस्कराते हुए) बात बउआ ये है कि हम लोग आपके घर अपनी लड़की का रिश्ता लेकर आए हैं। अगर अवस्थी जी घर पर हों तो उन्हें बता दीजिए कि कानपुर से संकटा प्रसाद जी अपनी लड़की के रिश्ते के लिए आए हैं।
दोनों आदमी :- (सकुचाते हुए) ठीक है बउआ।
(दोनों आदमी छोटे के साथ घर के अन्दर चले जाते हैं।)
छोटे (खुश होते हुए) अम्मा कानपुर से कोई संकटा प्रसाद जी अपनी लड़की का रिश्ता लेकर आए हैं।
घर के आंगन में अपनी मां पन्डिताइन के पास पहुंचकर
छोटे :- अम्मा हमने उन लोगों को बैठक में बैठा दिया है। अभी जाकर हम बाबू को बुलाकर लाते हैं। तब तक तुम जाकर उनके पास बैठो।
पन्डिताइन :- (छोटे को मारते हुए) धत् लफंगे रिश्ता और तेरे लिएङ्घ कभी नहीं। लगता है वो लोग गलती से आ गए होंगे।
छोटे :- (हाथ जोड़कर) अम्मा बड़े भइया की शादी कर दी। और हमको का बुढ़ापे तक कुंवारा रखोगी।
इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले भाग में बताएँगे