भूख का दर्द
आई भूख मिटाने की मजबूरी ,
घर की खुशियाँ देख अधूरी ,
माँ का चश्मा बाप की लाठी,
रूधिर बहाया बना पसीना,
छूटी झोपड़ी गाँव में,
नहीं मिलता ममता भरा बिछौना,
गरीबी की ज्वाला में फंसा ,
कभी पूरी कभी मिली अधूरी,
सुने न कोई करें शिकायत किसको।
पत्नी भी श्रंगार को तरसे ,
पढ़ाए कैसे वह बच्चे ,
बच्चों को समझाए कैसे,
दिनभर गाली सुनता हैं ,
महल बनाता हैं ईटें सिर पर ढो कर
मां गई एक साड़ी में दुनिया के बोझ उठाकर
ताज महल बनाया दीवार चीन की उन्होंने कोडे खाकर।
अरविन्द कुमार तोमर
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बहुत ही शानदार प्रतुति अरविंद भाई
Very nice arvind bhai