Monday, March 24, 2025
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भूख का दर्द

आई भूख मिटाने की मजबूरी ,
निकला वह करने मजदूरी ।

घर की खुशियाँ देख अधूरी ,
नाप गया वह मिलो की दूरी ।

माँ का चश्मा बाप की लाठी,
छोड़ चला जन्म स्थल की माटी ।

रूधिर बहाया बना पसीना,
भूल गया सुख चैन से जीना।

छूटी झोपड़ी गाँव में,
नहीं सो पाता नीम की छाँव में ।

नहीं मिलता ममता भरा बिछौना,
बिस्तर बना फुटपाथ का कोना ।

गरीबी की ज्वाला में फंसा ,
अमीरो की दलदल में बिगड़ी दशा।

कभी पूरी कभी मिली अधूरी,
विवश रहा जो करता मजदूरी।

सुने न कोई करें शिकायत किसको।
रोटी से पहले मार मिली है उसको ।

पत्नी भी श्रंगार को तरसे ,
सावन भादो नैनो से भरसे ।

पढ़ाए कैसे वह बच्चे ,
कहाँ से लाए कपड़े अच्छे ।

बच्चों को समझाए कैसे,
घर खर्च को कम पड़ते पैसे।

दिनभर गाली सुनता हैं ,
तब परिवार को खाना मिलता हैं ।

महल बनाता हैं ईटें सिर पर ढो कर
कहाँ सहारा उसको गिरे जो ठोकर खा कर।

मां गई एक साड़ी में दुनिया के बोझ उठाकर
पिता शिला ना पाया अपना एक कुर्ता चाहकर।

ताज महल बनाया दीवार चीन की उन्होंने कोडे खाकर।
हम इतराते है आठ अजूबों पर मजदूरों की पहचान मिटाकर ।

अरविन्द कुमार तोमर 
सदस्य बाल कल्याण समिति प्रयागराज

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2 COMMENTS

  1. बहुत ही शानदार प्रतुति अरविंद भाई

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