वक्फ की आड में उनकी कंपनी और करोड़ों की संपत्ति कर दी गई खुर्द-बुर्द,
प्रशासन भी वक्फ कानून पर साधे रहा चुप्पी।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। वक्फ कानून में संशोधन को लेकर संसद में बहस छिड़ी हुई है। संसद में विपक्ष इस विधेयक का विरोध कर रहा है। अगर मेरठ की बात करें तो कई मुस्लिम परिवार इस संशोधन कानून का समर्थन कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय फलक पर मेरठ को पहचान दिलाने वाली नादिर अली बैंड कंपनी इसी वक्फ के लचर कानून की भेंट चढ़ गई। नादिर अली कंपनी की हजारों करोड़ों की संपत्ति खुर्द-बुर्द कर दी गई। आरोप है कि अरबों की संपत्ति को झूठी परमिशन पर बेच दिया गया और करोड़ों की संपत्ति महज 100 से 500 रुपये किराया दिखाकर बंदरबांट कर दी गई। वक्फ बोर्ड और मुतवल्ली के इस खेल में संपत्ति के असली हकदारों को उनके हक से वंचित कर दिया। आलम यह है कि संपत्ति के असली हकदार अब इस संशोधन कानून की बांट जोह रहे हैं।
मेरठ की स्पोर्ट्स और बैंड कारोबार के लिए विश्व में पहचान है। शहर की तंग गलियों में बैंड का सामान बनाया जाता है और अंतरराष्ट्रीय फलक पर डंके के साथ बेचा जाता है। इस बैंड उद्योग को शिखर तक पहुंचने में आजादी के पहले से मेरठ की नादिर अली कंपनी का बड़ा योगदान है। इस कंपनी को चलाने वाले नादिर अली और मोहम्मद इसार खान ने 1941 में अपनी संपत्तियों को रजिस्टर्ड कर दिया था। 30,000 गज का महल और दिल्ली रोड पर 6000 गज की नादिर अली बिल्डिंग भी इसी वक्फ की संपत्तियां हैं। लेकिन नादिर अली और ईसाक खान की औलाद में बदनीयती पैदा हो गई। वक्फ के मुतवली से साठगांठ के चलते नादिर अली का महल 90 लाख रुपये में बेच दिया गया।
आरोप है कि इस महल को वक्फ कानून के खिलाफ अंडर वैल्यू कर बेचा गया। इस मामले में एफआईआर भी हुई, लेकिन राजनीतिक दबाव और नोटों की चमक के आगे गवाह चुप बैठ गए। इस मामले की लड़ाई ईसाक खान के वंशज फरहत मसूद अभी भी लड़ रहे हैं। उनकी मानें तो अरबों का महल कौड़ियों के भाव बिक गया और जिसमें उन्हें हिस्सा भी नहीं मिला। उनके बेटे जिला प्रशासन और वह वक्फ बोर्ड से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन आलम यह है कि आरटीआई का भी जवाब नहीं दिया जाता।
मेरठ में हजारों करोड़ों की संपत्ति ऐसी है जो केवल वक्फ के लचर कानून की भेंट चढ़ गईं। मुतवल्ली और बोर्ड के पदाधिकारी ने मिलकर संपत्तियों की बंदरबांट कर ली। कुछ संपत्ति ऐसी है, जिन्हें खुर्द-बुर्द करके करोड़ों के वारे-न्यारे कर लिए गए। कुछ पर 100 से 500 रुपये किराया लेकर करोड़ों की संपत्ति की बंदरबांट कर दी गई। वहीं बक्फ कानून को पेचीदा बताकर जिला प्रशासन के लोग ऐसे मामलों में कार्रवाई करने से बचते हुए नजर आते हैं।