कहानी का पढ़िए अगला सीन-
सीन (अगला)
हर एक विन्डो पर टिकट बटना चालू है। रिजर्वेशन हाल के अन्दर विन्डोज़ पर लगी लाइनों में धक्का मुक्की हो रही है। साथ ही बाद में आओ पहले पाओ का सिद्धांत अपनाए लोग लाइन से हटकर अलग से विन्डो पर लगे हैं। दो पुलिस वाले हाल के अन्दर प्रवेश करते हैं। और विन्डो पर लगी भीड़ को अपने हाथ में लिए डन्डो को जमीन में मारते हुए भीड़ को भगाते हैं। बहुत से लोग पुलिस को आया देख अपने आप इधर उधर हो जाते हैं।
दोनों पुलिस वाले : (लाइन में घूमकर रोआब गांठते हुए) लाइन बिल्कुल सीधी होनी चाहिए। धक्का मुक्की बिल्कुल नहीं चलेगी। (सब लोग शान्त भाव से खड़े होकर टिकट के लिए आगे बढते रहते हैं।)
सीन (अगला)
विन्डो नम्बर चार की लाइन में लगा एक लड़का अपने आगे खड़े एक आदमी के पीछे की पाकेट से उसका पर्स बड़ी सावधानी से पार करता है। पर्स पारकर अपनी ठीक बगल वाली लाइन में लगे साथी को धीरे से जाकर पकड़ा देता है। और फिर लाइन में आकर खड़ा हो जाता है। पाकेटमार के आगे खड़ा आदमी (जिसकी पर्स पार की गई है) जब अपना हाथ पीछे करके अपनी पाकेट को टटोलता है, तो वह दंग रह जाता है। फिर वह अपनी आगे की जेब में हाथ डालकर पर्स ढूंढने की कोशिश करता है। पर्स पाकेट में न मिलने पर वह जोर से चिल्लाकर कहता है –
पर्स वाला आदमी : अरे भइया मेरी पर्स लुट गई। किसी ने मेरी पाकेट मार दी।
(पुलिस वाला पास आकर)
पुलिस वाला : क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो?
पर्स वाला आदमी : मेरी पर्स मार दी किसी ने। अब हम क्या करें? सुबह से लाइन में लगे हैं। सारे रूपए पर्स में थे। अब हम टिकट कैसे ले पाएंगे?
पुलिस वाला : (धीरज बंधाते हुए) आप लाइन में लगे रहिए। हम अभी लोगों के पर्स चेक करवाते हैं। (अपने साथी पुलिस वाले को आवाज देकर) अरे सिंह साव….।
साथी पुलिस वाला : (आगे बढ़कर अपने साथी पुलिस वाले को देखते हुए) क्या है वर्मा जी?
पुलिस वाला : यहां पर (इशाराकर) इन भाईसाहब की किसी ने पर्स मार दी है। आप एक नम्बर लाइन से हर किसी की पर्स चेक करिए। हरे कलर की पर्स नजर आते ही मुझे बताइए।
साथी पुलिस वाला : (जाते हुए) अभी चेक करता हूँ।
सीन (अगला)
साथी पुलिस वाला विन्डो नम्बर एक की लाइन से लोगों के पर्स चेक करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपना अपना पर्स दिखाता है। उधर पुलिस वाला जिसका पर्स गायब हुआ है। उस आदमी के पीछे खड़े लड़के से पूंछताछ करते हुए –
पुलिस वाला : (लड़के को हडकाते हुए) क्यों बे किधर जाने की टिकट करवाएगा?
पाकेटमार लड़का : साहब गोरखपुर का रहने वाला हूँ। वहीं जाने के लिए टिकट करवाना है।
पुलिस वाला : (कड़क आवाज में) चल अपना पर्स दिखा
पाकेटमार लड़का : साहब मेरे पास पर्स नहीं है।
पुलिस वाला : तो क्या रूपए पैसे पाकेट में छुट्टा रखता है।
पाकेटमार लड़का : हां साहब।
पुलिस वाला : चल निकालकर दिखा, कितने पैसे हैं तेरे पास?
पाकेटमार लड़का : साहब ऐसे कैसे आपको दिखा दें।
पुलिस वाला : (हडकाते हुए) अबे दिखाता है कि नहीं।
पाकेटमार लड़का : (जेब में हाथ डालते हुए) दिखाता हूं साहब। (जेब से रूपए निकालकर दिखाते हुए) ये हैं साहब।
पुलिस वाला : (अपने हाथ में रूपए लेकर गिनते हुए) बस एक सौ पच्चीस रुपए और गोरखपुर का रिजर्वेशन कराने आए हो। और कौन है तेरे साथ?
(पाकेटमार लड़का बगल वाली लाइन की ओर जैसे ही देखकर बताने की कोशिश करता है। बगल वाली लाइन में लगा पाकेटमार लड़के का साथी लाइन से निकलकर भाग लेता है। पुलिस वाला फौरन दौड़कर उसे पकड़ लेता है। तलाशी लेने पर हरा पर्स पाकर तीन चार झापड रसीद करते हुए पर्स को पर्स वाले आदमी को दिखाते हुए (जिसकी पर्स गायब हुई है) को दिखाते हुए – यही पर्स है आपकी?
पर्स वाला आदमी : (आकर पर्स लेते हुए) जी जी यही है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
सीन (अगला)
दूसरी तरफ उधर साथी पुलिस वाले को एक आदमी अपनी पेन्ट की जेब से पर्स निकालकर दिखाता है। तभी पर्स निकालते समय उसकी जेब में रखी एक सुपाडी नीचे गिर जाती है। साथी पुलिस वाला नीचे गिरी सुपाडी को उठाते हुए उस आदमी से कहता है –
साथी पुलिस वाला : क्यों जी ये किसके नाम की सुपारी लिए हो?
सुपाडी वाला आदमी : क्या मतलब?
साथी पुलिस वाला : मतलब खुद जानते हुए भी हमसे पूंछते हो।
सुपाडी वाला आदमी : मैं कुछ समझा नहीं।
साथी पुलिस वाला : (गिरेबान पकडते हुए) अभी समझाता हूँ तुझे भाड़े के हत्यारे। (एक झापड रसीद करते हुए) बता किसने दी तुझे ये सुपारी? किसकी हत्या करनी है तुझे?
सुपाडी वाला आदमी : (हाथ जोड़कर) साहब आप गलत समझ रहे हैं। ये वो सुपाडी नहीं है,जो आप सोच रहे हैं। ये तो मै पंसारी के यहां से घर में दिखाने के लिए सैम्पल के तौर पर अपनी अम्मा के लिए लाया था। और धोखे से यह सुपाडी मेरी जेब में ही पड़ी रह गई।
साथी पुलिस वाला : अच्छा अच्छा तो फिर मुझे कुछ समझ, नहीं तो (हाथ में लिया डन्डा सुपाडी वाले आदमी के पेट में खोंसते हुए) साले सुपारी लेने के जुर्म में जेल में डालकर सडा दूंगा।
सुपाडी वाला आदमी : क्या समझूँ साहब? आप तो सुपाडी और सुपारी में अन्तर ही नहीं समझते।
साथी पुलिस वाला : क्या कहा?
सुपाडी वाला आदमी : कुछ नहीं, (फिर अपने पर्स से सौ का नोट निकालकर देते हुए) ये लीजिए साहब।
साथी पुलिस वाला : (नोट लेते हुए) हां ये हुई न बात। काफी समझदार लगते हो।
सुपाडी वाला आदमी : (धीरे से) समझदार क्या लगते हैं। तुम लोगों से पंगा कौन ले।
सीन (अगला)
साथी पुलिस वाला रूपए लेकर चला जाता है। लाइन में लगे लोग आपस में खुसर फुसर करते हैं।
पहला आदमी : देखा भइया पुलिस वाले पैसा बनाने में सबसे आगे हैं।
दूसरा आदमी : हां भइया सही को गलत और गलत को सही बताकर पैसा वसूलते हैं।
तीसरा आदमी : अरे भइया कोई मामला फंस जाए तो आमने सामने की दोनों पार्टियों से पैसा वसूलते हैं।
सीन (अगला)
लाइन आगे बढ़ रही है और लाइन के बीच में जो लोग खड़े थे, वो विन्डो तक पहुंचने वाले हैं। एक नम्बर विन्डो की लाइन में लगा अजय विन्डो पर अपनी बारी का इन्तजार कर रहा है। आगे लगे आदमी के विन्डो से हटते ही अजय विन्डो से अपने हाथ में लिया रिजर्वेशन फार्म टिकट क्लर्क को पकडाता है। टिकट क्लर्क अजय से फार्म लेकर कम्प्यूटर पर चेक करता है। और फिर अजय की ओर देखकर –
टिकट क्लर्क : भाईसाहब तत्काल की टिकट तो फुल हो चुकी है पच्चीस दिन बाद की रिजर्वेशन टिकट मिल सकती है।
अजय : रहने दीजिए, नहीं चाहिए। (विन्डो से बाहर होते हुए) लगता है आज मेरी किश्मत ठीक नहीं थी।
(बगल में खड़ी रूपा अजय को देखकर -)
रूपा : क्या हुआ, टिकट नहीं मिल पाई क्या?
अजय : कहाँ मिल पाई। तत्काल की करवानी है वो फुल हो गई। महीने भर बाद की टिकट से मुझे कोई फायदा नहीं। समझ में नहीं आता क्या करूं।
रूपा : वैसे आप रहते कहाँ हैं?
अजय : मलाड में रहता हूं।
रूपा : मलाड में भी नेवी कालोनी के अन्दर रेलवे का रिजर्वेशन सेन्टर है। जो नेवी वालों के लिए रेलवे ने खोल रखा है। आप ऐसा करिए,कल सुबह वहीं जाकर टिकट के लिए ट्राई करिए। एक तो वह आपको घर से पास पड़ेगा। और दूसरा यह कि भीड़ भी कम होती है।
अजय : चलिए आपने अच्छा बताया। कल ही वहां जाकर ट्राई करता हूँ। अब आप भी विन्डो पर पहुंचने वाली हैं।
रूपा : जी, देखिये क्या होता है।
अजय : (जाते हुए) अच्छा फिर मिलेंगे।
( इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले सीन में बताएँगे)
[…] कहानी का भाग-6 […]