Home Hindi Kahaniya एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-4, पढ़िए…

एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी का भाग-4, पढ़िए…

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तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी
तत्काल: एक पुरानी रेलवे आरक्षण प्रणाली पर आधारित कहानी---

कहानी का पढ़िए अगला सीन-

अरुण खरे ( कानपुर )
अरुण खरे ( कानपुर )

सीन (अगला)

विन्डो नम्बर दो की लाइन में रूपा के आगे लाइन में लगा हुआ बिहारी अपने कन्धे में झोला लटकाए व गले में अंगौछा लटकाए खड़ा है। बिहारी खड़े खड़े अचानक अपनी बांयी तरफ यानी विन्डो नम्बर एक की लाइन की तरफ घूमकर बैठ जाता है। और गले में पड़े अंगौछा को हाथ में लेकर जमीन पर बिछा देता है। फिर झोले से पोलीथीन में बंधा हुआ सत्तू अंगौछा में उड़ेल देता है। फिर एक नम्बर विन्डो की लाइन में आगे की ओर लगे हुए अपने साथी सन्तोष को आवाज लगाते हुए कहता है –

 

बिहारी : अरे सन्तोषवा लइनवा मा लागे रहेव।

सन्तोष : (बिहारी की ओर देखकर) हां भइअवा लागे हन तुम काहे बैइठ गएब। का सत्तू सानत हवा?

बिहारी : हां भइअवा सत्तू सानत वा। तुमहूं खइलवा।

सन्तोष : हां हमहू खइलवा।

बिहारी : तो रूका..अबहीं बनाएं के देत हन गोला।

(बिहारी सत्तू का गोला बनाने में मग्न हो जाता है। बिहारी का क्रियाकलाप अजय और रूपा के साथ साथ अगल बगल वाले देखकर मुस्की छोडते नजर आते हैं। बिहारी अंगौछा पर उडेले हुए सत्तू पर थोड़ा नमक मिलाता है और झोले से पानी की बोतल निकाल कर पानी सत्तू में डालकर आटा की तरह माड़ना चालू करता है।

 

अजय : (बिहारी को सत्तू माड़ते देख) अरे भइया बर्तन नहीं है का जो सत्तू अंगौछा में ही साने ले रहे हो।

बिहारी : (अजय की ओर देखकर) भइया सब देशी हिसाब किताब है। तुम ए बी सी डी कागज और पेन से पढे हो और हम अ आ इ ई खड़िया और पाटी से पढे हैं। हमारा तो भइया एक सिद्धांत है। जैसा देश वैसा वेश। हमका ता भइया कोई कुछ भी देखे कुछ भी कहे। कोनऊ फर्क नहीं पड़त है। हम ठहरे गांव के बिहारी। हमें का है नींद लगी तो झोला सिर के नीचे लगाया और लुढ़क गए जमीन में।

 

रूपा : (हंसकर) मतलब पूरा देशी हिसाब किताब है।

बिहारी : (रूपा की ओर देखकर) हां मैडम पूरा देशी हिसाब किताब है। (सत्तू का गोला बनाकर रूपा की ओर बढ़ाकर) यकीन न हो मैडम तो या खाए के देख लेव। मजा आ जाएगा। दुबारा फिर मांगोगी। बाद में मेरा नाम लोगी कि बिहारी ने भी क्या चीज खिलाई थी।

रूपा : (हंसकर) अरे न बाबा मुझे नहीं खाना ये लड्डू, तुम्हीं खाओ।

बिहारी : (सत्तू के गोले को अपने मुंह की ओर ले जाते हुए) नहीं खाना है तो न खाओ। हम तो खाएंगे ही। (सत्तू का गोला खाते हुए आवाज देकर) अरे ओ सन्तोषवा ले आइके खइले सतुआ।

 

सन्तोष : (कदम बढ़ाकर) आवत हन।

  (सन्तोष और बिहारी दोनों जमीन में बैठकर सत्तू का गोला खाते हैं। लाइन में खड़े सब उन दोनों को सत्तू खाता देख मुस्कराते हैं।)

 

           सीन (अगला)     

    एक नम्बर विन्डो की लाइन के बगल में दो तीन लेडीज आकर खड़ी हो जाती हैं। तीनों लेडीज को एक नम्बर विन्डो के बगल में खड़ा देख और लेडीज भी आ आकर एक के पीछे एक खड़ी होने लगती हैं। देखते ही देखते पच्चीस तीस लेडीज की लाइन अलग से बन जाती है। एक नम्बर विन्डो की लाइन पर पीछे की ओर खड़े एक लड़के को यह देखकर रहा नहीं जाता है। और वह पीछे से चिल्लाकर कहता है –

 

एक नम्बर विन्डो की लाइन पर पीछे खड़ा लड़का : अरे आगे वाले भाई लोगों ये बगल में लेडीज की लाइन कैसे लग रही है? कोई कुछ क्यों नहीं बोलता है। (आगे खड़े लोग पीछे की ओर देखकर हंसते हैं।)  हंस लो भइया हंस लो, तुम्ही लोगों की तो चांदी है।

 

एक नम्बर विन्डो की लाइन में पीछे खड़ा दूसरा लड़का : अरे भइया इन लेडीजन से पूछो हिन पे काहे लग रहीं हैं। और दूसरी खिड़की पे जाएके कहे नहीं लगतीं। का यही वाली खिड़की पे टिकट के साथ बत्तू मिलहे।

 

एक नम्बर विन्डो की लाइन में पीछे खड़ा तीसरा लड़का : भइया खिड़की पे टिकट के साथ बत्तू मिलहे या सत्तू। बगैर लाइन के सब भगाईं जैहे।

 

   (लेडीजों के साथ आए एक किनारे खड़े चार पांच आदमियों में से एक आदमी – लेडीजों को ढाढस बंधाते हुए…)

 

लेडीजों के साथ का एक आदमी : आप लोग घबराइएगा बिल्कुल नहीं। आप लोगों को टिकट इसी विन्डो से मिलेगा।

 

एक नम्बर विन्डो की लाइन में पीछे खड़ा पहला लड़का : कैसे टिकट मिलेगा इस विन्डो से? हम लोग चूतिया हैं क्या? जो सवेरे चार बजे से लाइन बनाए खड़े हैं। आप लोगों को क्या, आप लोग तो साथ में लेडीज को ले आए और खुद लाइन में न लगकर लेडीज को अलग से अड़ा दिया विन्डो पर। आप लोगों की तरह सभी लोग अपने साथ अगर लेडीज को साथ ले आंए तो जेन्ट्स बेचारे लाइन में खड़े रह जाएगें चूतिया बने।

 

लेडीज के साथ का दूसरा आदमी : देखिए भाईसाहब आप तावबाजी न दिखाइए। आप लोगों को भी टिकट मिलेगा और इन लेडीज को भी टिकट मिलेगा। तीन आदमियों के बाद एक लेडीज टिकट लेगी।

 

एक नम्बर विन्डो लाइन में सबसे पीछे खड़ा आदमी : तब तो भइया हम लोगों का हो जाएगा बेड़ा गर्क। खिड़की तक पहुंचते पहुंचते बज जाएगें आठ, और खिड़की हो जाएगी बन्द। तो क्या भइया बिना टिकट लिए ही हम लोगों को घर भेजने का इरादा है।

 

लेडीज के साथ का दूसरा आदमी : नहीं भाईसाहब आप लोग परेशान मत होइए आप लोगों को भी टिकट मिलेगा।

 

एक नम्बर विन्डो लाइन में सबसे पीछे खड़ा आदमी : (गुस्से में) क्या खाक मिलेगा टिकट, चूतिया बना रखा है आपने। मेरी जगह खड़े होकर देखिए फिर बताइए टिकट मिल पाएगा या नहीं। (धीमी आवाज में) बीबी के गुलाम कहीं के। (तेज आवाज के साथ) जाओ जाकर घर में बच्चों को पालो और खाना बनाओ। बीबी को घर की चहारदीवारी से बाहर निकालो। बीबी घर से बाहर निकलकर जरा देर में सब कुछ हाथ में दे देगी। क्या हो गया है जमाने को? घर की चहारदीवारी में रहने वाली पर्दानसीन औरत को इन्सान ने अपने फायदे के लिए घर से बाहर निकालकर वेपर्दा कर दिया है। शर्म लिहाज नाम की कोई चीज नहीं रही है। इज्जत तेल बेचने चली गई है।

 

   (लेडीज के साथ का दूसरा आदमी लाइन के पीछे वाले आदमी की बात सुनकर चुप रहता है। साथ ही पूरी लाइन में सन्नाटा छा जाता है।

 

                      सीन (अगला)

   एक नम्बर विन्डो की लाइन में सबसे पीछे खड़े आदमी के पास अधेड़ व्यक्ति हाथ में टिकट लिए हुए पहुंचता है और उस आदमी की ओर देखते हुए कहता है –

 

अधेड़ व्यक्ति : भाईसाहब टिकट के लिए बड़बड़ा रहे हैं का? (हाथ में टिकट लिए टिकट को दिखाते हुए) टिकट के लिए लड़ रहे हैं तो ये लो मेरा टिकट। हमने तो कानपुर की ली थी, बना दी नागपुर की।

 

एक नम्बर विन्डो की लाइन में सबसे पीछे खड़ा आदमी : (अधेड़ का हाथ पकड़कर बगल में करते हुए) अरे हटो यार, हवा आने दो। इधर मेरा दिमाग खराब है और तुम टिकट के लिए डन्डा कर रहे हो।

 

अधेड़ व्यक्ति : अच्छा नहीं लेनी है तो यही बता दो नागपुर से कानपुर बस कितने घन्टे लेती है।

 

                   सीन (अगला)        

    बिहारी अपनी लाइन में खड़ा अजय की ओर देखकर कहता है –

 

बिहारी : भइया बिल्कुल सही बात है। आदमी औरतन को लैइके आ जाता है और टिकट जल्दी पांए के चक्कर मा लइनवा अलग से लगवाए देत है। कायदे से भइया टिकट लेंई खातिर औरतन की लइनवा अलग से होइ चाही।

 

अजय: औरतों की लाइन अलग तो होनी चाहिए, मगर ऐसा हम लोगों के सोचने से क्या होता है। ये तो रेल प्रशासन को सोचना चाहिए।

 

बिहारी : भइया रेल परशासन हम लोगन की परेशानी थोडउ समझी। देखत नहीं हो, पूरी टरेनवा मा जनरल डब्बा रेल परशासन दोइ ठो लगावत है। और हर स्टेशनवा मा यात्रिन का टिकटवा बाटत चलत है। अब तुमही बतावा भइया इतने कम डब्बा मा आदमी टिकटवा लैइके चढिके कटत मरत है। रेलवा को का, ओखा ता आपनि कमाई ते मतलब बा।

 

अजय के आगे खड़ा खर्राटे वाला आदमी : भइया आज जमाना बदल गवा है। हर कोनउ कमाई के चक्कर में अपना ईमान खोए है। हरेक विभाग मा भ्रष्टाचार छाओ है। कोनउ विभाग भ्रष्टाचार से अछूतो नहीं है। चाहे वो रेल विभाग होए या रक्षा विभाग। अरे भइया पैसन के लालच मा तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजऊ बिकगे हैं।

 

बिहारी : अब न पूंछव भइया, भ्रष्टाचार के मारे कितनी मानसिक औउरि शारीरिक पीड़ा सहें का पड़ति है। अबहीं देखा भइया, हम गोरखपुर की टिकटवा खातिर दुइ दिन से लइनवा मा लागे लागे परेशान हैंई। गोरखपुर केर कन्फर्म टिकटवा लैइके भी टरेनवा मा कित्तन परेशानी झेलें का पड़ी। कभऊ टरेनवा मा सार जी आर पी वाले परेशान करिहें तो कबहूं टी टी परेशान करिहें।

 

अजय : बिल्कुल सही कह रहे हो। बिहार साइड के लोगों को जी आर पी वाले बहुत परेशान करते हैं। और साथ में पैसा भी ऐंठते हैं। इन सारी बातों को जानते हुए भी रेल प्रशासन गूंगा बना है। रेल प्रशासन को इस तरह की गलत हरकतों पर नकेल कसनी चाहिए। ताकि यात्री निडर होकर यात्रा करें, और अपने गन्तव्य तक पहुंचें।

 

बिन्डो नम्बर तीन की लाइन में खड़ा आदमी : भाईसाहब ये जितने भी सरकारी लुटेरे हैं। सब एक मिनट में सुधर जांए। लेकिन कमजोरी पब्लिक की है। पब्लिक को यूनिटी बनाकर स्ट्रिक्ट होना चाहिए इन लोगों के प्रति।

 

( इंतजार करें आगे की कहानी आपको अगले सीन में बताएँगे)

 

कहानी का भाग-1

कहानी का भाग-2

कहानी का भाग-3

 

 

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