- मुस्कुराइए: आप गंदगी और कूड़े के शहर में हैं !
शारदा रिपोर्टर
मेरठ। शहर का नाम स्मार्ट सिटी रखने से शहर स्मार्ट नहीं हो जाता है, ये हम नहीं कह रहे बल्कि शहर की सूरत हमें बता रही है। हमें ही नहीं शहर में आने-जाने वाला हर इंसान इससे सूरत-ए-हाल से रू-ब-रू है। बस कुछ वीआईपी इलाकों की बात छोड़ दें तो हर जगह कूड़ा गंदगी पसरी दिख जाएगी।
शहर की सड़कों और चौराहों को छोड़ भी दें तो बस डिपो, सरकारी अस्पताल और कचहरी परिसर जैसे सार्वजनिक स्थलों का हाल भी गंदगी से बदहाल है, जहां रोजाना हजारों लोगों का आना-जाना होता है। शहर के दो प्रमुख बस डिपो सोहराबगेट और भैंसाली डिपो सबसे प्रमुख बस डिपो हैं। जहां रोजाना हजारों यात्री आवाजाही करते हैं। लेकिन दोनो बस डिपो पर गंदगी से यात्रियों को रू-ब-रू होना पड़ता है। यात्री शेडो में एक टाइम सफाई होने के बाद दिनभर झाडू नही लगती है। वहीं, सोहराबगेट डिपो पर सीवर लाइन के काम के चलते स्थिति और अधिक खराब हो गई है। गंदगी के साथ धूल मिटटी से यात्री परेशान है। इससे भी बुरा हाल मवाना बस डिपो का है, जहां पूरे साल दोनो एंट्री गेट पर कूड़े का ढ़ेर यात्रियों का स्वागत करता है।
सरकारी अस्पतालों में गंदगी: शहर के सबसे प्रमुख जिला अस्पताल में रोजाना तीन से चार हजार मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन परिसर तो दूर अस्पताल के वार्ड तक इस कदर गंदगी से अटे रहते हैं जिनसे अस्पताल खुद संक्रमण को बढ़ावा दे देते हं। यही हाल मेडिकल कालेज का है पूरा
परिसर जगह जगह गंदगी से अटा रहता है। सबसे बुरा हाल अस्पताल की ओपीडी एरिया और वार्ड का रहता है। जहां दिनभर में एक बार भी कायदे से झाडू नही लगती है। दवा काउंटर, पर्चा काउंटर, लैब सभी जगह गंदगी से बदहाली रहती है।
सार्वजनिक परिसरों में कूड़ा
वहीं, शहर के सार्वजनिक स्थल जिनमें कमिश्नरी परिसर, कचहरी परिसर, तहसील, विकास भवन जैसे परिसर जहां सबसे अधिक लोगों की आवाजाही रहती है वहां रोजाना गंदगी आम-सी बात है। रोजाना सुबह सफाई का दावा किया जाता है लेकिन उसके बाद दोबारा झाड़ू नही लगती है जिसके चलते पूरा दिन परिसर गंदगी से सराबोर रहता है।
सरकारी अस्पतालों में मेडिकल प्रशासन के स्तर पर सफाई की व्यवस्था होती है। कचहरी, कमिश्नरी परिसर, बस डिपो पर नियमित रूप से सफाई कराई जाती है लेकिन आवाजाही अत्याधिक रहती है इसलिए गंदगी कुछ ही देर में दिखने लगती है। – डा. हरपाल सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी