- भवन संख्या 661/6 को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रखा बहाल,
- भवन मालिक की रिट को किया खारिज,
- पूरे सेंट्रल मार्केट पर खड़े हुए संकट के बादल।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। मेरठ की शास्त्री नगर स्थित सेंट्रल मार्केट में बने करीब डेढ़ हजार अवैध निमार्णों पर जल्द ही बुलडोजर गरजेगा। सेंट्रल मार्केट में अवैध रूप से रेजिडेंशियल प्लॉट में कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स और दुकानें बना दी गई थी। हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सेंट्रल मार्केट के मामले में अपनी मुहर लगा दी है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला व न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने दस साल पुराने मामले में सुनवाई की मामले को लेकर फैसला सुनाया। दरअसल, आवास विकास के अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में भू उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
बता दें कि, एक दशक से भी ज्यादा से चल रहे इस मामला में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है। आवास विकास परिषद के अधिकारियों की मिलीभगत से यहां अवैध कॉम्प्लेक्स और दुकानें बना दी गई थी। जानकारों की मानें तो आवास विकास विभाग के उन लापरवाह अफसरों पर भी कार्यवाही की जाएगी, जिन्होंने अवैध निर्माण को रूकवाने के बजाय सबकुछ जानते हुए भी आंखें मूंद ली थी। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों में हड़कंप मचा हुआ है।
शास्त्री नगर स्थित सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर हुए सभी अवैध निमार्णों को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए भवन स्वामियों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाएगा। इसके दो सप्ताह बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निमार्णों को ध्वस्त करना होगा। इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे, वरना कोर्ट की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी।
कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं।जिनके कार्यकाल में ये सबकुछ होता रहा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभी तक साइट पर अपलोड नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 में दिए भूखंड 661/6 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण आदेश की पुष्टि की है। साथ ही आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं।
1478 अवैध निमार्णों पर गिरेगी गाज: 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए 499 भूखंडों के भू-उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट आवास एवं विकास परिषद से मांगी थी। इसके बाद परिषद ने शास्त्रीनगर स्कीम-7 और स्कीम-3 में सर्वे करके कुल 1478 आवासीय भूखंडों की रिपोर्ट दी थी। जिनमें भू-उपयोग परिवर्तन कर व्यावसायिक गतिविधि चल रही है। इस मामले में आवास विकास परिषद ने शास्त्रीनगर के व्यापारियों को 1995 में नोटिस दिए थे। उस समय व्यापारियों ने नोटिसों को दरकिनार कर दिया था। अगर उस समय नोटिस को गंभीरता से ले लिया जाता तो आज यह मामला नासूर न बनता।
घरों में शटर लगाकर बनाईं दुकानें: अधिशासी अभियंता आफताब अहमद ने बताया कि सप्ताह भर में आवासीय संपत्तियों का मौका-मुआयना किया गया। 800 संपत्तियां ऐसी हैं, जो आवासीय हैं उनमें व्यावसायिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। लोगों ने घर में शटर लगाकर दुकानें बना ली हैं।
सेक्टर-2 व 6 में सबसे ज्यादा दुकानें
सर्वे में सेक्टर-2 व छह में घरों में सबसे ज्यादा दुकानें मिली हैं। सेंट्रल मार्केट के अंतर्गत ही यह क्षेत्र आता है। इसके अलावा सेक्टर-3, 4, 5 व 7 में भी लोगों ने घरों में दुकानें बना ली हैं। इसके अलावा एल-ब्लॉक में मुख्य मार्ग पूरी तरह व्यावसायिक में परिवर्तित कर दिया गया है। कई ब्लॉक में तो कुछ लोग कोठियों में ही व्यावसायिक गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। वहीं सबसे कम सेक्टर-12 में महज दो ही आवासीय भवनों में व्यावसायिक प्रयोग होते टीम को मिला।
लगातार बन रहे शोरूम और कांपलेक्स
सेंट्रल मार्केट में सराफा, डेयरी, रेडीमेड गारमेंट्स, मर्चेंट स्टोर आदि लगातार बन रहे हैं। कई लोगों ने क्षेत्र में निचले तल पर शोरूम बना लिए हैं और ऊपरी तल पर घर बना लिए हैं। अफसरों से साठगांठ करके बड़े पैमाने पर गली-गली में दुकानें, शोरूम बन रहे हैं। व्यापारी इसके लिए अफसरों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से जहां अफसर सहमे हैं तो वहीं व्यापारियों में भी खलबली मची है।
ये है सेंट्रल मार्केट का पूरा मामला
सेंट्रल मार्केट के 661/6 प्लाट पर बनी जिन 24 दुकानों को गिराने के हाईकोर्ट ने आदेश किए थे ये प्लॉट आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम है, जबकि 1992 से लेकर 1995 तक इस प्लॉट में बनी तमाम दुकानों को व्यापारियों को बेंच दिया गया। व्यापारियों ने इस भवन को अपने नाम नहीं कराया। आवास विकास सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक वीर सिंह को ही प्रोपर्टी का मालिक मानते हुए पार्टी बनाती रही है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर स्टे मिल गया था। लेकिन 10 साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिसे तैयार करके परिषद ने कोर्ट में दाखिल कर दिया था।