Home Meerut चुनावी चर्चा: पहले से कम डला वोट, किसको देगा चोट

चुनावी चर्चा: पहले से कम डला वोट, किसको देगा चोट

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– दूसरे चरण में यूपी में 54.83 फीसदी मतदान, पहले चरण की तुलना में 5.76 फीसदी कम हुई वोटिंग


अनुज मित्तल, समाचार संपादक

मेरठ। लोकसभा चुनाव में यूपी के भीतर दो चरणों का मतदान हो चुका है, लेकिन 2019 के चुनाव की तुलना में जहां मतदान का प्रतिशत कम रहा है। वहीं हैरत की बात ये रही कि पहले चरण की तुलना में दूसरे चरण का मतदान और भी कम रह गया। जिसे लेकर सभी राजनीतिक दल परेशान हैं। मतदान कम होने के पीछे मौसम की मार हो या फिर मतदाताओं की अन्य किसी कारणों से उदासीनता लेकिन इस कम मतदान ने चुनाव परिणाम की चर्चा को दिलचस्प बना दिया है।

19 अप्रैल को पहले चरण में प्रदेश में कुल 60.59 फीसदी मतदान हुआ था। वहीं 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर हुए मतदान से यह 7.93 फीसदी कम है। लगातार गिर रहे मतदान के ग्राफ को देखते हुए राजनीतिक दल परेशान हैं। ऐसे में अब राजनीतिक दलों को समझ जाना चाहिए, उनकी जो भी जुबानी जंग चल रही है, उससे जनता पर सिर्फ नकारात्मक प्रभाव ही जा रहा है। यही कारण है कि मतदान के प्रति लोग विमुख होते जा रहे हैं।

कम मतदान को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित भाजपा है। क्योंकि पिछले चुनावों का रिकार्ड यदि देखें तो जहां भी कम मतदान हुआ है, वहां अधिकांश सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। बढ़ा हुआ मतदान ही भाजपा की जीत का कारण बनता है। लेकिन इस बार जिस तरह अब तक दो चरणों में लागातार मतदान का ग्राफ गिर रहा है, वह बहुत ही चौंकाने वाला है। अहम बात ये है कि शहरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि देहात में भी मतदान को लेकर इस बार अभी तक कोई खास उत्साह नजर नहीं आ रहा है।

कम मतदान से उलझे हार जीत के आंकड़े

मेरठ सीट की अगर बात करें तो यहां पर पिछले चुनाव की तुलना में इस बार साढ़े पांच प्रतिशत मतदान कम हुआ है। सीधे-सीधे एक लाख से ज्यादा वोट इस बार इस चुनाव में नहीं डल पाए हैं। अब ये एक लाख वोट किसके कम हुए हैं, यह तो मतगणना से ही पता चलेगा। लेकिन मतदान का रूझान देखने के बाद एक बात जरूर साफ हो गई है कि मुकाबला सपा और भाजपा के बीच ही है। इसमें अब देखने वाली बात ये होगी कि बसपा कितनी वोट लेती है। यदि बसपा की सेंधमारी ज्यादा होती है, तब भी वह सपा और भाजपा दोनों के लिए मुसीबत बन सकती है। क्योंकि त्यागी वोटों का बसपा के पक्ष में ज्यादा जाना जहां भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा, वहीं यदि दलित वोट बसपा के पक्ष में ज्यादा जाती हैं, तो सपा को नुकसान होगा। इसके बीच मुस्लिम वोट जो अभी तक ज्यादा बंटती हुई नजर नहीं आ रही हैं, उन पर भी काफी कुछ निर्भर कर रहा है।

हालांकि मतदान के रूझान और प्रतिशत को देखते हुए सपा खेमा जहां उत्साहित नजर आ रहा है, वहीं भाजपा के भीतर बेचैनी है। इसका बड़ा कारण ये है कि किठौर, हापुड़, दक्षिण और शहर की तुलना में मेरठ कैंट जो भाजपा का हमेशा ही तारणहार बना है या यू कहें कि हार जीत के अंतर को बनाया है, वहां का मतदान सबसे कम हुआ है।

2019 के चुनाव में सांसद राजेंद्र अग्रवाल हापुड़ से लेकर मेरठ शहर तक हारते हुए आए थे। तब तक कैंट विधानसभा की मतगणना शुरू ही हुई थी और वह बसपा प्रत्याशी से भारी वोटों से पीछे थे। लेकिन कैंट विधानसभा ने उन्हें आखिर में जीत का सेहरा पहना ही दिया। ऐसे में कैंट का कम मतदान सभी को हैरान और परेशान कर रहा है।

कुछ जगह इस बार बेहतर दिखा मतदान

कैंट विधानसभा क्षेत्र में आने वाला साकेत-मानसरोवर का मतदान कभी भी पचास प्रतिशत नहीं रहा है। यहां पर निगम चुनाव में भी मतदान बहुत कम रहा है। लेकिन इस बार यहां अप्रत्याशित रूप से मतदान पचास प्रतिशत को पार कर गया। लेकिन अन्य क्षेत्र जो खांटी भाजपाई कहलाते थे, वहां पर मतदान कम हुआ।

दक्षिण में भाजपा के गढ़ में सूना रहा मतदान केंद्र

दक्षिण विधानसभा में शास्त्रीनगर क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां के संत विवेकानंद इंटर कालेज में भी मतदान केंद्र बना था। इस मतदान केंद्र पर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर का भी बूथ है और वह यहां मतदान करते हैं। लेकिन एक बजे यह मतदान केंद्र पूरी तरह खाली पड़ा हुआ था।

मुस्लिम आबादी में भी ज्यादा नहीं रहा उत्साह

मतदान को लेकर सिर्फ एक ही वर्ग नहीं बल्कि मुस्लिम भी उदासीन नजर आए। अमरोहा में जहां 2019 के चुनाव में 71.05 प्रतिशत मतदान हुआ था, वहीं इस बार वहां भी घटकर मात्र 64.02 प्रतिशत रह गया।

शहरी नहीं देहात में भी मतदाता रहा उदासीन

गाजियाबाद लोकसभा का अधिकांश हिस्सा शहरी क्षेत्र में आता है, वहां का मतदान इस बार मात्र 49.65 प्रतिशत रहा। जबकि बागपत जो कि देहात क्षेत्र का ही प्रतिनिधित्व करता है, वहां का मतदान भी इस बार 55.96 प्रतिशत रहना इस बात को साफ बताता है कि हर क्षेत्र का मतदाता इस बार उदासीन ही नजर आया है।

जनता के मन की बात सुनते तो बात बनती

अभी तक दो चरण के मतदान में 16 सीटों पर मतदान हो चुका है। एक तरह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग सभी सीटों पर मतदान निपट चुका है। लेकिन मतदान के गिरे ग्राफ ने साफ कर दिया कि इस बार मतदाता किसी भी पार्टी के मुद्दे या वादे से प्रभावित नहीं हो रहा है। ऐसे में साफ है कि राजनीतिक दलों को भी अब जनता के मन की बात सुननी होगी। क्योंकि नेता अपने मन की बात ही सुनाते रहते हैं, लेकिन जनता के मन की बात न सुनने के कारण ही इस बार यह उदासीनता अब तक नजर आ रही है।

कहां कितना मतदान
क्षेत्र 2019 2024
अमरोहा 71.05 64.02
मेरठ 64.29 58.70
अलीगढ़ 61.68 56.62
बागपत 64.68 55.96
बुलंदशहर 62.92 55.79
गौतमबुद्ध नगर 60.49 53.06
गाजियाबाद 55.89 49.65
मथुरा 61.08 49.29
कुल 62.76 54.83

मेरठ लोकसभा के विधानसभावार आंकड़े

विधानसभा 2024 2019
किठौर 61.36 69.90
शहर 61% 64.11
दक्षिण 57.30 62.72
केन्ट 55.57 59.47
हापुड़ 59.43 65.90
कुल 58.93 64.42
अंतर 05.49 प्रतिशत

 

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