– पहले ही कार्रवाई कर दी होती तो रूक जाते दूसरे अवैध निर्माण और बच जाते व्यापारी।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। सेंट्रल मार्केट में जिस कांप्लैक्स को लेकर शनिवार को ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। वह आवास एवं विकास परिषद की लापरवाही का नतीजा है। यदि यह कार्रवाई 35 साल पहले कर दी गई होती, तो आज जो व्यापारी खुद को ठगा सा महसूस कर आंसू बहाते नजर आ रहे थे, यह नहीं होता। इसके साथ ही इसके बाद जो अवैध निर्माण हुए हैं, वह भी नहीं होते।
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आवास एवं विकास परिषद के दस्तावेजों में सेंट्रल मार्केट नाम से कोई बाजार नहीं है। स्कीम नंबर सात में शास्त्रीनगर सेक्टर-6 व 2 के तहत बाजार विकसित होता गया। यहीं पर 288 वर्ग मीटर का भूखंड संख्या 661/6 है, इसमें 22 दुकानें हैं। विभाग के दस्तावेजों के मुताबिक वीर सिंह निवासी काजीपुर को भूखंड आवंटन हुआ।
30 अगस्त 1986 को कब्जा दिया गया। छह अक्तूबर 1986 को फ्री होल्ड डीड हुई, इसमें संपत्ति को आवासीय प्रयोग के लिए योजित किया गया। विनोद अरोड़ा के नाम पावर आॅफ अटॉर्नी हुई। इसके बाद 22 दुकानों का कॉम्प्लेक्स बना दिया गया।
19 सितंबर 1990 को आवास एवं विकास परिषद की ओर से कारण बताओ नोटिस भेजकर अवैध निर्माण रोकने को कहा गया। नौ फरवरी 2004 को आवंटित भूखंड का अवैध रूप से उपयोग किए जाने या वाणिज्यिक उद्देश्य के प्रयोग पर संपत्ति को हटाया जा सकता था। कॉम्प्लेक्स प्रबंधन की ओर से कोई जवाब दाखिल न करने पर 23 मार्च 2005 को ध्वस्तीकरण के आदेश पारित हुए। आदेश के बावजूद विभाग की ओर से कोई कार्रवाई न होने पर 17 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने ध्वस्तीकरण के आदेश दिया।
जिसके बाद आज पूरे अमले के साथ परिषद की तरफ से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू की गई। हालांकि चर्चा है कि शीघ्र ही अन्य निर्माण भी अब ध्वस्तीकरण की जद में आएंगे।
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