Home Meerut बाहरी प्रत्याशी थोपा तो भाजपा को पड़ सकती है मुश्किल

बाहरी प्रत्याशी थोपा तो भाजपा को पड़ सकती है मुश्किल

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– लोकसभा चुनाव 2024 में मेरठ और गाजियाबाद सीट पर प्रत्याशी बदलने के कयास हुए तेज
– बागपत और बिजनौर पहले ही जा चुकी है रालोद के पाले में


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर यूपी की सीटों पर मंथन चल रहा है। पार्टी नेतृत्व अपने चहेते नेताओं को ऐसी सुरक्षित सीटों से चुनाव लड़ाना चाहता हैं, जहां पर जीत सुनिश्चित हो सके। लेकिन पार्टी का यह आत्मविश्वास उसके लिए घातक हो सकता है। क्योंकि स्थानीय पर बाहरी को वरियता देना भारी पड़ सकता है।

मेरठ लोकसभा सीट पर वर्तमान में राजेंद्र अग्रवाल सांसद हैं और वह लगातार तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। हालांकि पिछला चुनाव वह बहुत ही कम अंतर से जीते थे, ऐसे में साफ है कि इस बार भाजपा के लिए यह सीट आसान नहीं होगी। लेकिन पार्टी नेतृत्व इस सीट को पूरी तरह भाजपा की सुरक्षित सीट मानकर चल रहा है। ऐसे में चर्चा है कि यहां से कवि कुमार विश्वास या अरुण गोविल को चुनाव लड़ाया जा सकता है। जबकि स्थानीय स्तर पर कई वैश्य बिरादरी के कद्दावर नेता यहां से चुनाव लड़ने की कवायद में जुटे हैं।

यदि यहां पर स्थानीय के ऊपर बाहरी को वरियता दी जाती है तो निश्चित रूप से पार्टी से जुड़ा आम मतदाता कहीं न कहीं उदासीन हो सकता है।

गाजियाबाद सीट से जनरल वीके सिंह वर्तमान में सांसद हैं। इस सीट पर पार्टी ठाकुर को ही प्रत्याशी बनाएगी, लेकिन इस बार यहां से भी भाजपा प्रत्याशी बदलने पर मंथन कर रही है। हालांकि अभी भी वीके सिंह का दावा मजबूत माना जा रहा है। बावजूद इसके यहां से अनिल जैन और पूर्व राज्यसभा सदस्य अनिल अग्रवाल भी मजबूती से दावा कर रहे हैं।

अब सवाल ये उठता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा वैश्य और ठाकुर को छोड़कर बाकी सभी बिरादरियों का समायोजन कर चुकी है। मेरठ सीट पर वैश्य का दावा मजबूत है, लेकिन यदि गाजियाबाद से भाजपा वैश्य को प्रत्याशी बनाती है, तो मेरठ सीट पर किसे उतारेगी। जबकि मामला फिर से बाहरी और स्थानीय का खड़ा हो सकता है।
बिजनौर और बागपत सीट पहले ही भाजपा अपने गठबंधन के सहयोगी दल रालोद को दे चुकी है, तो अब मेरठ और गाजियाबाद को लेकर भाजपा नेतृत्व के निर्णय का सभी बेताबी से इंतजार कर रहे हैं।

भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की मानें तो जिस जोश के साथ कार्यकर्ता स्थानीय प्रत्याशी को चुनाव लडाएंगे, उस जोश के साथ बाहरी प्रत्याशी का साथ नहीं दे पाएंगे। इसके साथ ही अधिकांश का मानना है कि कुमार विश्वास जैसे व्यक्तित्व को लोकसभा चुनाव लड़ाने के बजाए भाजपा नेतृत्व को उन्हें राज्यसभा में मनोनीत करना चाहिए था। क्योंकि वह अपने कार्य के कारण अधिकांश समय जनता और कार्यकर्ताओं से दूर ही रहेंगे। ऐसा ही अरूण गोविल के साथ भी होगा।

मेरठ का संदेश कई सीटों पर डालेगा असर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र मेरठ ही है। ऐसे में यदि मेरठ से संदेश गलत जाता है, तो भाजपा की कई सीटों का गणित बिगड़ सकता है। जिससे भाजपा बचना चाहेगी।

बसपा प्रत्याशी बिगाड़ चुका है भाजपा का समीकरण

इसमें भी सबसे ज्यादा परेशानी अब बसपा प्रत्याशी को लेकर आ खड़ी हुई है। बसपा प्रत्याशी देवव्रत त्यागी के प्रत्याशी बनते ही अप्रत्याशित रूप से त्यागी बिरादरी ने उन्हें खुलकर समर्थन देना शुरू कर दिया है। जिस तरह सोशल मीडिया पर देवव्रत त्यागी का प्रचार त्यागी बिरादरी के युवा और नेता कर रहे हैं, वह भाजपा के कैडर वोट बैंक में सीधे-सीधे बड़ी सेंधमारी की तरफ इशारा कर रहा है।

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