- पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद जुटेंगे लोकसभा चुनाव की तैयारी में।
- 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अमित शाह पर था यूपी का प्रभार।
- शाह ने संगठन स्तर पर एक बूथ दस यूथ की रणनीति से बदली थी चुनावी तस्वीर।
अनुज मित्तल, समाचार संपादक |
मेरठ। लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से यूपी की कमान अमित शाह संभालने जा रहे हैं। इसका बड़ा कारण यूपी के रास्ते ही दिल्ली की मंजिल तय होना माना जा रहा है। इसके अलावा इस बार यूपी और खासतौर पर पश्चिमी यूपी में भाजपा की राह आसान नजर नहीं आ रही है। जिस कारण अमित शाह को फिर से यहां मैदान में उतरना पड़ रहा है।
लोकसभा चुनाव 2014 में अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। अमित शाह ने दिन रात एक कर तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के साथ मिलकर बूथ स्तर तक न केवल मजबूत संगठन खड़ा किया, बल्कि सोशल मीडिया के साथ ही चुनाव प्रचार को एक नई धार दी। जिसका परिणाम ये हुआ कि भाजपा पहली बार केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ आई। हालांकि इसमें मोदी का चेहरा भी बहुत अहम भूमिका निभा रहा था।
वर्ष 2019 के चुनाव में भी भाजपा को भारी बढ़त मिली। लेकिन इसके पीछे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार का होना माना गया। लेकिन अब पिछले डेढ़ साल के भीतर तस्वीर कुछ बदलती नजर आ रही है। एक तरफ जहां किसानों की नाराजगी बढ़ी है, तो दूसरी तरफ व्यापारी और आमजन भी ज्यादा खुश नहीं है। इसके अलावा प्रदेश की प्रमुख पार्टियों का एकजुट होना भी भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है।
इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने सबसे ज्यादा संकट नजर आ रहा है। क्योंकि आईएनडीआईए गठबंधन में सपा के साथ रालोद और आसपा के होने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति बदल गई है।
रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकांश सीटों पर चुनाव प्रभावित करने की स्थिति में है तो कई सीटों पर बेहद मजबूत है। ऐसे में सपा और आजाद समाज पार्टी के साथ ही कांग्रेस का साथ मिलने पर यह गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने मुसीबत खड़ी कर सकता है। इससे पार पाने के लिए एक बार फिर से अमित शाह उत्तर प्रदेश में चुनावी धार तेज करने के लिए मैदान में उतारे जा रहे हैं।
संगठन और जनप्रतिनिधियों के झोल आएंगे सामने
अमित शाह यदि उत्तर प्रदेश की कमान संभालते हैं, तो प्रदेश के कई नेताओं और जनप्रतिनिधियों के लिए मुसीबत हो सकती है। क्योंकि चुनाव के दौरान अमित शाह सीधे कार्यकर्ताओं से संवाद करेंगे और ऐसे में स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच पैदा असंतोष के साथ संगठन नेताओं और जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली को भी करीब से जानेंगे। ऐसे में शाह के आने से इन मानमानी करने वाले नेताओं के सामने परेशानी आ सकती है।