– 23 अक्टूबर को मेडिकल इमरजेंसी में तीमारदारों के साथ हुई थी मारपीट।
– जांच कमेटी कर रही पीड़ितो का इंतजार, बयान रिपोर्ट में होंगे शामिल।
– पीड़ित पक्ष की मांग पर लगाया गया है एससी-एसटी एक्ट।
प्रेमशंकर, मेरठ। लाला लाजपतराय मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में बीते 23 अक्टूबर की देर रात को मरीज के तीमारदारों के साथ जूनियर डाक्टर्स ने मारपीट कर दी थी। प्रकरण को लेकर मेडिकल प्रशासन ने चार जूनियर डाक्टरों को तुरंत अगले आदेश तक निलंबितत कर दिया था। इसके साथ ही मेडिकल के तीन वरिष्ठ डाक्टरों की जांच कमेटी बनाई गई है जो जांच के बाद अपनी रिपोर्ट मेडिकल प्रशासन को सौंपेगी। लेकिन तीन दिन बीतने के बाद भी अभी तक पीड़ित पक्ष जांच कमेटी के सामने अपना पक्ष रखने नहीं पहुंचा है। जबकि पीड़ित पक्ष ने एसएसपी से मिलकर मामले में एससी-एसटी एक्ट की धाराएं बढ़ाने की मांग की जिसके बाद एससी-एसटी की धाराएं बढ़ा दी गई है। लेकिन अब यह बात साफ हो गई है कि इस पूरे प्रकरण में एससी-एसटी एक्ट नहीं लग सकता?
– आरोपी डाक्टरों में से एक खुद है दलित
इमरजेंसी मेंं तीमारदारों के साथ की गई मारपीट में शामिल जूनियर डाक्टर्स में से एक डाक्टर अभिषेक स्वयं एससी है। ऐसे में पीड़ित पक्ष ने एसएसपी से मिलकर प्रकरण में एससी-एसटी एक्ट जोड़ने की जो मांग की थी जिसके बाद एससी-एससी एक्ट की धारएं बढ़ा दी गई है। लेकिन दलित एक्ट तभी लग सकता है जब एक पक्ष दलित हो और दूसरा पक्ष गैर दलित। लेकिन इस प्रकरण में आरोपी पक्ष में से एक डाक्टर खुद दलित है। ऐसे में मारपीट करते समय दलित होने पर पीटने का आरोप निराधार हो सकता है। साथ ही जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करने पर भी सवाल उठ रहे है। यानी मारपीट जाति को लेकर नहीं की गई थी।
– जांच कमेटी की रिपोर्ट अधर में लटकी
मेडिकल प्रशासन ने मामले को लेकर पहले तीन डाक्टरों उसके बाद एक और डाक्टर को निलंबित कर दिया है। साथ ही तीन सदस्यों की जांच कमेटी बनाई गई है जिसकी रिपोर्ट फिलहाल अधर में लटकी है। जांच कमेट ने आरोपियों के तो बयान दर्ज कर लिये है जबकि पीड़ित पक्ष की ओर से अभीतक कोई भी जांच कमेटी के सामने अपना पक्ष रखने नहीं पहुंचा है। ऐसे में जांच कमेटी अपनी रिपोर्ट में एक पक्ष का ही हवाला देकर रिपोर्ट मेडिकल प्रशासन को सौंप सकती है।
मेडिकल प्रशासन की जांच टीम पीड़ित पक्ष का इंतजार कर रही है। यदि पीड़ित पक्ष आकर अपनी बात सामने रखता है तो उसे भी जांच रिपोर्ट का हिस्सा बनाया जाएगा। लेकिन पीड़ितों के सामने नहीं आने से जांच रिपोर्ट फिलहाल अधर में लटकी है। – डा. वीडी पांडे्य, मीडिया प्रभारी, मेडिकल कॉलेज, मेरठ।
मामले की जांच अब सीओ सिविल लाइन्स कर रहे है, सही जानकारी वही दे सकते है। यदि एक डाक्टर स्वयं दलित है तो बाकि के जो दलित नहीं है उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज हो सकता है। – अवधेश कुमार, थाना अध्यक्ष, थाना मेडिकल।