शारदा रिपोर्टर मेरठ। विभिन्न समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर बुधवार को मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान और मजदूर सहायता समिति के दर्जनों सदस्यों ने कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने भारत सरकार को संबोधित ज्ञापन डीएम कार्यालय पर सौंपते हुए बताया कि एक समान काम पर एक समान वेतन दिया जाना चाहिए। लेकिन हर राज्य और विभाग में काम और वेतन में भारी अंतर से कर्मचारी का उत्पीड़न हो रहा है।

ज्ञापन में कहा कि आज भारत का मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकश जनता इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। एक तरफ देश में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती जा रही है। तो वहीं दूसरी मजदूरों को नौकरी से निकाला जा रहा है, उनकी मजदूरी कम की जा रही है। कर्मचारियों के सम्मान पर व्यपस्थित रूप से हमला किया जा रहा है। जबकि, हमेशा की तरह पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक संधि के रूप में काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि, वर्तमान मोदी सरकार ने मजदूर वर्ग के खिलाफ सीधा और निर्मम हमला बोल दिया है। सुधार के नाम पर इसने मजदूर विरोधी श्रम महिलाएं बनायी है। कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों, बैंक और बीमा का निरन्तर निजीकरण कर रहे हैं। वहीं, सरकार मेहनतकश जनता को नहीं, बल्कि पूंजीपतियों की सेवा कर रही है। मजदूर वर्ग की एकजुट शक्ति को कमजोर करने के लिए शासक वर्ग जानबूझकर साम्प्रदायिकता, जातिवाद और अंध राष्ट्रवाद का जहरा भर रहा है।
इसलिए समिति यह मांग करती है कि, मजदूर विरोधी संहिताओं को तत्काल निरस्त करने और दशकों के मजदूर संघर्ष से प्राप्त सभी श्रम अधिकारों की बहाली की जाए। हड़ताल करना और संगठित होना कोई अपराध नहीं है, यह जनता का मूल तोकतांत्रिक अधिकार है। हम सभी तरह के दमन की समाप्ति, झूठे मुकदमों को वापिस लेने और बस्ति मजदूरों की बहाली की जाए। समान काम के लिए समान वेतन, ठेका प्रथा समाप्त करने और सभी के लिए स्थायी-सुरक्षित रोजगार की मांग को पूरा किया जाए। न्यूनतम मासिक वेतन 30,000 रुपये और वेतन को महंगाई के हिसाब से बढ़ाया जाये और मजदूरों के लिए रोजगारी भत्ते को भी दिए जाने की मांग की।


