शारदा रिपोर्टर मेरठ। माता श्री मातंगी महाविद्या, जो जल्दी ही माता बगलामुखी ब्रह्मास्त्र महाविद्या धाम यज्ञशाला में प्राण प्रतिष्ठित होने जा रही है।
ऋषि राज मतंग ऋषि की पुत्री मातंगी जो तमिलनाडु मेके मुद्राई मंदिर में माता मीनाक्षी दैवी स्वरूप विराजमान है, दूसरा स्वरूप काशी बनारस माता विलक्षी रूप में और तीसरा स्वरूप माता कामाक्षी दैवी कांचीपुरम में विराजमान है।
आचार्य प्रदीप गोस्वामी ने बताया कि मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छू सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है। इसीलिए ऋषियों ने कहा है मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णत: उच्यते। इससे यह स्पष्ट होता है की मातंगी साधना पूर्णता की साधना है। जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता ।
मां मातंगी आदि सरस्वती है,जिस पर मां मातंगी की कृपा होती है उसे स्वत: ही सम्पूर्ण वेदों, पुरानो, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है ,उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है। फिर साधक को मंत्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती ,उसके मुख से स्वत: ही धाराप्रवाह मंत्र उच्चारण होने लगता है। साधक की ख्याति संपूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है ।कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी नहीं हो सकता,वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है। मातंगी साधना से वाक सिद्धि की प्राप्ति होते है, प्रकृति साधक से सामने हाँथ जोड़े खडी रहती है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है ।
भगवती मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते है,इस रूप में मां साधक के समस्त शत्रुओ एवं विघ्नों का नाश करती है,फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का कोई असर नहीं होता । जिसे संसार में सब ठुकरा देते है,जिसे संसार में कही पर भी आसरा नहीं मिलता उसे मां उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है,और साधक को वो शक्ति प्रदान करती है जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ सी नजर आती है।