साहित्य लोक:-
मेरे पास कुछ भी नही
तेरी पूजा के अर्पण को वंदन मेरे पास नही है,
तुम कंचन मृगया बन जाओ वो वन मेरे पास नहीं है
तुम्हे कोटि सम्मानित करने अभिनंदन मेरे पास नहीं है
रूप तुम्हारा और बढ़ा दे वो कुंदन मेरे पास नहीं है !!
तुम्हारे रूप को बता सके वर्णन मेरे पास नहीं है
तुम जो हो वो दिखा सके दर्पण मेरे पास नहीं है
जैसा सुंदर रूप तुम्हारा दर्शन मेरे पास नहीं है !!
जैसा सुंदर चित्र तुम्हारा चित्रण मेरे पास नहीं है
जैसी महक तुम्हारे तन की चंदन मेरे पास नहीं है
कैसे प्यास बुझेगी मन की सावन मेरे पास नहीं है
सब कुछ अर्पण कर दूं तुमको,
समर्पण मेरे पास नहीं है!
कोटि वर्ष तक तुमको चाहूँ,
जीवन मेरे पास नहीं है !!!!