न्यूयार्क। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ बम के जरिए कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर चुके हैं। इसका असर भारत पर भी देखने को मिला है। हालांकि, फिलहाल एक राहत भरी खबर यह है कि ट्रंप प्रशासन ने जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने की योजना को टाल दिया है। यह फैसला भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, क्योंकि अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली ज्यादातर सस्ती दवाएं भारत से निर्यात होती हैं।
अगर टैरिफ लगाया जाता तो भारतीय दवाएं अमेरिकी बाजार में महंगी हो जातीं और उनकी मांग घट सकती थी। मेडिकल डेटा एनालिटिक्स कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में उपयोग की जाने वाली करीब 47% जेनेरिक दवाएं भारत से आती हैं। भारत की हिस्सेदारी इतनी बड़ी है कि उसे अक्सर दुनिया का दवाखाना कहा जाता है। भारत की दवाओं का अमेरिका के स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और एंटीबायोटिक जैसी जीवनरक्षक दवाएं भारत की कंपनियों से भारी मात्रा में आयात की जाती हैं। इन दवाओं की कीमत अमेरिका में स्थानीय उत्पादन की तुलना में काफी कम पड़ती है, जिससे वहां के नागरिकों को राहत मिलती है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने की जांच शुरू की थी। इस जांच में न केवल तैयार दवाएं बल्कि उनके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल को भी शामिल किया गया था। हालांकि, जांच के बाद वाणिज्य विभाग ने इस दायरे को सीमित करने की सिफारिश की, क्योंकि कई विशेषज्ञों का मानना था कि जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने से अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी और मार्केट में कमी भी हो सकती है।
एक धड़ा चाहता था कि बाहरी देशों की दवाओं पर ऊंचा टैरिफ लगाकर उत्पादन अमेरिका में वापस लाया जाए, जबकि दूसरा समूह मानता था कि ऐसा कदम अमेरिकी जनता के लिए नुकसानदेह होगा।