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Wednesday, December 3, 2025
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Homeउत्तर प्रदेशMeerutतालाबों पर अवैध निर्माण करके सुखाया जा रहा धरती का ‘गर्भ’ !

तालाबों पर अवैध निर्माण करके सुखाया जा रहा धरती का ‘गर्भ’ !

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जनपद में अधिकांश तालाबों पर हैं अतिक्रमण और अवैध कब्जे

शारदा रिपोर्टर


मेरठ। जिले में तालाबों के संरक्षण को लेकर प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई न होने से इनका अस्तित्व समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। वहीं जानकारों का मानना है कि अगर कोर्ट के आदेश का पालन किया जाए तो तालाबों के अस्तित्व को एक बार फिर बचाया जा सकता है।

एक ओर जहां उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तालाबों का सौंदर्यीकरण करने के दावे कर रही हैं, वहीं भूमाफिया और दबंग न सिर्फ तालाबों पर कब्जा किए हुए हैं, बल्कि सरकार के दावों की भी पोल खोल रहे हैं। ऐसा ही मेरठ जिले में देखने को मिल रहा है। जहां 80 फीसदी से ज्यादा तालाबों पर ग्रामीणों और दबंगों ने कब्जा किया हुआ है। जिले में 3062 तालाबों में से, जहां 1530 तालाबों पर अस्थाई कब्जा था, वहीं 1000 से ज्यादा तालाब धरातल से गायब हो गए हैं।

इसके बाद मेरठ जिले में कुल 400 तालाब ही ऐसे बचें है, जिनमें पानी भरा हुआ है। हालांकि यह बात अलग है कि प्रशासन ने अभियान चलाकर पिछले चार सालों में करीब सौ से ज्यादा तालाबों से अतिक्रमण हटाकर अमृत सरोवर तालाब योजना के तहत उनके अस्तित्व को बचाया है।

तालाबों पर लगातार बढ़ रहा अतिक्रमण: तालाबों पर हो रहे अवैध कब्जेबता दें कि गांव की जीवन धारा कहे जाने वाले तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। जहां प्रत्येक गांव में 4-5 तालाब हुआ करते थे, वहां आज इक्का-दुक्का तालाब ही शेष बचे हैं। तालाब किनारे बसे ग्रामीणों और दबंगों ने तालाबों की जमीन को घेरकर कब्जा करना शुरू कर दिया है। तालाबों पर कब्जा होने से पानी निकासी की समस्या तो पैदा हो ही गई है। साथ ही गंदगी से बीमारियां फैलने का खतरा भी बना हुआ है। जबकि, ज्यादातर तालाबों पर अस्थाई कब्जे मिले. कई तालाबों पर कब्रिस्तान बनाए गए हैं, तो कई जगहों पर मकान बने हुए हैं। इतना ही नहीं कई गांवों में सरकारी अतिक्रमण भी किया गया है।

इस मामले में नीर फाउंडेशन के संस्थापक एवं जल संरक्षक रमन त्यागी ने बताया कि जिस तरह से तालाबों की संख्या घटती जा रही है, उसके विपरीत पानी निकालने के साधन जैसे- ट्यूबवेल, बोरवेल आदि की संख्या बढ़ती जा रही है। मेरठ जिले में 8000 से ज्यादा ट्यूबवेल और बोरवेल लगाए जा चुके हैं। लेकिन पानी को रिचार्ज करने वाले तालाब और पोखर खत्म होते जा रहे हैं। इससे पानी का इंबैलेंस लगातार बढ़ता जा रहा है। तालाब पानी का रिचार्ज करने का सबसे बड़ा माध्यम रहे हैं, लेकिन जब तालाब ही नहीं होंगे तो पानी रिचार्ज कैसे हो पायेगा।

 

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