Home उत्तर प्रदेश Meerut देहदान का मतलब इंसान की मौत के बाद समझ आता है

देहदान का मतलब इंसान की मौत के बाद समझ आता है

0
मेडिकल में छात्रों को शपथ दिलाते प्रिंसिपल डा. आरसी गुप्ता
  • कुछ लोग विशेष परिस्थिति मे करते है देह दान।

शारदा न्यूज़, मेरठ। लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्रों को देहदान-अंगदान के महत्व को समझाने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दौरान छात्रों को एनाटॉमी विभाग की एच ओ डी ने शपथ ग्रहण कराई।

मेडिकल के आडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में मेडिकल के छात्रों के लिए देहदान कितना महत्वपूर्ण है इसकी जानकारी दी गई। जबकि अंगदान का महत्व बताया गया। इस दौरान दधीचि सेवा संस्था के संरक्षक ब्रह्मदत्त शर्मा ने देहदान-अंगदान को लेकर अपने अनुभव सांझा किये। उन्होंने कहा कुछ लोग स्वयं अपनी इच्छा से देहदान का संकल्प लेते है जबकि कुछ मजबूरी वश देहदान‌ करने का फैसला करते हैं।

 

शपथ लेते एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र

 

लेकिन परेशानी तब होती है जब मौत के बाद परिजन ही देहदान के लिये तैयार नहीं होते। उस समय परिजनों को समझना काफी कठिन होता है।

– देहदान के बाद सारी जिम्मेदारी मेडिकल कॉलेज निभाता है

आम लोगों को देहदान करने के लिए जागरुक करते हुए बताया देहदान के बाद मृत शरीर को मेडिकल तक लाने की सारी जिम्मेदारी मेडिकल प्रशासन निभाता है। यह मृत इंसानी शरीर उन छात्रों के काम आता है जो एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र होते है। पहले साल मृत शरीर पर ही छात्र इंसानी शरीर की संरचना के बारे में जानकारी हासिल करते हैं।

– लोगों मे जागरुकता का आभाव

ब्रह्मदत्त शर्मा ने कहा आज लोगों को देहदान के प्रति जागरुक
करने की जरूरत है।
भारत विकास परिषद् के साथ मिलजुलकर मेडिकल प्रशासन यह अभियान चला रहा है।

दधीची सेवा समिति को 26 साल पूरे

कानूनी रूप से देहदान-अंगदान में आने वाली परेशानी को कैसे दूर किया जाए इसको लेकर भी संस्था लगातार काम कर रही है। एक सर्वे में पता चला कि देश की 85 प्रतिशत आबादी देहदान की जानकारी से वंचित है। साथ ही अंगदान को लेकर भी लोगों में जागरूकता का आभाव है। देश मे इमरजेंसी के दौरान 1975 में अमृतसर मेडिकल कालेज मे एक डैड बाडी पर उनका नाम लिखा था जिन्होंने अपनी देहदान की थी जो डा. बिर्क था। डा. बिर्क ने मेडिकल के छात्रों को पढ़ाते समय मृत मानव शरीर की महत्वता को जाना। इसके बाद उन्होंने अपना मृत शरीर दान‌ देने का फैसला किया।

– महर्षि दधीचि ने किया था देहदान

बताया जाता है की महर्षि दधीचि की अस्थियों मे मौजूद बल लेने के लिए देवताओं ने महर्षि दधीचि ने अपनी देहदान करने को कहा था। इसके बाद देवताओं को बचाने और मानवता को बचाने में उनका शरीर काम आया।

– मेरठ मेडिकल मे इस समय कुल 18 मृत शरीर है

देश‌ के काफी मेडिकल कॉलेजों मे मृत शरीर की कमी है। जबकि मेरठ के मेडिकल कालेज में आज 18 मृत शरीर है। मृत शरीर बाजार में नहीं मिलता इस वजह से देश के सभी मेडिकल कॉलेज देहदान पर ही निर्भर है।

– देहदान करने वाले से एक संकल्प पत्र लिया जाता है

अपना मृत शरीर दान करने वाले से एक संकल्प पत्र लिया जाता है। इस संकल्प पत्र को दानदाता को हमेशा अपने साथ रखना चाहिए। इसके अलावा एक वसीयत भी की जाती है जो मौत के बाद काम आती है। यह उन लोगों को समझाने के लिए होती है जो मौत के बाद देहदान नहीं होने देना चाहते

– मेडिकल के छात्र देहदान करने वाले को मानते है पहला गुरु

– मेडिकल में छात्रों को शपथ दिलाते प्रिंसिपल डा. आरसी गुप्ता

डा. आरसी गुप्ता, प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज ने बताया
महर्षि दधीचि की प्रेरणा से ही देहदान-अंगदान संभव हुआ है। 2015 मे अमेरिका के कैलिफोर्निया मे सबसे लंबी देहदान दाताओ को लेकर ह्यूमैन चेन बनाई गई। 1970 मे केवल ढाई प्रतिशत अंगदान ‌हुआ था जो काफी कम था। सबसे पहले इटली मे 1900 में अंगदान शुरू हुआ।

1905 मे आस्ट्रेलिया मे पहला डाकुमेंटेड आर्गन ट्रांसप्लांट हुआ।

1936 मे यूक्रेन के एक डाक्टर ने पहला सफल किडनी ट्रांसफर किया।

1954 मे इस बात का पता चला कि किडनी ट्रांसफर के लिये ब्लडग्रुप मैच करना जरूरी है। 1984 के बाद पूरी दुनिया में आर्गन ट्रांसप्लांट क्रांति शुरू हुई। भारत मे मंहगा होने के कारण केवल 2.5 ℅ आबादी को ट्रांसप्लांट मिल पाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here