फोटो खिंचाने की रस्म अदायगी तक रह जाएगा वृहद पौधा रोपण अभियान।
– मितेन्द्र गुप्ता
मितेन्द्र गुप्ता | हर वर्ष भारत में मानसून के आगमन के साथ ही वृहद पौधारोपण अभियानों की एक परंपरा सी बन गई है। सरकारी विभागों, निजी संस्थानों, विद्यालयों और सामाजिक संगठनों द्वारा बड़े स्तर पर पौधारोपण के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। प्रेस रिलीज जारी होते हैं, फोटो खिंचते हैं, सोशल मीडिया पर हैशटैग चलाए जाते हैं और अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बनते हैं फला विभाग ने लगाए इतने लाख पौधे वर्ल्ड रिकॉर्ड की ओर भारत इत्यादि। लेकिन जब हकीकत की जमीन पर नजर डाली जाती है, तो ये पौधे और संकल्प कहीं पीछे छूट जाते हैं।
पीएम मोदी ने 5 जून 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक नई पहल की शुरूआत की एक पेड़ मां के नाम और एक पेड़ दूसरे के नाम इसका उद्देश्य केवल पर्यावरण संरक्षण ही नहीं बल्कि समाज को एक भावनात्मक धागे में पिरोना भी था। मां के नाम पर एक पौधा लगाना, लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने का सशक्त माध्यम बन सकता है।
हरियाली का दिखावा या हरियाली का समर्पण? : हर साल हम देखते हैं कि सरकारी अधिकारी, नेता, स्कूल के बच्चे, संस्था प्रमुख बड़े उत्साह से पौधारोपण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। मीडिया को बुलाया जाता है, कैमरे के सामने पौधा रोपा जाता है, एक मुस्कुराता हुआ चेहरा फ्रेम में कैद होता है और फिर पौधा वहीं छोड़ दिया जाता है, देखभाल के बिना।
आंकड़ों की होड़ : पर्यावरण मंत्रालय, राज्य सरकारें और कई गैर-सरकारी संगठन बड़े-बड़े आंकड़े पेश करते हैं 10 लाख पौधे, 5 करोड़ पौधे, विश्व रिकॉर्ड आदि। लेकिन इनमें से कितने पौधे जीवित रहते हैं, इसका कोई समुचित ट्रैक नहीं होता। 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगाए गए पौधों में से केवल 30% ही जीवित रहते हैं।
प्रबंधन और देखभाल का अभाव : पौधा लगाने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है उसकी देखभाल नियमित पानी, खाद, सुरक्षात्मक घेरा, धूप-छांव का ध्यान आदि। लेकिन दुर्भाग्यवश हमारी योजनाओं में इस पहलू को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
सामाजिक सहभागिता की कमी : पौधारोपण सरकारी योजना बनकर रह जाता है। इसमें आमजन की भागीदारी बहुत सीमित होती है। यदि कोई आम व्यक्ति हिस्सा लेना भी चाहे तो उसके पास कोई सुव्यवस्थित मंच या सहयोग उपलब्ध नहीं होता।
क्या पौधारोपण महज इवेंट बनकर रह गया है? : आज के डिजिटल युग में हर कार्य सोशल मीडिया फ्रेंडली बन चुका है। पौधारोपण भी इसका अपवाद नहीं है। जैसे ही कोई अभियान घोषित होता है, स्थानीय अधिकारी, राजनेता और संस्थाएँ इसे एक अवसर के रूप में देखती हैं। पौधा लगाते हुए कैमरे की ओर देखकर पोज देना, उसके बाद तुरंत इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर अपलोड करना जैसे इस अभियान का मुख्य उद्देश्य बन गया है।
समाधान क्या है? : सिर्फ आलोचना करने से कुछ नहीं होगा। इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान खोजना जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए।
1. एक पेड़ मां के नाम को केवल भावनात्मक न बनाएं, जिम्मेदारी भरा अभियान बनाएं जब कोई व्यक्ति अपनी मां के नाम पर पौधा लगाता है, तो उसमें एक व्यक्तिगत जुड़ाव होता है। इस भावना को जागरूकता, निगरानी और सामाजिक प्रतिस्पर्धा से जोड़ना जरूरी है।
2. स्थानीय समुदाय की भागीदारी
ग्राम पंचायत, वार्ड समिति, स्कूल-कॉलेज, और सामाजिक संगठनों को जिम्मेदारी दी जाए कि वे अपने क्षेत्र में लगाए गए पौधों की देखभाल करें। पौधे लगाने पर खर्च किया जाता है, लेकिन उनकी देखभाल पर नहीं।
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