- सीसीएसयू की प्रोफेसर नाजिया और छात्रा मानवी सिंह ने किया शोध
शारदा रिपोर्टर मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविघालय में जैविक एवं सतत विकास हेतु प्रयास करते हुए हरित तकनीक के जरिए दीमक नियंत्रण क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। रसायन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नाजिया तरन्नुम और उनकी शोध छात्रा मानवी सिंह ने वनस्पति विभाग के प्रोफेसर डॉ विजय मलिक और उनके शोध छात्र आशीष कुमार के साथ मिलकर यह अंतरविभागीय अनुसन्धान किया है।
इस अनुसन्धान हेतु इन्हे एक भारतीय पेटेंट भी जुलाई 2025 को प्राप्त हुआ है। केले के पत्तो से सिलिका नैनोपार्टिकल्स तैयार किए हैं, जो पूरी तरह से जैव-अविघटनीय विष-रहित और दीमक के विरुद्ध अत्यधिक प्रभावी हैं। यह नई तकनीक पारंपरिक विषैले रासायनिक टरमिसाइड्स का हरित और सुरक्षित विकल्प पेश करती है।
केले के सूखे पत्तों के उपयोग से प्राप्त किए गए और इस नैनोपार्टिकल के 1% घोल के उपयोग से 5 से 15 मिनट के भीतर दीमक की पूरी तरह से मृत्यु दर्ज की गई। प्रयोगों में यह भी पाया गया कि ६ महीने तक साइट पर कोई दीमक पुन: नहीं आई, और भंडारण में यह छह महीने तक स्थिर रहते हैं। डॉ. नाजिÞया तरन्नुम के अनुसार यह तकनीक सरल, सस्ती और पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। यह घरेलू उपयोग, लकड़ी व निर्माण उद्योग और कृषि क्षेत्र में दीमक से बचाव के लिए कारगर है।
यह शोध कार्य रसायन और वनस्पति विज्ञान विभागों के सहयोग से किया गया, जो विवि में इंटरडिसिप्लिनरी अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है। इस शोध में वैज्ञानिकों ने जैविक स्रोत से नैनोपार्टिकल निर्माण के साथ-साथ उनके व्यावहारिक उपयोग को भी सिद्ध किया है। मानवी सिंह और आशीष कुमार, दोनों शोधार्थियों ने इस परियोजना में विशेष योगदान दिया और क्षेत्रीय परीक्षणों के माध्यम से इसकी प्रभावशीलता प्रमाणित की।
हरित नैनो टेक्नोलॉजी की ओर कदम
यह खोज न केवल दीमक नियंत्रण की दिशा में बल्कि कृषि अपशिष्ट के उपयोग और हरित नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि किसानों और निर्माण उद्योग को भी एक सस्ता और टिकाऊ समाधान मिलेगा।