– एक पर ही एक्शन क्यों? आवास-एवं विकास परिषद की ध्वस्तीकरण कार्रवाई को लेकर उठ रहे सवाल।
अनुज मित्तल, मेरठ। शास्त्रीनगर का सेंट्रल मार्केट यूं तो पूरा ही अवैध है, लेकिन फिलहाल मामला 661/6 में बने अवैध कांप्लैक्स और इसके साथ ही 31 अन्य संपत्तियों को लेकर है। जिनके ध्वस्तीकरण का टेंडर आवास एवं विकास परिषद द्वारा निकाला गया था। लेकिन शनिवार को हुई कार्रवाई को लेकर अब आवास एवं विकास परिषद की कार्रवाई पर सवाल खड़ें हो रहे हैं।

सेंट्रल मार्केट को लेकर पिछले तीन दशक से मामला चल रहा है। आवास एवं विकास परिषद की शास्त्रीनगर योजना में सेंट्रल मार्केट नाम का कोई बाजार शामिल नहीं था। यहां पर लोगों ने आवासीय भूखंडों में व्यवसायिक निर्माण कर लिया। इसके बाद यह पूरा बाजार तैयार हो गया और उसके बाद परिषद के अधिकारियों की सांठगांठ से दुकानें ही नहीं बल्कि बड़े कांप्लैक्स भी तैयार कर लिए।
भूउपयोग परिवर्तन कर हुए इस अवैध निर्माण को लेकर 1990 में सबसे पहली शिकायत दर्ज हुई। इसके बाद कभी-कभी यह मामला उठता रहा। लेकिन वर्ष 2013 में आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना द्वारा मांगी गयी जानकारी पर आवास-विकास परिषद ने जो जवाब दिया वह बहुत ही चौंकाने वाला था। जिसमें पता चला कि पूरा सेंट्रल मार्केट ही अवैध है। इसके बाद शास्त्रीनगर के अन्य तमाम निर्माणों को लेकर भी जब जानकारी मांगी गई तो पता चला कि सेंट्रल मार्केट ही नहीं, इस योजना में करीब दो हजार निर्माण भूउपयोग परिवर्तन कर अवैध रूप से बनाए गए हैं।
यहां से सेंट्रल मार्केट को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। जिसमें आवास एवं विकास परिषद के अधिकारियों से लेकर शासन स्तर तक लगातार शिकायतों के बाद भी जब कार्रवाई नहीं हुई, तो लोकेश खुराना ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। जिस पर लंबे समय तक सुनवाई के बाद ध्वस्तीकरण का आदेश आया। जिसमें 661/6 सहित 31 अन्य संपत्तियों के ध्वस्तीकरण का आदेश था। यह सभी संपत्तियां सेंट्रल मार्केट के बड़े निर्माण हैं।
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन वहां से भी लंबी सुनवाई के बाद व्यापारियों को राहत नहीं मिली। हालांकि राजनीतिक दबाव में परिषद सहित पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी कार्रवाई को टालते रहे। लेकिन जब मामला कोर्ट के आदेश की अवमानना का बना तो मजबूर होकर अब कार्रवाई करनी पड़ी। क्योंकि सोमवार को इसी मामले में अब तक की कार्रवाई की रिपोर्ट परिषदीय अधिकारियों के साथ ही प्रशासन को भी हाईकोर्ट में प्रस्तुत करनी है।
लेकिन इस पूरी कार्रवाई को लेकर आवास एवं विकास परिषद फिर से कटघरे में खड़ा हो गया है। क्योंकि आवास एवं विकास परिषद ने ध्वस्तीकरण का जो टेंडर निकाला था, उसमें 32 संपत्तियों की सूची थी। लेकिन ध्वस्तीकरण सिर्फ 661/6 का ही किया जा रहा है। इस कांप्लैक्स में 22 दुकानें बनी हैं, जिन्हें आज ध्वस्त किया गया है। लेकिन बाकी संपत्तियों को हाथा तक नहीं लगाया।

कार्रवाई की रिपोर्ट देकर अवमानना से बचना चाहता है परिषद: सूत्रों की मानें तो आवास एवं विकास परिषद पर इस पूरे मामले को लेकर एक तरफ कोर्ट का दबाव है, तो दूसरी तरफ कार्रवाई न करने को लेकर स्थानीय नेताओं से लेकर सरकार से भी दबाव है। ऐसे में आवास एवं विकास परिषद इस कांप्लैक्स के ध्वस्तीकरण की रिपोर्ट कोर्ट में पेशकर खुद को बचाते हुए समय खींचने की कोशिश में है।

