- मैनुअल स्टांप हैं असली, लेकिन रियूज से लगाया कोषागार को चूना,
- ई-स्टांप पेपर में कर दिया गया बड़ा खेल
शारदा रिपोर्टर
मेरठ। स्टांप घोटाले में सरकार को कई करोड़ की क्षति हुई है। सह रजिस्ट्रार की जांच रिपोर्ट से तीन साल में 997 फर्जी स्टांप लगाकर रजिस्ट्री होने का खुलासा हुआ है। पर्व, वेद व वासु एसोसिएट्स के खिलाफ मुकदमा होने के बाद डीएम दीपक मीणा व एसएसपी रोहित सिंह सजवाण में मंथन हुआ। इसके बाद स्टांप घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अधिष्ठान) से कराने की तैयारी शुरू हो गई है।
कोषागार के हस्ताक्षर और मुहर लगे फर्जी स्टांप से रजिस्ट्री का खेल मेरठ रजिस्ट्री कार्यालय में पकड़ा गया था। इसके बाद स्टांप आयुक्त लखनऊ ने 3 साल में हुई रजिस्ट्री में लगने वाले स्टांप की जांच कराई। मेरठ में 997 फर्जी स्टांप में सरकार की सात करोड़, 31 लाख 45 हजार रुपये की क्षति हुई। करीब दस साल से स्टांप घोटाला हो रहा है और जिम्मेदार अधिकारी खामोश है। इस प्रकरण से संबंधित सिविल लाइन थाने में दो मुकदमे पंजीकृत हुए हैं। एक मुकदमा अज्ञात में दर्ज हुआ, जबकि दूसरे मुकदमे में सिर्फ बिल्डर के एसोसिएट्स के नाम ही खुले हैं। करीब 11 महीने पहले दर्ज मुकदमे में थाना पुलिस की जांच एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी है।
इस प्रकरण की जांच करने में थाना पुलिस न जांच करने को तैयार है और न ही कार्रवाई करने को। 997 फर्जी स्टांप मिलने पर तीन एसोसिएट्स के खिलाफ बुधवार को काफी जिद्दोजेहद के बाद मुकदमा दर्ज किया गया। इसके बाद डीएम व एसएसपी के बीच मंथन हुआ। इसमें प्रकरण की जांच ईओडब्ल्यू से कराने की तैयारी शुरू कर दी।
जिम्मेदार पर कार्रवाई क्यों नही: छह रजिस्ट्रार ने तीन साल के स्टांप की जांच की। इस्तेमाल पर्व, वासु एसोसिएट्स ने किया है। इसके दस्तावेज रजिस्ट्री के दौरान लगे हुए हैं। फर्जी स्टांप से रजिस्ट्री होते रहे और किसी ने सत्यापन करना मुनासिब नहीं समझा। अंदेशा है कि फर्जी स्टांप से रजिस्ट्री कराने में विभागीय कर्मचारी या फिर अधिकारी भी शामिल होंगे। इसे उजागर करने में अभी विभागीय अधिकारी बच रहे हैं। इसको देखते हुए इस प्रकरण की जांच ईओडब्ल्यू से कराने के लिए बात चली है। हालांकि, अभी सरकार की अनुमति के बाद ही स्टांप घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू में लिखापड़ी में ट्रांसफर होगी।
असली हैं स्टांप, लेकिन रियूज का है मामला: ट्रेजरी विभाग के सूत्रों की मानें तो जांच के लिए जो स्टांप उनके पास आए थे, वह असली हैं और उनके यहां सभी स्टांप का रिकार्ड दर्ज है कि किसने खरीदे थे। लेकिन जिसके नाम से स्टांप खरीदे गए उसकी जगह दूसरे ने उसका प्रयोग किया है। जबकि नियमानुसार एआईजी सटांप के माध्यम से ऐसे स्टांप जो प्रयोग में नहीं होते हैं, वह दस प्रतिशत कटौती के साथ वापस ट्रेजरी में जमा हो जाते हैं। लेकिन इन स्टांप में ऐसा नहीं किया गया। ऐसे में इनका प्रयोग करने वाले ने दस प्रतिशत राजस्व का नुकसान सरकार को दिया है।
ई-स्टांप में हो गया बड़ा खेल
जिन वेंडरों के लाइसेंस निलंबित किए गए हैं, वह सभी ई-स्टांप वेंडर है। इन लोगों ने पुराने खरीदे गए स्टांप पेपरों की रंगीन फोटो कराकर उनका प्रयोग कर लिया। जबकि पूर्व में जिनके नाम से ये स्टांप पेपर खरीदे गए थे, वह अभी तक रिफंड के लिए परेशान घूम रहे हैं। ऐसे स्टांप पेपरों की कीमत करीब 37 लाख रुपये बताई जा रही है।
भाजपा नेता की हैं तीनों फर्म
जिन तीन फर्मों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। वह एक भाजपा नेता की हैं। लेकिन मुकदमा उनके पार्टनर के नाम दर्ज हुआ है। हालांकि कंपनी में दोनों ही डायरेक्टर हैं, लेकिन बैनामा कराने में नामजद डायरेक्टर के ही फोटो और हस्ताक्षर होने से प्रशासन ने सिर्फ पार्टनर को ही आरोपी बनाया है।
मामला बेहद गंभीर है। तीन साल की जांच कराई गई, जिसमें 997 फर्जी स्टांप पर रजिस्ट्री हुई। इसमें सात करोड़ 31 लाख 45 हजार का राजस्व चोरी होने की बात सामने आई है। मुकदमा दर्ज हो गया है और अब उच्चस्तर से जांच करने की बात चल रही है। – दीपक मीणा, जिलाधिकारी