शारदा रिपोर्टर मेरठ। शांति विधान में मंडले पर अर्घ्य में चढ़ाया गया अखरोट। पंडित जी ने बताया उसका आध्यात्मिक महत्व। छठे दिन शांति विधान का आयोजन रहा। जिसमें अभिषेक एवं शांति धारा के साथ सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य रमेश जैन, विपुल जैन, गौरव जैन एवं दीपक जैन, दीपांशु जैन, साहिल परिवार को मिला । नित्य नियम अभिषेक पूजन के पश्चात सभी भक्तों ने मांडले पर अखरोट एवं श्रीफल अर्पित किए।
शांति विधान के दौरान आज पंडित सिद्धांत जैन शास्त्री जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि मंडले पर जो अखरोट चढ़ाया जाता है, वह केवल एक फल नहीं, बल्कि वैराग्य और ज्ञान के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है। अखरोट का कठोर बाहरी आवरण और अंदर से समृद्ध व पोषक तत्वों से भरपूर होना यह दशार्ता है कि तप, संयम और आत्मचिंतन से ही आत्मा के भीतर छुपे परमज्ञान की प्राप्ति होती है।
पंडित जी ने बताया कि मंडले पर चढ़ाए जाने वाले प्रत्येक द्रव्य का एक गूढ़ प्रतीकात्मक अर्थ होता है, और अखरोट आत्म-साधना की दिशा में कठोरता को पार कर ज्ञान के सार तक पहुंचने का प्रतीक है। रचित जैन ने बताया पूजन में प्रयुक्त होने वाले अष्टाध्रव्य में कौन-कौन से द्रव्य होते हैं और उन्हें किस श्रेणी अनुसार चढ़ाया जाता है।
जैन धर्म में पूजा के दौरान अष्टद्रव्य (8 पूजन द्रव्य) प्रमुख होते हैं, जिन्हें अस्त्र भी कहा जाता है। जल (नीर) अभिषेक के लिए,चंदन शीतलता व शांतिप्रदायकता का प्रतीक। अक्षत (चावल)अखंडता व पूर्ण समर्पण। पुष्प (केसरी चावल) पवित्रता और भक्ति का प्रतीक। नैवेद्य (गोले की चटक) समर्पण। दीपक (दीप) आत्मज्ञान का प्रतीक।धूप वातावरण की शुद्धि।
फल ( बादाम लोंग इलायची नारियल ) कर्मों का फल और आत्म-शुद्धि। पंडित जी ने सभी को धर्म का ज्ञान दिया एवं सामूहिक आरती का आयोजन हुआ।