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Friday, December 26, 2025
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HomeEducation Newsसंस्कृत सिर्फ भाषा नहीं, देश की अखंडता का सूत्र भी

संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं, देश की अखंडता का सूत्र भी

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  • विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के सहयोग से 33वां अखिल भारतीय व्याससमारोह का उद्घाटन हुआ,
  • यज्ञ एवं शोभा यात्रा के अनन्तर यह सत्र आयोजित हुआ।

शारदा रिपोर्टर मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर के संस्कृत विभाग में श्री कालीचरण पौराणिक पद्मावती निधि द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के सहयोग से 33वाँ अखिल भारतीय व्याससमारोह का उद्घाटन हुआ।

यज्ञ एवं शोभा यात्रा के अनन्तर यह सत्र आयोजित हुआ। शोभा यात्रा के स्वागत कर्ता एवं यज्ञ के मुख्य यजमान मेरठ कैंट विधायक अमित अग्रवाल रहे। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृत विवि दिल्ली के प्रो कुलपति श्रीनिवास बरखेडी,सारस्वत अतिथि के रूप में पद्मश्री सुशोभित सम्पूर्णानन्दसंस्कृत विवि, वाराणसी के पूर्व कुलपति एवं विश्वप्रसिद्ध संस्कृत कवि प्रो अभिराजराजेन्द्र मिश्र मौजूद थे।

ऊर्जा राज्य मन्त्री डॉ. सोमन्द्र तोमर, व्यास समारोह में आयोजन-निदेशक के रूप में हिन्दी विभागाध्यक्ष नवीन लोहनी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में समन्वयक की भूमिका का निर्वहन करते हुए आचार्य वाचस्पति ने किया। समारोह के प्रकल्पक आचार्य सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने पञ्चचामर छन्द में समारोह का शुभारम्भ किया। डाक्टर सोमेन्द्र तोमर के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम को प्रारम्भ किया गया।

उन्होनें संस्कृत के विस्तार की दिशा में अधिकाधिक प्रयास करने पर बल दिया।
तदनन्तर मुख्यातिथि प्रोफेसर श्रीनिवास वरखेड़ी ने व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम पर आधारित अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने बताया कि हम भारतीयों का जन्म केवल स्वभोग के लिए नहीं, अपितु राष्ट्रोन्नति एवं विश्वकल्याण के लिए हुआ। संस्कृत केवल भाषा नहीं, अपितु आध्यात्मिक रूप में भारत की अखण्डता का सूत्र है। इसके लिए भारत के वाङ्मय का पुनरावलोकन अत्यन्त आवश्यक है। राज्यों की भाषा तो राज्यों पर आधारित है, किंतु समस्त भारतीयों की भाषा भारती है अर्थात संस्कृत है, अत: भारतीय होने के लिए हमें अपनी भाषा संस्कृत को अपनाना होगा।

सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित पदम श्री प्रोफेसर अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने छन्दोबद्धवाणी में डॉ. संतोष कुमारी द्वारा किये जा रहे सञ्चालन की प्रशंसा की। उन्होंने भी छन्दोबद्धवाणी में भारत के गौरव का वर्णन किया तथा बताया कि किस प्रकार के विचार वाले व्यक्ति भारतीय होने के अधिकारी नहीं हैं उन्होंने बताया कि महर्षि वेड व्यास भारतीय परम्परा के सबसे बड़े इतिहासकार हैं उनके द्वारा रचित वांग्मय से ही भारत के प्राचीन इतिहास को जाना जा सकता है।

व्याससमारोह में आयोजन-निदेशक की भूमिका निर्वाह करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष ने संस्कृत की व्यापकता को बताते हुए स्वयं भी संस्कृत में अपना वक्तव्य दिया। व्यास समारोह की पूर्व संयोजयत्री डाक्टर पूनम लूखन पाल ने छन्दोमयी मधुर वाणी समारोह के इतिहास को बताया। उद्घाटन सत्र के अन्त में आचार्य वाचस्पति मिश्र ने सभी अतिथियों एवं आगंतुको का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद प्रकट किया। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. सन्तोष कुमारी द्वारा छन्दोमय वाणी में किया गया। समारोह के दूसरे सत्र में दिल्ली के दौलत राम पी जी कॉलेज के संगीत विषय की विभागाध्यक्षा प्रो दीप्ति बंसल एवं मनस्वनी बंसल ने छन्दोबद्ध राग एवं ताल में संगीत संध्या का प्रस्तुतिकरण किया।

समारोह में डॉ राजबीर, डॉ नरेन्द्र कुमार, डॉ ओमपाल सिंह, डॉ विजय बहादुर, तुषार गोयल, डॉ सुमित, डॉ हरिदत्त शर्मा, डॉ विजय नारायण गौतम, साहिल, डॉ रक्षिता, सृष्टि, अंशिका, वैशाली, शिवानी, अदिति गौतम, टीना, प्राची, प्रताप, अनुज, सुमित, मोहित विष्णु, आयुषी, सुमित, बबलू आदि उपस्थित रहे।

 

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