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Thursday, December 4, 2025
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“रील का रौब, अपराध का फैशन: समाज, सोशल मीडिया और युवा पीढ़ी की हार”

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  • “रील का रौब, अपराध का फैशन: समाज, सोशल मीडिया और युवा पीढ़ी की हार”
– एडवोकेट आदेश प्रधान.

एडवोकेट आदेश प्रधान | आज के समय में जब देश शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा और तकनीकी में वैश्विक स्तर पर अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की युवा पीढ़ी का एक बड़ा तबका सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपराध को ग्लैमर और बदमाशी को पहचान का ज़रिया समझ रहा है। इस डिजिटल युग में जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने हर किसी को अपनी बात रखने का मंच दिया है, वहीं इस स्वतंत्रता का विकृत रूप अब हमारी आंखों के सामने एक भयावह यथार्थ बनकर उभर रहा है। सोशल मीडिया अब केवल संवाद और मनोरंजन का माध्यम नहीं रह गया, यह आज की युवा पीढ़ी का सबसे शक्तिशाली गुरु, दोस्त और प्रेरणा बन चुका है। लेकिन जब यह प्रेरणा ही अपराध की ओर ले जाने लगे तो फिर समाज का दिशा भ्रमित होना तय है।

आज यह कोई छुपी हुई बात नहीं रह गई है कि सोशल मीडिया पर रोज़ाना हजारों की संख्या में ऐसे वीडियो पोस्ट हो रहे हैं जिसमें युवा लड़के खुलेआम हथियार लहरा रहे हैं, नशे में झूमते हुए कानून और पुलिस को चुनौती दे रहे हैं, और रील्स के ज़रिए अपने-अपने गैंग या खुद को ब्रांड के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। ये दृश्य अब दुर्लभ नहीं, बल्कि आम हो चुके हैं। पहले जो बाते अपराधी गुपचुप करते थे, आज वह इंस्टाग्राम पर म्यूजिक के साथ सार्वजनिक रूप से शेयर की जाती हैं। कई वीडियो में अपराधी पिस्तौल से फायर करते हुए दिखते हैं, कुछ में ड्रग्स और शराब के साथ हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है, और इन सबको इस तरह पेश किया जाता है जैसे कोई फिल्मी नायक कोई स्टंट कर रहा हो। यह सब देखकर समाज का एक बड़ा तबका, विशेषकर 14 से 25 वर्ष के बीच के किशोर और युवा, इस आभासी दुनिया को अपनी असली दुनिया मानने लगते हैं।

 

 

दुखद बात यह है कि यह सब केवल आभासी नहीं रह गया। सोशल मीडिया पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, उसका सीधा असर ज़मीनी हकीकत पर हो रहा है। NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2023 में सोशल मीडिया से प्रेरित अपराधों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अकेले उत्तर प्रदेश में सोशल मीडिया पर हथियारों की वीडियो डालने, गैंग प्रचार करने और पुलिस को धमकाने के मामलों में 1800 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गईं। हरियाणा में 1000 से अधिक ऐसे मामले दर्ज हुए जहाँ युवाओं ने इंस्टाग्राम पर हथियारों का प्रदर्शन कर खुद को गैंगस्टर के रूप में प्रचारित किया। पंजाब में यह संख्या 1200 के करीब थी, जहाँ न केवल हथियार दिखाए गए बल्कि गानों के साथ एडिट करके ‘वीरता’ का प्रचार किया गया। बिहार में लगभग 900, राजस्थान में 700 और मध्यप्रदेश में 600 से अधिक ऐसे मामले प्रकाश में आए, जिनमें युवाओं ने सोशल मीडिया पर खुलेआम अपराध को ग्लैमराइज किया।

यह सब केवल वीडियो तक सीमित नहीं है। अब जब कोई अपराधी जेल से रिहा होता है तो उसका स्वागत इस प्रकार होता है जैसे वह किसी युद्ध में जीतकर आया हो। उसे फूलों की माला पहनाई जाती है, बैंड-बाजा बजता है, दोस्तों और समर्थकों का काफिला होता है और सब कुछ रिकॉर्ड किया जाता है रील के लिए। इस रील को फिर इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया जाता है और कैप्शन दिया जाता है – “शेर वापिस आ गया”, “एक साल की छुट्टी खत्म”, “जेल से नहीं जंग से लौटा हूं।” यह सब देखकर हमारे युवा मन में अपराध के प्रति आकर्षण पैदा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं रह जाती।

जेल से निकलने वाले इन अपराधियों की ‘वीरता गाथा’ अब केवल उनके मोहल्ले या गांव में नहीं सुनाई देती, वह अब सोशल मीडिया के ज़रिए देश के हर कोने तक पहुँचती है। एक बच्चा जो स्कूल में किताब पढ़ने की जगह रील देख रहा है, वह धीरे-धीरे अपने मन में यह सोच पनपाने लगता है कि अपराध करना ही बहादुरी है, कानून से टकराना ही असली मर्दानगी है, और बंदूक चलाना ही पहचान है। यही वजह है कि अब 15-16 साल के बच्चे हत्या, लूट, डकैती और गैंगवार जैसे अपराधों में लिप्त पाए जा रहे हैं। NCRB की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 में नाबालिगों द्वारा किए गए अपराधों में 38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और इनमें से 72% मामलों में सोशल मीडिया प्रेरणा का स्रोत रहा।

सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि ये वीडियो कई बार पुलिस थानों के पीछे, थानों के आसपास या जेल के अंदर से बनाए जाते हैं। कई अपराधियों ने तो जेल के भीतर से मोबाइल फोन के ज़रिए लाइव आकर अपने गैंग की ताकत का प्रदर्शन किया है। कई जेलों में छापों के दौरान दर्जनों मोबाइल, सिम और इंटरनेट डिवाइस बरामद की गईं। यानी सोशल मीडिया न केवल अपराध का प्रचार कर रहा है बल्कि जेलों को भी मंच बना रहा है। आज जब अपराध तकनीकी रूप से हो रहा है, तब भी हमारी पुलिस तकनीकी प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी से जूझ रही है। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग की दक्षता और डिजिटल जांच की विशेषज्ञता का अभाव स्पष्ट दिखता है, जिससे अपराधियों को खुली छूट मिल रही है।

इस सबके बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की भूमिका अत्यंत निराशाजनक रही है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसी कंपनियाँ अपनी गाइडलाइन में तो कहती हैं कि हिंसा, अपराध और अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली सामग्री प्रतिबंधित है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे वीडियो लाखों की संख्या में मौजूद हैं, जिन्हें न हटाया जाता है, न रोका जाता है। इन कंपनियों के एल्गोरिदम केवल एंगेजमेंट और व्यूज़ पर ध्यान देते हैं, न कि नैतिकता या सामाजिक प्रभाव पर। इसलिए जब कोई युवक हथियार लहराते हुए वीडियो डालता है और वह वायरल हो जाता है, तो उसका आत्मविश्वास और बढ़ जाता है। वह अगली बार और अधिक खतरनाक वीडियो डालता है, और धीरे-धीरे एक अपराधी के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि अब अपराध केवल हथियार तक सीमित नहीं रह गया है। अब सोशल मीडिया पर लड़कियों के साथ अश्लील रील्स, नशे का खुला प्रचार, गाड़ियों की रफ्तार से स्टंट, और पब-डिस्को में ड्रग्स के साथ वीडियो बनाना फैशन बन चुका है। यह सब देखकर एक सामान्य लड़का या लड़की सोचते हैं कि यदि वह भी ऐसा करेंगे तो उन्हें भी सोशल मीडिया पर लोकप्रियता मिलेगी। यही से शुरू होती है अपराध की यात्रा – एक रील से।

विभिन्न राज्यों में सोशल मीडिया अपराध के आंकड़े लगातार डरावने हो रहे हैं। दिल्ली में 2023 में सोशल मीडिया के ज़रिए हुए साइबर धमकियों के 1700 से अधिक केस दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में इंस्टाग्राम पर नशे के प्रचार और हथियारों के प्रदर्शन से जुड़े लगभग 1500 केस सामने आए। झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्य जो पहले सोशल मीडिया क्राइम से दूर माने जाते थे, अब वहाँ भी तेजी से ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं। इन क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता की कमी और कानून के प्रति उदासीनता अपराधियों को और अधिक साहसी बना रही है। दुर्भाग्य की बात है कि हमारे जनप्रतिनिधि इस बढ़ते सामाजिक संकट पर चुप हैं। न कोई सख्त बयान आता है, न कोई विधायी पहल होती है – मानो सोशल मीडिया अपराध उनके लिए चिंता का विषय ही न हो।

अब जब अपराधी समाज में हीरो की तरह पेश किए जा रहे हों, पुलिस को लगातार सोशल मीडिया पर चुनौती मिल रही हो, और युवा हथियार को फैशन समझने लगे हों – तो यह ज़रूरी हो जाता है कि सरकार, पुलिस प्रशासन और समाज मिलकर एक सशक्त रणनीति बनाए। पहली आवश्यकता है – सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कानूनी रूप से बाध्य किया जाए कि वे हर उस कंटेंट को तत्काल हटाएं जिसमें हथियार, नशा, धमकी या अपराध के किसी भी प्रकार का प्रचार हो। दूसरा – स्कूल और कॉलेज स्तर पर डिजिटल आचरण की शिक्षा दी जाए ताकि किशोर अवस्था में ही बच्चों को यह बताया जा सके कि अपराध, भले ही रील में कितना भी आकर्षक लगे, अंत में बर्बादी का रास्ता ही होता है। तीसरा – समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। अपराधियों का स्वागत करने की प्रवृत्ति पर सार्वजनिक बहिष्कार होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जो हत्या, बलात्कार या गैंगवार जैसे अपराध में शामिल होकर जेल से बाहर आता है, उसे हीरो नहीं, अपराधी माना जाए।

पुलिस को भी अब इस डिजिटल युग की समझ के साथ कार्य करना होगा। केवल धरपकड़ नहीं, बल्कि सोशल मीडिया निगरानी सेल की स्थापना, साइबर विशेषज्ञों की तैनाती और तकनीकी दक्षता की ज़रूरत है। अगर कोई अपराधी बार-बार वीडियो डालकर पुलिस को चुनौती दे रहा है, तो उसे केवल गिरफ्तार करने से काम नहीं चलेगा। उसकी डिजिटल उपस्थिति, उसकी फॉलोवर लिस्ट, उसके नेटवर्क का विश्लेषण कर उसे जड़ से खत्म करना होगा।

यह केवल कानून व्यवस्था की नहीं, समाज के भविष्य की लड़ाई है। अगर आज हमने सोशल मीडिया पर अपराध को ग्लैमराइज करने की प्रवृत्ति को नहीं रोका, तो कल हर गली में एक इंस्टाग्राम गैंगस्टर होगा, हर मोहल्ले में एक ‘रील डॉन’ पैदा होगा और फिर समाज, कानून, व्यवस्था और नैतिकता – सब कुछ ध्वस्त हो जाएगा।
जैसे दुष्यंत कुमार ने चेताया था — “यहां दरख़्तों के साए में धूप लगती है…” – वैसी ही आभासी छांव में आज की पीढ़ी जल रही है। यह समय केवल रोकने का नहीं, चेताने का है।

कभी जो रील केवल 30 सेकंड की होती थी, अब वह किसी की पूरी जिंदगी को बर्बाद करने का माध्यम बन गई है।कभी जो माला शादी या पूजा में पहनाई जाती थी, अब अपराधियों के गले में सम्मान स्वरूप डाली जाती है।
कभी जो हथियार पुलिस की नज़र में आना भर अपराध होता था, अब वह सोशल मीडिया की ट्रेंडिंग कैटेगरी बन चुका है।
यह बदलाव आकस्मिक नहीं, सुनियोजित है।
और जब सुनियोजित गिरावट हो रही हो, तब सुधार केवल चेतावनी से नहीं, कड़ी कार्रवाई से ही संभव है।

नोट: संपादकीय पेज पर प्रकाशित किसी भी लेख से संपादक का सहमत होना आवश्यक नही है ये लेखक के अपने विचार है।

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