रोगियों और चिकित्सकों के अधिकारों की रक्षा को बनाया जाए विशेष आयोग, लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने उठाया मुद्दा

रोगियों और चिकित्सकों के अधिकारों की रक्षा को बनाया जाए विशेष आयोग, लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने उठाया मुद्दा

  • रोगियों और चिकित्सकों के अधिकारों की रक्षा को बनाया जाए विशेष आयोग
  • राज्यसभा के शून्य सत्र में सांसद डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने उठाया मुद्दा।

शारदा रिपोर्टर मेरठ। राज्यसभा सांसद डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने रोगियों और चिकित्सकों के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए विशेष आयोग बनाने की मांग उठाई। डा. वाजपेयी ने राज्यसभा के शून्य सत्र में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि वर्तमान में रोगियों और चिकित्सकों के बीच भरोसे की डोर कमजोर होती जा रही है। इसलिए आयोग का गठन होना जरूरी है।

डा. वाजपेयी ने कहा कि ‘धर्मो रक्षति रक्षित:’ यह शाश्वत सत्य केवल न्याय और कर्तव्य पालन पर आधारित व्यवस्था में ही साकार होता है। आज हमारे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में रोगियों और चिकित्सकों के बीच भरोसे की डोर कमजोर होती जा रही है। आए दिन ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं जहाँ एक ओर मरीज अनावश्यक उपचार, अत्यधिक शुल्क, और अस्पष्ट जानकारी के कारण पीड़ित होते हैं, तो दूसरी ओर चिकित्सक हिंसा, अपमान और झूठे आरोपों के शिकार बनते हैं। उदाहरणस्वरूप, हाल ही में ऐसी घटनाएँ हुई जहाँ चिकित्सकों के साथ मारपीट की गई और अस्पतालों को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। इसी प्रकार, मरीजों द्वारा यह भी आरोप लगाए गए कि उन्हें उचित जानकारी दिए बिना महंगे उपचार के लिए बाध्य किया गया।

डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि इस समस्या का समाधान केवल एक समग्र और संतुलित तंत्र के माध्यम से संभव है। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से कहा कि एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकार एवं समाधान आयोग की स्थापना की जाए। यह आयोग रोगियों और चिकित्सकों दोनों की शिकायतों का निष्पक्ष निवारण करेगा। आयोग को सिविल न्यायालय जैसी शक्तियाँ प्रदान की जाएँ, जिससे वह सबूतों की माँग कर सके, गवाहों को बुला सके, और बाध्यकारी निर्णय दे सके। साथ ही, यह आयोग नैतिक चिकित्सा प्रथाओं और पारदर्शिता को सुनिश्चित करते हुए दोनों पक्षों के अधिकारों की रक्षा करेगा।

उन्होंने कहा कि यह आयोग स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बढ़ते अविश्वास को कम करेगा, बल्कि एक संतुलित और न्यायपूर्ण वातावरण का निर्माण करेगा, जहाँ रोगियों का कल्याण और चिकित्सकों का सम्मान समान रूप से संरक्षित रहेगा।

 

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