बच्चों में बढ़ रही बिहेवियर डिसआॅर्डर, लैंग्वेज डेवलपमेंट और सोशलाइजिंग की समस्याएं।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। महाभारत काल में अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख ली थी। क्योंकि जब अभिमन्यु गर्भ में थे तो अर्जुन ने उनकी मां को चक्रव्यूह भेदने की युद्धनीति समझाई थी। हालांकि, वे सुनते-सुनते बीच में ही सो गई थीं, इसलिए अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने की विधा नहीं सीख पाए थे। खैर, एक वो दौर था, लेकिन आज के दौर में प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं मोबाइल या अन्य डिजिटल डिवाइस यूज करती हैं। ये डिजिटल डिवाइस गर्भ में पल रहे बच्चों के लिए साइलेंट विलेन बन रहे हैं।
प्रेग्नेंसी के दौरान अत्यधिक स्क्रीन टाइम कंच्यूम करने की वजह से बच्चों के मेंटल, इमोशनल और सोशल डेवलपमेंट पर गहरा इंपैक्ट दिखाई पड़ रहा है। नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के तहत हुई स्टडी में ये खुलासा हुआ है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि, ऐसे बच्चों में बिहेवियर डिसआॅर्डर, लैंग्वेज डेवलपमेंट, सोशलाइजिंग जैसे स्किल्स के डेवलप होने में गंभीर चुनौतियां सामने आ रही हैं। पांच साल तक के बच्चों में यह समस्याएं तेजी से सामने आ रही हैं।
एनएमएचपी के तहत जनवरी 2023 से दिसंबर 2024 तक स्वास्थ्य विभाग की ओर से संचालित मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट में पहुंचे 4563 बच्चों पर स्टडी हुई। पांच साल तक के इन बच्चों के बिहेवियर पैटर्न में कई तरह की समस्याएं थीं। जिन्हें लेकर उनके पेरेंट्स ओपीडी में पहुंचे थे। हिस्ट्री के दौरान पता चला कि, इनमें से 90फीसदी बच्चों की मदर या तो वर्किंग थी या फिर प्रेगनेंसी के टाइम पर उन्होंने किसी न किसी तरह से डिजिटल डिवाइस का अत्यधिक प्रयोग किया था। महिलाएं लंबे समय तक मोबाइल, लैपटॉप या अन्य डिजिटल उपकरणों का उपयोग करती रहीं थीं। बच्चों के न्यूरॉन्स पर इसका प्रभाव देखा गया।
कोर्टिसोल का असर: स्ट्रेस के कारण मां के शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन की अधिकता हो जाती है। इससे बच्चे के भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
स्क्रीन का अधिक उपयोग मां के स्लीप साइकल को बिगाड़ सकता है। इससे भ्रूण के मस्तिष्क और अंगों के विकास में बाधा आती है।0डिजिटल स्क्रीन मां का ध्यान बंटाती है, जिससे वह मानसिक रूप से बच्चे से जुड़ाव महसूस नहीं कर पाती। यह बच्चे के मस्तिष्क और भाषा सीखने की क्षमता को कमजोर करता है।
ऐसे करें स्क्रीन टाइम सीमित
किताबें पढ़ना : प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक बुक्स पढऩे से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह बच्चे के व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होती है। जबकि, ध्यान और प्रेगनेंसी योग मानसिक स्थिरता और शारीरिक फिटनेस को बनाए रखते हैं।हल्का संगीत सुनना गर्भ में बच्चे के माइंड को पॉजिटिव रूप से प्रभावित करता है। पार्क में समय बिताना और ताजी हवा लेना मानसिक शांति प्रदान करता है।
ये मिलीं समस्याएं
1.बिहेवियर डिसआॅर्डर-पांच साल तक के बच्चों में चिड़चिड़ापन, लेक आॅफ फोकस, सोशलाइजिंग में कमी जैसी समस्याएं पाई गईं।
2.लैंग्वेज डेवलपमेंट में दिक्कत: दो से तीन साल तक के 60 प्रतिशत बच्चों में बोलने संबंधी समस्या मिली। इनमें लैंग्वेज डेवलपमेंट, स्पीच प्रॉब्लम और कम्युनिकेशन स्किल्स समय पर विकसित नहीं मिला। ये बच्चे लैंग्वेज प्रोसेसिंग डिसआॅर्डर जैसी समस्याएं से ग्रस्त पाए गए।
3.सोशल एंजायटी: स्क्रीन के अधिक संपर्क में आने से 80 प्रतिशत बच्चों में लोगों के बीच आने में झिझक, एंजायटी, स्ट्रेस मैनेजमेंट में कमी पाई गई।
ब्लू लाइट का असर
स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य डिजिटल डिवाइस से निकलने वाली ब्लू लाइट आंखों और दिमाग पर प्रभाव डालती है। यह गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को कमजोर करती है।
रेडिएशन का खतरा
मोबाइल और वाई-फाई से निकलने वाला रेडिएशन भू्रण के विकासशील मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाता है। इससे न्यूरल कनेक्शन कमजोर होकर बच्चे की
मानसिक और शारीरिक क्षमताएं प्रभावित होती हैं।
मेंटल स्ट्रेस का प्रभाव
डिजिटल स्क्रीन पर अधिक समय बिताने से मां में मानसिक तनाव और एंजाइटी बढ़ जाती है। यह स्ट्रेस गर्भनाल के जरिए भू्रण तक पहुंचकर उसके मानसिक विकास को धीमा करता है।
प्रेगनेंसी में डिजिटल डिवाइस का अधिक उपयोग बच्चे के मानसिक विकास में बाधा डालता है। हमने ऐसे बच्चों में बिहेवियर डिसआॅर्डर और भाषा विकास में देरी के कई मामले देखे हैं। – डॉ0 रवि राणा, न्यूरो साइकैट्रिस्ट